रसोइयों ने मानदेय बढ़ाएं जाने के लिए मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

यूपी के परिषदीय स्कूलों में खाना बनाने के लिए कार्यरत रसोइया विद्यालय के अन्य कामों को करने वा कम मानदेय को लेकर आक्रोश में हैं। रसोइया वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि अन्य राज्य जैसे पांडुचेरी में 21000 और गुजरात में रसोइया को 6000 मिलता है वैसे ही यूपी के रसोइयों का भी मानदेय बढ़ना चाहिए।

राजेश कटियार, कानपुर देहात। यूपी के परिषदीय स्कूलों में खाना बनाने के लिए कार्यरत रसोइया विद्यालय के अन्य कामों को करने वा कम मानदेय को लेकर आक्रोश में हैं। रसोइया वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि अन्य राज्य जैसे पांडुचेरी में 21000 और गुजरात में रसोइया को 6000 मिलता है वैसे ही यूपी के रसोइयों का भी मानदेय बढ़ना चाहिए।

वर्तमान में यूपी में रसोइयों को मात्र 2000 प्रति माह के अनुसार दिया जाता है वह भी कभी भी समय से नहीं मिलता है। यूपी रसोइया अध्यक्ष ओमप्रकाश ने रसोइया का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि ये गूंगी बहरी सरकार रसोइयों के साथ सौतेले व्यवहार कर रही है। रसोइया को स्कूल में खाना बनाने के लिए रखा गया है लेकिन कुछ अधिकारी व प्रधानाध्यापकों की मिलीभगत से आज रसोइयों से विद्यालय की साफ सफाई भी करवाई जा रही है यदि रसोइया द्वारा इसका विरोध किया जाता है तो नवीनीकरण के नाम पर हटाने की धमकी दी जाती है।

कुछ जगहों के शिक्षक बच्चे कम होने का हवाला देकर निकाल देने की धमकी भी देते हैं। रसोईया वेलफेयर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में लिखा है कि कुछ स्कूलों के प्रधानाध्यापक रसोइयों से सफाई कर्मचारी का कार्य करवा रहे हैं। विद्यालय व फील्ड में झाड़ू, कमरों में झाड़ू पोंछा, फुलवारी में निराई गुड़ाई आदि कार्य करवाते हैं जो रसोइ‌या हित में नहीं हैं यह एक प्रकार से शोषण है। 70 फीसदी विद्याल‌यों में रसोइ‌यो को विद्यालय खोलने वा बंद करने का भी कार्य कराया जाता है जबकि रसोइयों को मानदेय 2000 प्रति माह यानि 66 रूपये प्रतिदिन मिलता है। वह भी साल में मात्र 10 माह का मानदेय दिया जाता है। मानदेय कम होने के कारण उन्हें परिवार चलाने में अनेकों कठिनाइयों का सामना पढ़ रहा है। अतः मुख्यमंत्री जी हमारी निम्न मांगे पूर्ण करें-

रसोइयों को नियमित किया जाये। जब तक नियमित नहीं होते तब तक 10000 रूपये प्रति माह मानदेय दिया जाये। रसोइयों का शोषण बन्द किया जाये। रसोइयों को सरकारी कर्मचारी बनाया जाय। माह के अंत तक मानदेय दे दिया जाए। रुके हुए मानदेय का अतिशीघ्र भुगतान किया जाए।

बता दें स्कूलों में सफाई करने के लिए सफाईकर्मी नहीं जाते हैं। गांव और वहां के स्कूल साफ सुथरे रहें इसके लिए गावों में सफाई कर्मचारी नियुक्त किए गए थे लेकिन अधिकारियों की उदासीनता और प्रधानों की सांठ-गांठ से सफाईकर्मी न तो गांव में ही सफाई कर रहे हैं और न ही स्कूलों की। गांव से लेकर स्कूल परिसार में गंदगी का अंबार लगा रहता है। इस कारण बच्चे गंदगी के बीच पढ़ने के लिए मजबूर हैं। सफाई कर्मचारियों के न आने पर स्कूल की साफ सफाई रसोइयों को करनी पड़ती है।

गांव के लोगों का कहना है कि सफाई कर्मचारी कभी नहीं आता सिर्फ प्रधान के घर तक आकर लौट जाता है। विभागीय अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए या तो वह परिषदीय विद्यालयों में सफाई कर्मचारी नियुक्त करें अथवा ग्राम प्रधान के स्तर से भेजे जाने वाले सफाई कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से स्कूलों में सफाई करने के लिए भेजें।

Author: AMAN YATRA

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