राजेश कटियार, कानपुर देहात। शिक्षक जिन्हें कभी समाज में आदर्श और मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता था अब धीरे-धीरे अपने वास्तविक उद्देश्य से भटकते जा रहे हैं। आज के शिक्षा तंत्र में शिक्षक सिर्फ पाठ्यक्रम और आदेशों का पालन करने वाले रोबोट से प्रतीत होते हैं। उनकी अपनी स्वायत्तता और शिक्षा की रचनात्मकता कहीं खो सी गई है। एक समय था जब शिक्षक छात्रों के भीतर ज्ञान की ज्योति जलाने के लिए स्वतंत्र थे परंतु अब वे सरकारी आदेशों और सख्त पाठ्यक्रमों में इस कदर जकड़ गए हैं कि उनका वास्तविक ज्ञान-संचार करने का उद्देश्य धुंधला पड़ता जा रहा है। शिक्षक को केवल एक रोबोटिक भूमिका में सीमित कर दिया गया है जिसमें उनके हर कदम को सटीक रूप से नियंत्रित किया जाता है। वे अब अपनी रचनात्मकता और छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण के स्थान पर सरकारी या संस्थागत आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उनके ऊपर न केवल प्रशासनिक दबाव है बल्कि पाठ्यक्रम में तेजी से बदलाव, औपचारिकताएँ और परीक्षा-उन्मुख शिक्षा प्रणाली ने भी उन्हें जकड़ लिया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षक को अपने छात्रों की आवश्यकताओं और उनकी क्षमताओं के अनुरूप पढ़ाने की छूट बहुत कम मिलती है।
पहले जहाँ शिक्षक बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते थे अब उनका अधिकांश समय कागजी कार्यवाही और प्रशासनिक कार्यों में बीत जाता है। इसके परिणामस्वरूप शिक्षक का काम अब सिर्फ ज्ञान प्रदान करना नहीं बल्कि आदेशों का पालन करना और परीक्षा के लिए छात्रों को तैयार करना रह गया है।इसके अलावा तकनीकी विकास के साथ-साथ डिजिटल शिक्षा का आगमन भी शिक्षकों के लिए एक नया दबाव लेकर आया है। जहां पहले शिक्षक की भूमिका मात्र कक्षा में पढ़ाने तक सीमित थी अब उन्हें नई तकनीकों और ऑनलाइन संसाधनों के माध्यम से छात्रों को शिक्षा देने की भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस प्रक्रिया में शिक्षक अपनी मूल शिक्षा पद्धतियों से दूर होते जा रहे हैं और उनकी भूमिका एक शिक्षा प्रदाता से अधिक एक प्रबंधन कर्मी की हो गई है।
शिक्षक का यह परिवर्तन न केवल उनके स्वयं के लिए एक चुनौती है बल्कि इससे छात्रों की शिक्षा पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। जब शिक्षक को केवल आदेशों का पालन करना पड़ता है और उनकी अपनी रचनात्मकता को दबा दिया जाता है तो छात्रों को भी उस रचनात्मकता का अनुभव नहीं होता है। इस प्रकार एक यांत्रिक और निर्देशित शिक्षा प्रणाली में छात्रों का विकास अवरुद्ध हो जाता है और वे अपने स्वयं के विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त नहीं कर पाते। समाज में शिक्षा के प्रति इस दृष्टिकोण को बदलने की सख्त आवश्यकता है।
शिक्षक केवल पाठ्यक्रम और आदेशों का पालन करने वाले कर्मचारी नहीं होने चाहिए बल्कि उन्हें वह स्वतंत्रता मिलनी चाहिए जो उनके छात्रों की अद्वितीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक है। जब शिक्षक स्वतंत्र रूप से शिक्षा देंगे तभी वे छात्रों के सर्वांगीण विकास में योगदान दे पाएंगे। इसके लिए न केवल सरकार को अपने नियमों में लचीलापन लाना चाहिए बल्कि स्कूलों को भी शिक्षकों की भूमिका को पुनः परिभाषित करना चाहिए। बंधनों में जकड़ा शिक्षक केवल पाठ्यक्रम और आदेशों का पालन करने वाला रोबोट नहीं हो सकता।
शिक्षा का असली उद्देश्य छात्रों को जीवन के हर पहलू में तैयार करना है और इसके लिए शिक्षकों को स्वतंत्रता, नवाचार और रचनात्मकता की आवश्यकता होती है। शिक्षकों को समाज में उस पुराने सम्मान और स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करना होगा जिससे वे केवल ज्ञान के संचालक नहीं बल्कि भविष्य के निर्माणकर्ता बन सकें।आज के शिक्षकों को यह समझने की जरूरत है कि वे चाहे जितने भी बंधनों में जकड़े हों उनकी असली शक्ति उनकी शिक्षा देने की कला और छात्रों के व्यक्तित्व को ढालने की क्षमता में है। उन्हें केवल आदेशों के अधीन रहकर नहीं बल्कि अपनी स्वयं की स्वतंत्रता और सृजनात्मकता को पहचानकर आगे बढ़ना होगा।
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