गीत
लिखकर खत मैं भेज रही हूं, मां को भी ये दे देना : रामसेवक वर्मा

लिखकर खत मैं भेज रही हूं,
मां को भी ये दे देना।
जी न सकूं मैं अधिक दिनों तक,
सुध मेरी तुम, ले लेना।।
बादल छाए संकट के अब,
बन्द पिंजरे में जीती हूं।
याद सताए पीहर की जब,
घुट-घुट आंसू पीती हो।
आश अधूरी रह जाए न,
मेरा दर्द समझ लेना।।
जी न सकूं मैं अधिक दिनों तक,
सुध मेरी तुम, ले लेना।।१।।
बड़े प्यार से पाला बाबुल,
इस कोमल सी काया को।
जीवन का हर सुख दे डाला,
अपनी भोली छाया को।
रिस्तों ने फिर दी है दुहाई,
उनका मान बढ़ लेना।।
जी न सकूं मैं अधिक दिनों तक,
सुध मेरी तुम ले लेना।।२।
मन का मर्म न समझा कोई,
मुझ पर क्या-क्या गुजरी है।
सपने देखे थे खुशियों के,
उजड़ी अब ये नगरी है।
आए पानी आंखों में जब,
पलकें नीची कर लेना।।
जी न सकू मैं अधिक दिनों तक,
सुध मेरी तुम, ले लेना।।३।।
मौलिक एवं स्वरचित
रामसेवक वर्मा
विवेकानन्द नगर पुखरायां
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
Discover more from अमन यात्रा
Subscribe to get the latest posts sent to your email.