प्रयागराज

यूपी: अफसरों की मिलीभगत से फल-फूल रहा अवैध शराब का कारोबार

यूपी में अवैध शराब का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है. अफसरों की मिलीभगत के कारण शराब का काला धंधा चल रहा है.

यह हाल तब है, जब सूबे की सरकार ने जहरीली शराब से मौत की घटनाओं को रोकने के लिए कानून में बदलाव किया है. प्रशासन ने ज्यादातर मामलों में सख्त कार्रवाई की है. इसके बावजूद अवैध शराब के गोरखधंधे का फलना-फूलना सिस्टम पर सवाल खड़े करता है. कई बड़े अधिकारी अपनी जेबें गर्म कर लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.अफसरों की मिलीभगत से फल-फूल रहा कारोबार
अवैध शराब के इस काले धंधे को पूरी तरह खत्म कर पाना कतई आसान भी नहीं है, क्योंकि यह काम अब गांव-गांव, गली-गली कुटीर उद्योग की तरह फैल चुका है. दर्जनों और सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों की संख्या में लोग मौत बांटने के कारोबार से फल-फूल रहे हैं. बड़े -बड़े माफियाओं ने इस गोरखधंधे पर कब्जा कर लिया है. सरकारी अमले के जिन जिम्मेदार लोगों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वही अपने हिस्से और एक्स्ट्रा कमाई के फेर में न सिर्फ नजरें फेर रहे हैं, बल्कि अवैध धंधे की इस फसल को खाद-पानी देकर उसे बढ़ाने में लगे हैं. कहा जा सकता है कि जाम के नाम पर इकट्ठा हुए लोगों का ऐसा तगड़ा नेक्सस तैयार हो चुका है, जिसे तोड़ना कतई आसान नहीं है.

अवैध शराब बनाने और बेचने का काम अब हर चौथे-पांचवें गांव में होता है, वह भी चोरी -छिपे नहीं, बल्कि धड़ल्ले से. सड़कों-रास्तों और खुले मैदानों में भट्टियां धधकती हैं. आबकारी विभाग, पुलिस महकमे और प्रशासन के दूसरे जिम्मेदार लोगों को एक-एक चीज की जानकारी होती है. सबका अपना हिस्साफिक्स होता है. मिलीभगत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकारी ठेकों से अवैध शराब बिकने लगी है. पिछले साल नवंबर महीने में प्रयागराज के फूलपुर इलाके में जिन सात लोगों ने पाउच वाली दारू पीकर दम तोड़ा था, उन सभी ने सरकारी ठेके से मौत का जाम खरीदा था.

काले कारोबार को मिल रहा सरकारी संरक्षण
जानकारों का कहना है कि सरकार भले ही लाख दंभ भर लें, लेकिन इसका कोई खास असर इसीलिए नहीं नजर आएगा क्योंकि जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वही अपने जेबें भरने के लालच में इस गोरखधंधे को बढ़ाते हैं. काला कारोबार करने वालों को संरक्षण तक दिया जाता है. शराब के जरिये रोजगार पाने और और अपने परिवार का पेट पालने वाले भी आसानी से इससे पीछा नहीं छुड़ा पाते. अगर इन लोगों को जागरूक कर इन्हे रोजगार के दूसरे साधन मुहैया करा दिए जाएं तो शायद कुछ लोगों का दिल पसीज सकता है.

Author: aman yatra

aman yatra

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