शाम ढलते ही किले में जाग जाती हैं भयानक आत्माएं

शाम ढलते ही किले के अंदर चारों तरफ आत्माओं का बसेरा हो जाता है कभी तहखाने से तो कभी शयन कक्ष से चीखने,चिल्लाने,महिलाओं के रोने की आवाजें तो कभी चूड़ियों की तो कभी घूंघरूओं की झंकार तो कभी तलवारों की आपस में टकराने की आवाजें आना शुरु हो जाती हैं।

भानगढ़ – शाम ढलते ही किले के अंदर चारों तरफ आत्माओं का बसेरा हो जाता है कभी तहखाने से तो कभी शयन कक्ष से चीखने,चिल्लाने,महिलाओं के रोने की आवाजें तो कभी चूड़ियों की तो कभी घूंघरूओं की झंकार तो कभी तलवारों की आपस में टकराने की आवाजें आना शुरु हो जाती हैं। चारों तरफ पूरे किले में भूतों का बसेरा हो जाता है जो भी सूरज ढलने के बाद इस किले के अंदर गया वह वापस जिंदा लौट कर नहीं आया। यह सब कुछ कई सालों से वीरान पड़े भयानक एंव खौफनाक किला भानगढ़ की कहानी है।


आखिर कैसे बना भुतहा किला-
भानगढ़ राजस्थान के अलवर जिले मे स्थित है। किले के बाहर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग का साफ साफ बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है कि सूरज ढलने के बाद इस किले के अन्दर जाना मना है। यहां की जनश्रुतियों और इतिहास के झरोखों के मुताबिक अकबर के दरबारी और आमेर के राजा भारमल के पुत्र भगवान दास एक दिन शिकार खेलते खेलते इस इलाके में आ गए। राजा भगवानदास को यह जगह बेहद पसंद आयी। राजा भगवानदास ने 1573 में इस किले का निर्माण करवाया जिसमें सबसे पहले उनके बेटे मानसिंह इसके बाद उनके छोटे बेटे माधवसिंह ने इसे रहने के लिए महल के रुप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। माधव सिंह के पितामाह भान सिंह के नाम पर इस किले का नाम राजा भगवानदास ने भानगढ़ रख दिया।


जैसलमेर के राजा रतन सिंह की पुत्री रत्नावती बेहद खूबसूरत थी। उसकी सुन्दरता के चर्चे दूर दूर तक थे। राजा रतन सिंह ने एक दिन रानी के स्वयंबर में आसपास के कई नामी गिरामी राजाओं को आमंत्रित किया। इसी स्वयंबर में राजकुमारी रत्नावती के रूप का दीवाना बंगाल के काले जादू का माहिर जादूगर व तांत्रिक सिंघिया भी पहुंचा। राजकुमारी रत्नावती ने भानगढ़ के राजा माधव सिंह को अपना वर चुना। यह बात तांत्रिक सिंघिया को नागवार लगी चूंकि वह बंगाल के काले जादू का माहिर था इसलिए काले जादू का प्रयोग करते हुए एक दिन जब रानी की दासी बाजार से रानी के लिए तेल खरीदने गई तो तांत्रिक ने दासी को काले जादू का तेल दे दिया। रानी ने जब तेल देखा तो तेल कटोरे में घूंम रहा था। रानी ने खतरा भांपकर वह तेल महल के बाहर एक पत्थर की चट्टान पर गिरा दिया। तेल के चट्टान पर गिरते ही वह चट्टान सम्मोहित होकर तांत्रिक सिंधिया के पास हवा में उड़ती हुई चल दी।


