अवैध शराब बनाने और बेचने का काम अब हर चौथे-पांचवें गांव में होता है, वह भी चोरी -छिपे नहीं, बल्कि धड़ल्ले से. सड़कों-रास्तों और खुले मैदानों में भट्टियां धधकती हैं. आबकारी विभाग, पुलिस महकमे और प्रशासन के दूसरे जिम्मेदार लोगों को एक-एक चीज की जानकारी होती है. सबका अपना हिस्साफिक्स होता है. मिलीभगत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकारी ठेकों से अवैध शराब बिकने लगी है. पिछले साल नवंबर महीने में प्रयागराज के फूलपुर इलाके में जिन सात लोगों ने पाउच वाली दारू पीकर दम तोड़ा था, उन सभी ने सरकारी ठेके से मौत का जाम खरीदा था.
काले कारोबार को मिल रहा सरकारी संरक्षण
जानकारों का कहना है कि सरकार भले ही लाख दंभ भर लें, लेकिन इसका कोई खास असर इसीलिए नहीं नजर आएगा क्योंकि जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वही अपने जेबें भरने के लालच में इस गोरखधंधे को बढ़ाते हैं. काला कारोबार करने वालों को संरक्षण तक दिया जाता है. शराब के जरिये रोजगार पाने और और अपने परिवार का पेट पालने वाले भी आसानी से इससे पीछा नहीं छुड़ा पाते. अगर इन लोगों को जागरूक कर इन्हे रोजगार के दूसरे साधन मुहैया करा दिए जाएं तो शायद कुछ लोगों का दिल पसीज सकता है.
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