मो. रईस,भोगनीपुर, कानपुर देहात।दारुल उलूम गौसिया मजिदिया के नाज़िमे आला (प्रबंधक) हाफिज इरशाद अशरफी ने शबे बरात की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि यह रात अल्लाह की रहमत और बख्शिश की रात है। उन्होंने बताया कि पैगंबर ए आज़म हुजूर नबी ए करीम ने फरमाया कि जब शाबान की पंद्रहवीं रात आए तो उस रात को जागकर इबादत करो, अल्लाह से दुआ मांगो और अपने गुनाहों की तौबा करो। हाफिज इरशाद अशरफी ने कहा कि इस मुबारक रात में अल्लाह अपने बंदों से मुखातिब होकर फरमाता है— “क्या है कोई जो तौबा करे, मैं उसकी तौबा कुबूल करूं? क्या है कोई रोज़ी मांगने वाला, मैं उसे रोज़ी अता करूं? क्या है कोई बख्शिश मांगने वाला, मैं उसे बख्श दूं?” यह सिलसिला सुबह तक जारी रहता है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात को ग़फलत में न गुज़ारे, बल्कि नफिल नमाज अदा करे, कुरान की तिलावत करे और अल्लाह से अपने तमाम मरहूमीन की मगफिरत की दुआ करे।
दारुल उलूम गौसिया मजिदिया के प्रिंसिपल मुफ्ती तारिक बरकाती ने भी इस मुबारक रात की अहमियत बताते हुए कहा कि इस रात में इंसानों की तकदीर का फैसला होता है। जो इंसान दुनिया में आने वाला होता है या दुनिया से जाने वाला होता है, उसका नाम भी इसी रात लिखा जाता है। उन्होंने कहा कि 13 फरवरी की रात जागकर 14 फरवरी का रोजा रखने से बड़ा सवाब मिलेगा। हाफिज इरशाद अशरफी ने लोगों से अपील की कि इस रात को इबादत में गुजारें और ऐसा कोई काम न करें जिससे किसी को तकलीफ पहुंचे। खासतौर पर नौजवानों को बाइक स्टंट करने से रोकें ताकि वे अपनी जान से खिलवाड़ न करें। उन्होंने कहा कि शबे बरात की रात तौबा, इबादत और अल्लाह की रहमत समेटने का बेहतरीन मौका है, इसे ज़ाया न करें।
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