लू से बिगड़ रही परिषदीय विद्यालयों के बच्चों की सेहत जिम्मेदार बने अंजान

सूरज की तपिश हर किसी को झुलसा रही है। ऐसे में शासन और बेसिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों द्वारा कक्षा एक से आठ तक के परिषदीय और मान्यता प्राप्त स्कूलों में भरी दोपहर एक बजे छुट्टी करने के आदेश से विद्यार्थियों की सेहत बिगड़ रही है और जिम्मेदार अंजान बने हुए हैं

कानपुर देहात। सूरज की तपिश हर किसी को झुलसा रही है। ऐसे में शासन और बेसिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों द्वारा कक्षा एक से आठ तक के परिषदीय और मान्यता प्राप्त स्कूलों में भरी दोपहर एक बजे छुट्टी करने के आदेश से विद्यार्थियों की सेहत बिगड़ रही है और जिम्मेदार अंजान बने हुए हैं। वैसे बच्चों की शिक्षा को अनदेखा नहीं किया जा सकता लेकिन इस गर्मी में नौनिहालों के सेहत की चिंता भी स्वाभाविक रूप से की जानी चाहिए। आसमान से बरसती आग और विद्यालय से भरी दोपहर लौटने की विवशता अब छोटे बच्चों पर भारी पड़ने लगी है ऐसे में परिषदीय स्कूलों में दोपहर एक के बजाय 11 बजे छु‌ट्टी करने की मांग पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस समय पूरा प्रदेश लू की चपेट में है। बच्चे क्या बड़े भी इससे परेशान हैं। शुक्रवार को सरवनखेड़ा क्षेत्र के एक विद्यालय में गर्मी के कारण एक बच्चा अचेत हो गया।

इस घटना से शिक्षक व अभिभावक चिंतित हैं। यह एक घटना है जो प्रकाश में आई, ऐसी ही सूचनाएं अन्य जिलों से भी आ रही हैं। विद्यालयों के उपस्थिति रजिस्टर में संख्या स्वतः घटती जा रही है। किसी सरकारी आदेश के अभाव में शिक्षक भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। परिषदीय विद्यालयों ही नहीं अन्य माध्यमों व बोर्ड के विद्यालयों में भी यही हैं स्थिति है। बच्चे या तो आ नहीं रहे या उनकी उपस्थिति की नियमितता भंग हुई है। ज्यादातर निजी विद्यालयों में आमतौर पर गर्मी की छुट्टियों से पहले परीक्षा भी होती है इसलिए बच्चों को विद्यालय भेजने का अभिभावकों पर अतिरिक्त दबाव रहता है। यद्यपि यहां कुछ जिलों में जिलाधिकारियों के आदेश पर छुट्टी का समय घटाया गया है लेकिन अधिकतर जनपदों में परिषदीय विद्यालयों में 1 बजे से पहले छु‌ट्टी नहीं हो रही है।

इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने लू और कड़ी धूप में मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर 11 बजे छुट्टी किए जाने का मांगपत्र महानिदेशक स्कूल शिक्षा को भेजा है। उचित होगा कि छुट्टी का समय घटाया जाए और जिन विद्यालयों में परीक्षाएं प्रस्तावित हैं उन्हें अपने कैलेंडर में आवश्यकतानुरूप परिवर्तन कर कम से कम आठवीं तक के बच्चों का ग्रीष्मावकाश घोषित कर देना चाहिए।

Author: anas quraishi

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