लखनऊ में गोस्वामी तुलसी दास ने शुरू की थी ऐशबाग में रामलीला, 16वीं शताब्दी से पहले से हुई शुरुआत; जानिए इतिहास
श्रीराम चरित मानस की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी के पहले ऐशबाग में शुरुआत की शुरुआत की थी। इसके पीछे मंशा यह थी कि निरक्षर भी इस ग्रंथ में रचित श्रीराम की लीलाओं को समझ सकें। गोस्वामी तुलसीदास ने ऐशबाग में चौमासा (बरसात के दिनों में चार माह) का प्रवास किया। गोस्वामी तुलसीदास ने अभिनय के माध्यम से रामकथा का प्रसार करने का प्रण लिया।
लखनऊ, अमन यात्रा । श्रीराम चरित मानस की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी के पहले ऐशबाग में शुरुआत की शुरुआत की थी। इसके पीछे मंशा यह थी कि निरक्षर भी इस ग्रंथ में रचित श्रीराम की लीलाओं को समझ सकें। गोस्वामी तुलसीदास ने ऐशबाग में चौमासा (बरसात के दिनों में चार माह) का प्रवास किया। गोस्वामी तुलसीदास ने अभिनय के माध्यम से रामकथा का प्रसार करने का प्रण लिया। उनके इस पुनीत कार्य में अयोध्या के साधु-संतों ने भी सहयोग किया। रामलीला समिति के अध्यक्ष हरिश्चंद्र अग्रवाल ने बताया कि ऐशबाग के साथ गोस्वामी तुलसीदास ने चित्रकूट, वाराणसी में भी रामलीला की नींव रखी।
वैसे तो ऐशबाग रामलीला समिति की स्थापना 1860 में हुई, लेकिन इसका इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है। अवध के तीसरे बादशाह अली शाह ने शाही खजाने से रामलीला के लिए मदद भेजी थी। ऐशबाग रामलीला के लिए वर्ष 2016 विशेष महत्व का रहा। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ऐशबाग रामलीला में शामिल हुए थे और तीर चलाकर रावण का वध किया था। गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से रामलीला की जो यात्रा शुरू हुई, उसे असली पहचान अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने दी। उन्होंने न केवल यहां ईदगाह और रामलीला के लिए एक साथ बराबर-बराबर साढ़े छह एकड़ जमीन दी बल्कि खुद भी रामलीला में बतौर पात्र शामिल होते रहे। क्रांति के दौरान 1857 से 1859 तक ये रामलीला बंद रही, लेकिन 1860 में ऐशबाग रामलीला समिति का गठन हुआ और तब से लेकर रामलीला का मंच सुचारू रूप से चल रहा। संयोजक आदित्य द्विवेदी ने बताया कि ऐशबाग रामलीला मैदान स्थल पर ही तुलसीदास ने विनय पत्रिका का आलेख किया था। उसी की स्मृति में तुलसी शोध संस्थान की शुरुआत की गई। 2004 में संस्थान का भवन बना। दुनिया भर में प्रसिद्ध 100 रामायण में से 82 का संकलन किया जा चुका है। यहां राम भवन भी बन चुका है। बदलते समय के साथ रामलीला का स्वरूप भी बदलता रहा है। पहले यहां रामलीला मैदान के बीचों-बीच बने तालाबनुमा मैदान में होती थी और चारों ओर ऊंचाई पर बैठे लोग इसे देखते थे। मैदानी रामलीला की जगह अब यहां आधुनिक तकनीक से लैस रामलीला का डिजिटल मंचन होता है।
खजुआ की बाल रामलीला: ऐशबाग की श्री बाल रामलीला आजादी के पहले से हो रही है। यह भी कहा जाता है कि 1945 में स्थापित रामलीला में आजादी का जश्न 1947 में आयोजित रामलीला में मनाया गया था। बाल कलाकार अब बड़े हो गए, लेकिन आने वाली पीढ़ी को इसका पाठ पढ़ाने में लगे हुए हैं।
शरणार्थियों ने की शुरुआत: आलमबाग के वेजीटेबल ग्राउंड में होने वाली रामलीला की शुरुआत 1951 में हुई थी। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान आए हुए शरणार्थियों ने रामलीला की शुरुआत कर एकता का संदेश दिया था। पटकथा व संवादों में हिंदी, उर्दू के साथ पंजाबी की झलक दिखती है।
