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कानपुर देहात

शिक्षकों के प्रति वो नजरिया अपनाना जरूरी जिससे समाज में शिक्षक की भूमिका आए सामने

गुरु के प्रति आदर सम्मान व्यक्त करने वाले दिन चले गए हैं। अब लोग शिक्षकों को वह सम्मान नहीं देते जो पुराने जमाने में दिया करते थे। आज की पूरी शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों पर अविश्वास पर टिकी हुई है। यह व्यवस्था शिक्षकों से संवाद पर भरोसा नहीं करती, ऐसी व्यवस्था से क्या और कैसे पार पाया जाय यह शिक्षकों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

अमन यात्रा ,कानपुर देहात। गुरु के प्रति आदर सम्मान व्यक्त करने वाले दिन चले गए हैं। अब लोग शिक्षकों को वह सम्मान नहीं देते जो पुराने जमाने में दिया करते थे। आज की पूरी शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों पर अविश्वास पर टिकी हुई है। यह व्यवस्था शिक्षकों से संवाद पर भरोसा नहीं करती, ऐसी व्यवस्था से क्या और कैसे पार पाया जाय यह शिक्षकों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस संदर्भ में एक शिक्षक का अभिभावकों से कहना है कि 10 मिनट लेट हो जाने पर मास्टरों पर ऊँगली उठाने वाले लोग बताएं कि किस अधिकारी के कार्यालय में जाने पर आपको उसके आने का घंटो इन्तजार नहीं करना पड़ता ? किस कार्यालय में जाने के बाद आपको यह सुनने को नहीं मिलता कि साहब आज नहीं हैं ? हफ्तों इन्तजार करने के बाद जब साहब के किसी दिन आने की सूचना मिलती है तो आप समय से कार्यालय पहुँच जाते हैं और 12 बजे तक साहब के आने का इंतजार करते हैं जब साहब गाड़ी से उतरते हैं तो रस्ता छोड़कर झुककर हाथ जोड़कर उनके सम्मान में अपना सम्मान गिरवी रखते हैं फिर साहब आसन ग्रहण करते हैं और आप अपनी बारी का इंतजार करते हैं। बारी आने पर हाथ जोड़कर यस सर, जी सर कहते हुए काँपते हाथों से अपनी फरियाद सुनाते हैं कि साहब कुछ दया कर दें।

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आधी अधूरी फरियाद सुनने के बाद साहब आपको जाने का हुक्म देते हैं और लौटते समय आप हाथ जोड़कर 3 बार झुक झुककर सलामी ठोंकते हैं इस उम्मीद में कि साहब एक बार आपकी सलामी स्वीकार कर लें लेकिन साहब कोई जवाब नहीं देते और उनका अर्दली आपको धकियाते हुए कहता है कि चलिये अब बाहर निकलिये। इतनी दीनता दिखाने के बाद और इतना सम्मान पाने के बाद आप खुशी-खुशी घर जाते हैं कि आज साहब मिल तो गये और उनसे बात हो गयी। यही लोग स्कूल में आकर शेर बनते हैं और उस मास्टर के सामने अपना पराक्रम दिखाते हैं जो उनके बच्चों का भविष्य संवारने के लिये गेंहू तक पिसवाकर रोटी खिलाता है। हाथ पकड़कर लिखना सिखाता है। डर से आंसू निकलने पर आपके बच्चे को गोदी में बैठाकर आंसू तक पोछता है। गली में जुआ खेलते दिख जाने पर आपके बच्चे को डाँटता भी है और ऐसे शिक्षक पर आपको धौंस जमाते हुए तनिक भी लज्जा नहीं आती।

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आपके बच्चे को डाँट देने पर आप स्कूल में सवाल करने चले आते हैं कि मास्टर तुमने मेरे बच्चे को डाँटा क्यों ? भले ही आप किसी पुलिस वाले से अक्सर बिना वजह डाँट खाते रहते हों उनसे तो बिन गलती लाठी खाने पर भी आप माफी मांगने लगते हैं किन्तु मास्टर द्वारा अनुशासन बनाये रखने के लिए दी गयी डॉट पर भी आपको जवाब चाहिए। आप ये भूल जाते हैं कि जब आप अपने बच्चे का रोना सुनकर उसकी पैरवी करने स्कूल आते हैं तो उसी समय आपके बच्चे के मन से अनुशासन के नियमों का भय निकल जाता है और वह और भी अनुशासनहीन हो जाता है। उसके मन से दंड का भय निकल जाता है और वह और भी उद्दंड हो जाता है। वह ये सोचने लगता है कि गलती करने पर उसके पापा उसका पक्ष लेंगे इसलिए गुरुजी से डरने की जरूरत नहीं। फिर तो वह स्कूल का कोई भी कार्य न करेगा। आप अपने बच्चे की पढ़ाई चाहते हैं या उसकी स्वच्छन्दता।

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कानून का भय यदि समाप्त हो जाय तो हर कोई कानून का उल्लंघन करने लगेगा ठीक उसी प्रकार अनुशासन का भय यदि खत्म हो जाय तो बच्चा स्वच्छन्द हो जाएगा। विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी। ये हमारा दुर्भाग्य है कि बेसिक में पढ़ने वाले कई बच्चों के माता-पिता अनुशासन के महत्त्व से बिलकुल अनजान हैं और हर दंड को नकारात्मक ही लेते हैं जबकि भय बिना अनुशासन भी सम्भव नहीं है और इसके बिन अनुशासन शिक्षक छात्र सम्बन्धों की कल्पना बेमानी सी होगी। शिक्षक को सदैव खुशी होती है जब उसका कोई शिष्य उससे भी आगे निकलता है और इसी उद्देश्य से वह शिक्षा भी देता है कि उसका प्रत्येक शिष्य सफल हो इसलिए आप शिक्षक के कार्यों का छिद्रान्वेषण न करें, न ही उस पर शंका करें। मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि समाज और मीडिया भी सरकारी शिक्षा और शिक्षकों की सतही खामियों को देख-दिखाकर वास्तविक जिम्मेदारों को जवाबदेही से बचाने में सहायक रहे हैं और अफसोस यह है कि शिक्षकों द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों का व्याख्यान नहीं करते बल्कि नकारात्मक खबरें दिखाकर शिक्षकों के प्रति लोगों में हीन भावना भर रहे हैं।

Author: aman yatra

aman yatra

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