शरद पूर्णिमा पर जागरण कर स्वयं को जागृत करें : योगाचार्य धर्मेन्द्र
धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक होता है तथा वो 16 कलाओं से सम्पन्न होने के कारण इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है।
कुशीनगर ,अमन यात्रा । हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक होता है तथा वो 16 कलाओं से सम्पन्न होने के कारण इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है। इसके अलावा इसी पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने ब्रज मंडल में गोपियों के साथ रासलीला की थी। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी। इस दिन मां लक्ष्मी के पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और सुख समृद्धि आती है।
शरद पूर्णिमा की अग्रिम बधाई देते हुए योगाचार्य धर्मेंद्र प्रजापति जी ने कहा कि इस दिन शरद पूर्णिमा की रात्रि में अधिक से अधिक समय निकाल कर सभी को प्रातः काल से लक्ष्मी का पूजन करते हुए स्वयं को चंद्रमा की शीतल भरी रोशनी में बैठकर ध्यान-साधना व मंत्र जाप करने चाहिए तथा उसकी रौशनी में हांडी खीर बनाकर सेवन करने से शरीर के विषाक्त पदार्थ कम होते हैं।इसदिन चंद्र पृथ्वी के अत्यंत निकट होने के कारण शीतल रश्मियों के किरणे सीधे शरीर पर पड़ने से शरीर के कई सारे गंभीर रोग जैसे बीपी, तनाव, घबराहट, माइग्रेन, सर दर्द, इंसोफिलिया, जुकाम, खांसी, नजला, साइनस, दमा, अस्थमा इत्यादि कफ संबंधित रोग दूर होकर मन शीतलता को प्राप्त होती है तथा आंखों की ज्योति बढ़ती है। यह ध्यान रहे कि ध्यान करते समय किसी तरह का शरीर पर कोई आभूषण न हो।