1824 से हो रहा मंचन: सदर की लाला गुरु चरण लाल रौनियार वैश्य रामलीला की शुरुआत 1824 में हुई थी। सदर के रामलीला मैदान में तब से इसका मंचन हो रहा है। खास बात यह है कि यहां श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के किरदार ब्राह्मण समाज के लोग ही निभाते हैं।
हिंदू-मुस्लिम ने मिलकर की शुरुआत: मौसमगंज की रामलीला में1879 में स्थापित शहर की सबसे पुरानी रामलीला जहां हिंदू-मुस्लिम एकता को कायम रखे हुए हैं। रामलीला के निर्देशक शिव कुमार बताते है कि यहां इकबाल कैशियो पर रामधुन को निकाल कर एकता का संदेश देते हैं।
चिनहट में होगा 88वां मंचन: चिनहट में होने वाली रामलीला इस बार 88वें वर्ष में प्रवेश करेगी। ग्रामीणों ने मिलकर इस रामलीला की नींव रखी थी। धर्म उत्थान के इस पहल में अब युवा भी शिरकत करने लगे हैं। दिलीप कुमार ने बताया कि मंचन लगातार जारी है।
श्री जनता रामलीला के 58 साल: खदरा की श्री जनता रामलीला के 58 साल हो गए हैं। 1964 में श्रीमद्भगवत कथा के साथ इसकी शुरुआत हुई और 1968 से रामलीला का मंचन शुरू हो गया। तक से लगातार मंचन जारी है।
पर्वतीय समाज ने की शुरुआत: पर्वतीय समाज ने 1965 में मिलकर महानगर रामलीला की शुरुआत की। रामलीला में बाल कलाकारों के मंचन के साथ ही संगीतकार, निर्देशक व वरिष्ठ रंगकर्मी पीयूष पांडेय गायन के माध्यम से लीला कराते हैं। कूर्मांचलनगर व कल्याणपुर के साथ ही तेलीबाग में भी पर्वतीय समाज की रामलीला का मंचन शुरू हुआ। पर्वतीय महापरिषद के अध्यक्ष गणेश चंद्र जाेशी ने बताया कि पर्वतीय संस्कृति को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
लोहिया पार्क की पब्लिक रामलीला: पत्नी संग मंच पर उतरेंगे लंकेश ‘लंकेश चौक के लोहिया पार्क में श्री पब्लिक बाल रामलीला का मंचन 1937 से रामलीला हो रही है। पिछले 42 वर्षों से लगातार रावण के किरदार को मंच पर जीवंत करने वाले विष्णु त्रिपाठी ‘लंकेश पत्नी रेनू त्रिपाठी संग मंच पर नजर आते हैं। हालांकि इस बार स्वास्थ्य खराब होने के चलते मंचन को लेकर संशय है।
यहां रेहाना बनती हैं सीता: तेलीबाग के कुम्हार मंडी स्थित डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन पब्लिक बालिका इंटर कालेज परिसर में बाल रामलीला दो दशक से हो रही है। संयोजक डा.आनंद किशोर यादव का कहना है कि डा.अर्चना यादव के निर्देशन में बच्चों के अंदर एकता का भाव जगाया जाता है। रेहाना सीता के किरदार को निभाकर हिंदू-मुस्लिम एकता की दास्तां बयां करती हैं।
श्री शिशु बाल रामलीला समिति: चौक के बागटोला रामलीला में विद्यार्थी और अभिभावक मिलकर रामलीला के के किरदारों को मंच पर जीवंत करते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को जीवंत करने की मशक्कत कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। चौक के फूलवाली गली के निवासियों ने मिलकर 53 वर्ष पहले रामलीला की शुरुआत की थी। लगातार मंचन के साथ ही यहां विद्यार्थियों को मंचन की बारीकियों के साथ ही उन्हें संस्कार भी सिखाया जाता है। इस बार मथुरा के कलाकार मंचन कर रहे हैं।
मंचन के 36 साल: राजाजीपुरम में धर्म उत्थान समिति की ओर से राजाजीपुरम के पीएनटी मैदान में रामलीला का मंचन हो रहा है। संयोजक सतीश अग्निहोत्री ने बताया कि पिछले 36 साल से यहां मंचन हो रहा है। बाहर से आए कलाकार यहां मंचन करते हैं। यहां रावण के पुतले का दहन भी होता है।