तांत्रिक सिंधिया ने समझा रानी पत्थर पर बैठ कर उसके पास आ रही है। उसने उसे अपने सीने पर बैठने के लिए कहा जैसे ही चट्टान उसके सीने की तरफ आई तो उसे आभास हुआ कि उसका जादू फेल हो गया है और उस चट्टान मे रानी नही है तो उसने चट्टान के दो टुकड़े कर दिए। उस चट्टान का एक टुकड़ा तांत्रिक के ऊपर गिरा और उसकी मौत हो गई। मरने से पहले उस तांत्रिक सिंघिया ने किले में रहने वाले लोगों को श्राप दिया कि रातों-रात सभी लोग मारे जाएंगे और उनका पुनर्जन्म कभी नहीं होगा। ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेगी। उसी के श्राप के कारण ऐसा कहा जाता है कि किला रातों रात वीरान हो गया। और आज भी किले में रहने वाली महिलाओं, पुरुषों, बच्चों की आत्माएं भटकती हैं। उसके बाद से यह किला वीरान पड़ा है और हर रात यहां मारे गये उन्ही लोंगो की आत्माए भटकती है और शाम ढलते ही उन्ही आत्माओं का बसेरा हो जाता हैं।


किले के अन्दर है क्या
लोगों में ऐसी भा्रंतियां हैं और ऐसा कहा जाता है कि किले के अन्दर जो भी गया वो वहां से जिंदा वापस नहीं आता हैं। वहां पर लोगों को थप्पड़ मारे जाते हैं कोई गला दबाता है। आत्माए चीखती व घुंधरूयों की भयानक आवाजे आती हैं। तलवारों के टकराने की आवाजें भी सुनाई देती हैं। चारो तरफ भूतों का बसेरा हो जाता है। ऐसा भी यहां पर देखा गया है कि रानी रत्नावती का शयन कक्ष जो इस किले की सबसे खैफनाक जगह जहां सबसे ज्यादा डरावनपन लगता है। जब भी कोई शयन कक्ष की तरफ जाता है तो ऐसा लगता है जैसे उसके आगे व पीछे और अगल बगल में कोई चल रहा है और किसी के होने का आभास होता हैं। दाएं बाएं और पीछे मुड़कर देखने पर कोई नजर नही आता है। शयनकक्ष के पास ही एक तहखाना भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह रानी रत्नावती के नहाने की जगह थी। उसी तहखाने में ऐसा लगता है जैसे कोई झरना बह रहा हो और झरने की आवाज साफ सुनाई देती है। अब राजस्थान जैसे इलाके में झरना कहां से आया। सारी आशंकाओं और उत्सुकताओं के साथ मै भी एक बार वहां के केयरटेकर राजकिशोर के साथ शाम ढलने के बाद किले के अन्दर गया तो मैने किले के अन्दर न तो किसी आत्मा और भूत प्रेत को देखा और न ही किसी ने थप्पड़ मारा और न ही किसी के रोने चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनाई दी परन्तु ऐसा जरूर लगा जैसे कोई न कोई है जरूर।
किला सुन्दर पर्यटन स्थल बन सकता है।


किले के सम्बंध में अफवाहें भी हो सकती हैं। किला वीरान होने के बाद यहां पर किसी का आना जाना नहीं रहा। यह जगह बदमाशों के लिए महफूज जगह थी हो सकता है उनके द्वारा भूत-प्रेत होने की अफवाह फैलाई गई हो ताकि उस किले के आसपास कोई आम लोग दिन ढलने के बाद और दिन निकलने से पहले आ जा न सकें। किले के वीरानेपन का फायदा उठाकर आसानी से चोर बदमाश वहां पर अपना रहने का अड्डा बना सके। विज्ञान भूत प्रेत को नही मानता है और मै भी किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहा हूं लेकिन इतना जरूर है कि इस किले में कुछ न कुछ है जरूर जो किसी के होने का आभास कराता है। भानगढ किले में कोई न कोई नकारात्मक ऊर्जा जरूर जमा है जो बाहर नहीं निकल पा रही है यदि पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था की जाए और उचित तरीके से वृक्षारोपण किया जाये। सरकार द्वारा इसकी उचित देखभाल की जाये और लोगों के मन से इस किले को लेकर भ्रांतियों को दूर किया जाये तो यह किला भी पर्यटकों के लिये एक खूबसूरत पर्यटन स्थल बन सकता है।

एस0खान,भानगढ

 

 

नोट- इस कहानी का उददेश्य मात्र मनोरंजन है इसकी वास्तविकता एंव सत्यता का दावा नही किया जाता है।

 

Author: bebeb bebeb

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