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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी को अपने बलबूते बहुमत हासिल करने के मंसूबे को सबसे बड़ा पलीता उत्तर प्रदेश ने लगाया है।यूपी की 80 लोकसभा सीटों में लगभग आधी सीटों पर भाजपा हार गई। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा को लगभग 25 सीटों का नुकसान हुआ है।भाजपा के बहुमत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अटकाने का काम यूपी ने किया है। यूपी में संविधान,आरक्षण पर खतरा,बेरोजगारी,पेपर लीक और महंगाई जैसे मुद्दों ने भाजपा के लिए मुश्किल हालात पैदा किए तो वर्तमान सांसदों से नाराजगी और गैर यादव पिछड़ी जातियों के छिटकने ने इसमें खास का काम किया।
यूपी में माहौल इस कदर भाजपा के खिलाफ गया कि स्मृति ईरानी,महेंद्र नाथ पांडेय,संजीव बालियान,अजय मिश्रा टेनी, भानु प्रताप वर्मा और कौशल किशोर जैसे केंद्रीय मंत्री लोकसभा चुनाव हार गए।कई बार से चुनाव जीतती आ रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी चुनाव हार गईं।वैसे तो यूपी में हुए सात चरणों के चुनाव में हर चरण में भाजपा को अपनी सीटें खोनी पड़ी है पर सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में हुआ है। भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाली हार फैजाबाद (अयोध्या) की रही है। फैजाबाद से दो बार के सांसद लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने धोबिया पछाड़ लगाकर पटखनी दी है।माना जा रहा था कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद न केवल फैजाबाद की बल्कि आसपास की भी लोकसभा सीटों पर भाजपा आसानी से जीत दर्ज करेगी।
अवध क्षेत्र में राजधानी लखनऊ को छोड़कर पड़ोसी जिले बाराबंकी,सीतापुर,लखीमपुर,सुल्तानपुर,रायबरेली,अमेठी,
फैजाबाद,अंबेडकरनगर,प्रतापगढ़,कौशांबी,श्रावस्ती,संतकबीरनगर और बस्ती लोकसभा से भाजपा हार गई है।इसके अलावा पूर्वांचल में वाराणसी के आसपास की सीटें घोसी, लालगंज,आजमगढ़,मछली शहर,चंदौली,जौनपुर और बलिया में भी भाजपा हार गई है। इस बार भाजपा के खिलाफ मतदाताओं का नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दशा में उसका गढ़ बनी रही राजधानी की लखनऊ लोकसभा से रक्षा मंत्री राजनाथ को लाखों नहीं बल्कि कुछ हजार वोटों से जीत मिली है।यह बीते 15 सालों में लखनऊ में भाजपा को मिली सबसे कम वोटों की जीत है।इतना ही नहीं वाराणसी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली जीत पहले के मुकाबले खासी कमजोर रही है।रायबरेली से राहुल गांधी ने लगभग चार लाख वोटों से,मैनपुरी से डिंपल यादव 2.21 लाख तो कन्नौज से अखिलेश यादव ने पौने दो लाख वोट से जीत दर्ज की।
दरअसल भाजपा की कमजोर हालात के पीछे संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन का सघन चुनाव अभियान और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए व्यूह रचना करना रहा है। इस बार इंडिया गठबंधन ने बड़ी तादाद में गैर यादव पिछड़ों को टिकट देकर भाजपा का समीकरण बिगाड़ा तो बहुत कम तादाद में मुसलमानों को मैदान में उतार कर ध्रुवीकरण नहीं होने दिया। बेतहाशा गर्मी में हुए चुनाव में शहरी और सवर्ण मतदाताओं ने मतदान भी कम किया और लगातार जीत से आश्वस्त भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उदासीनता ने भी काम खराब किया।इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने की दशा में बड़ी तादाद में दलित वोट भी इस बार संविधान बचाओ मुहिम के नाम पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को मिले। बड़ी तादाद में पुराने सांसदों को रिपीट करने का भी खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा।
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