निंदा- चाणक्य के अनुसार निंदा करना सबसे बुरी आदतों में से एक है. निंदा को निंदा रस भी कहा गया है, क्योंकि जो एक बाद इस आदत को अपना लेता है तो उसे सहज इस आदत से छुटकारा नहीं मिलता है. उसे निंदा करना अच्छा लगने लग जाता है, उसे ज्ञात ही नहीं हो पाता है कि वो कितनी बुरी आदत से घिरता जा रहा है, बुराई करना और सुनना दोनों से ही बचना चाहिए. ये प्रगति में बाधक है. इन बुराईयों से दूर रहने वाले पर लक्ष्मी जी की कृपा सदैव बनी रहती है.
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