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कानपुर देहात,अमन यात्रा। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार शिक्षण व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन शिक्षा के बिगड़े हालात में अब तक कोई सार्थक परिवर्तन नहीं आया है। हर मर्ज की एक दवा बने शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाये जाने के कारण व आए दिन शिक्षक संकुल मीटिंग, बीआरसी स्तर की मीटिंग, कहीं अन्य मीटिंग होने से विद्यालयों में पढ़ाई-लिखाई कार्य महज कोरम बनकर रह गया है। खुलेआम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। सरकारी स्कूलों में गिर रहे शिक्षा के स्तर के चलते ही छात्र-छात्राओं ने निजी स्कूलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि जनपद में सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में छात्र संख्या दोगुनी हो गई है। प्राइवेट स्कूलों को लोग सरकारी स्कूलों से ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं। एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में गुणवत्ताहीन शिक्षा और शिक्षकों की उदासीनता के चलते जहां लगातार छात्र संख्या घट रही है वहीं निजी स्कूलों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जिनके पालक व अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी साक्षरता के आंकड़ों की बाजीगरी में ही खुश नजर आ रहे हैं लेकिन इन अधिकारियों को इस बात से कोई मलाल नहीं कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर बद से बदतर क्यों होता जा रहा है। आखिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने की जवाबदेही कब तक और कौन लेगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है। सरकार शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूलों और शिक्षा पर प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये खर्च कर रही है लेकिन सतत मॉनीटरिंग और बेहतर प्रबंधन के अभाव में सरकार की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा आठवीं तक पहुंचने के बाद भी शुद्ध हिंदी तक लिख-पढ़ नहीं पा रहे हैं। गणित और अंग्रेजी जैसे विषय में हालात और भी बदतर हैं। आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? शिक्षकों से बेवजह के गैर शैक्षणिक कार्य लिए जा रहे हैं। वे आए दिन यह मीटिंग, वह मिटिंग में ही व्यस्त रहते हैं। इसके अलावा यह सूचना वह सूचना में ही लगे रहते हैं। दुरुपयोग हो रहा है, इससे शैक्षिक स्तर में किसी भी प्रकार का कोई भी सुधार नहीं हो रहा है बल्कि शैक्षिक स्तर और भी अधिक खराब होता चला जा रहा है। इसके लिए शिक्षक नहीं बल्कि आला अधिकारी जिम्मेदार हैं क्योंकि अधिकारियों के आदेश का पालन करना शिक्षकों की तो मजबूरी विभिन्न प्रकार की मीटिंग के लिए भी सरकार धनराशि उपलब्ध कराती है जिसका खुलेआम है। मीटिंग करके ये योग्य शिक्षकों को क्या शिक्षा देते हैं इससे सभी भलीभांति परिचित हैं। मीटिंग में क्या बोला जा रहा है क्या बताया जा रहा है इसको कोई नहीं सुनता बल्कि सब अपने आप में व्यस्त रहते हैं। इसके बाद नाश्ता पानी करके घर निकल जाते हैं। अगर शैक्षिक स्तर में किसी भी प्रकार का कोई सुधार करना है तो उसके संदर्भ में शिक्षकों को व्हाट्सएप द्वारा भी बताया या अवगत कराया जा सकता है। इसके अलावा कभी कभार अगर आवश्यक हो तो मीटिंग करके उस संदर्भ में बताया जा सकता है। आए दिन मीटिंग करना बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना है।
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