कानपुर देहात, अमन यात्रा : सरकारी स्कूलों में बुनियादी शिक्षा लगभग समाप्त हो गई है। स्कूली शिक्षा पूरी तरह से राजनीति और शिक्षकों की अकर्मण्यता, लापरवाही और गैरजिम्मेदारी का शिकार बन कर रह गई है। बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के प्रति अभिभावकों की रुचि घटती जा रही है। भले ही उन्हें अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूलों में ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा हो पर वे इस बात को समझने लगे हैं कि मौजूदा सरकारी शिक्षा व्यवस्था में पढ़कर उनके बच्चों का विकास नहीं होने वाला है। फिलहाल योगी सरकार ने अभिभावकों के दृष्टिकोण और बदहाल शिक्षा व्यवस्था को बदलने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए हैं लेकिन शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्यों को लिए जाने एवम रोज-रोज की मीटिंग्स के तामझाम ने शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है। गौरतलब है कि हाउस होल्ड सर्वे, स्कूल चलो अभियान, प्रेरणा पोर्टल, डाटा फीडिंग, अभिभावकों के बैंक खाते जुटाना, विद्यार्थियों को यूनिफार्म दिलाना, मिड डे मील, कम्पोजिट ग्रांट से खरीद, एसएमसी की बैठक, बीआरसी की बैठक और न जाने क्या-क्या। ऐसे ही 33 गैर शैक्षणिक कार्य हैं जिन्होंने बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय विद्यालयों में तैनात शिक्षकों को परेशान कर रखा है। स्थिति यह है कि इन कार्यों के कारण शिक्षकों को उनके मूल शैक्षणिक कार्यों के लिए समय नहीं मिल पाता लेकिन दूसरी ओर कुछ शिक्षकों को यह कार्य ज्यादा पसंद आने लगे हैं। बच्चों को पढ़ाना उन्हें बोझ लगने लगा है ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मीटिंग में वे एक दूसरे से मेल मिलाप, वार्तालाप करते रहते हैं और उसके बाद नाश्ता पानी करके निकल लेते हैं, कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिन्हें यह कार्य पसंद नहीं है लेकिन कार्यवाही के भय से मजबूरी बस यह कार्य करते हैं। नाम न छापने की शर्त पर कुछ शिक्षकों का कहना है कि गैर शैक्षणिक कार्यों व रोज रोज की मीटिंग्स ने बच्चों की पढ़ाई को चौपट कर दिया है। सरकार खुद नहीं चाहती कि परिषदीय स्कूलों के बच्चे पढ़ लिखकर कुछ बन सकें इसीलिए वाहीयाद के काम शिक्षकों से करवाते रहते हैं। ग्रामवासी शिक्षकों पर न पढ़ाने का आरोप लगाते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह जानकारी ही नहीं रहती की शिक्षकों से पढ़ाने के अलावा अनगिनत गैर शैक्षणिक कार्य करवाए जाते हैं। बता दें शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्यो में उलझकर रह गए हैं। पिछले सत्र से (डायरेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर) डीबीटी ऐप के जरिए उनके ही मोबाइल व इंटरनेट डाटा से क्लर्क वाले काम भी लिए जाने लगे हैं। खातों की फीडिंग हो या विद्यार्थियों की फोटो अपलोड व सत्यापन, दिनभर में ऐसे ही जाने कितने कार्य उन्हें करने पड़ रहे हैं।
शिक्षण कार्य प्रभावित-
पहले शिक्षकों के पास न मिड डे मील की जिम्मेदारी रहती थी, न पोलियो अभियान की। न डीएम का डर था और न विभागीय अधिकारियों का, इसलिए वह बिना डर व अन्य गतिविधियों में लिप्त हुए सिर्फ शैक्षणिक गुणवत्ता पर ध्यान देते थे लेकिन अब मामला बदला है। स्कूलों में शिक्षकों को अब पहले से ही आदेशों की पोटली थमा दी जाती है कि उन्हें आज यह करना है और कल यह। इसलिए शिक्षक तमाम औपचारिकताओं और गैर सरकारी कार्यों के बीच उलझ कर रह गए हैं।
शैक्षणिक गुणवत्ता की बात बेमानी-
शिक्षक संघों का कहना है शिक्षकों को जब तक गैर शैक्षणिक कार्यों में फंसाकर रखा जाएगा तो उनसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की उम्मीद बेमानी है क्योंकि उसे आदेशों का अनुपालन कर अपनी नौकरी बचानी है। इसलिए शैक्षिक गुणवत्ता बेहतर करने के लिए शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से हटाया जाना चाहिए।
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