शिक्षकों को रास नहीं आ रही ऑनलाइन अटेंडेंस

परिषदीय स्कूलों में डिजिटल हाजरी का जिन्‍न फिर से निकलने के बाद उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों और शिक्षक संगठनों ने महानिदेशक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और इस आदेश के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया है। वहीं इस आदेश को कानूनन भी गलत बताया जा रहा है तो यह भी कहा जा रहा है कि यह आदेश चपरासी से लेकर महानिदेशक तक लागू होना चाहिए

कानपुर देहात। परिषदीय स्कूलों में डिजिटल हाजरी का जिन्‍न फिर से निकलने के बाद उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों और शिक्षक संगठनों ने महानिदेशक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और इस आदेश के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया है। वहीं इस आदेश को कानूनन भी गलत बताया जा रहा है तो यह भी कहा जा रहा है कि यह आदेश चपरासी से लेकर महानिदेशक तक लागू होना चाहिए। यही नहीं बल्कि मांग है कि पहले महानिदेशक खुद दुर्गम स्थानों व विपरीत परिस्थितियों और आपदा के समय सरकारी गाड़ी छोडकर अपने साधन से स्कूल जाकर डिजिटल हाजरी लगाकर दिखाए फिर अध्यापकों पर यह मौत का वारंट थोपे। शिक्षकों की वेदना व परेशानी को देखते हुए नसीहत दी जा सकती है कि डीजी साहिबा कंचन वर्मा जी शिक्षक भी आपकी तरह मनुष्य हैं, मशीन नहीं कि जैसा चाहो वैसा चलाओ। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजीत सिंह व महामंत्री भगवती सिंह ने महानिदेशक कंचन वर्मा को पत्र भेजकर कहा है कि आपने 18 जून 2024 को आदेश किये हैं कि आगामी 15 जुलाई से राज्य के सभी परिषदीय स्कूलों के अध्यापकों को डिजिटल हाजरी लगानी होगी। इस संदर्भ में संगठन ने 20 नवंबर 2023 को अपने ज्ञापन में मांग की थी कि डिजिटाइजेशन से जुड़ी मौलिक समस्याओं के निस्तारण के पश्चात ही उक्त व्यवस्था लागू की जाए किंतु आपके कार्यालय द्वारा उक्त मांग पर कोई विचार नहीं किया गया। इसके बाद 6 मार्च 2024 व 12 मार्च 2024 को भी आपको स्मरण कराया गया था। इसी संदर्भ में 14 मार्च 2024 को आपके कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया गया था। धरने के दौरान आपने वार्ता में प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया था कि डिजिटाइजेशन से जुड़ी मौलिक समस्याओं के निस्तारण के पश्चात ही इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा किंतु आपने ऐसा नहीं किया अपितु डिजिटाइजेशन व्यवस्था को जबरन लागू करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

जिससे ऐसा लगता है कि आप दमनपूर्वक ऑनलाइन उपस्थित व्यवस्था लागू करना चा रही हैं जिसका राष्ट्रीय शैक्षिक संगठन घोर विरोध करता है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दे दी है कि प्रमुख समस्याओं का समाधान होने तक डिजिटाइजेशन व्यवस्था का पूर्णतः विरोध व बहिष्कार रहेगा क्योंकि शिक्षक भी मनुष्य है, मशीन नहीं है। उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाई स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष योगेश त्यागी कहते हैं कि ऑनलाइन व्यवस्था शिक्षकों की सेवा शर्तों के विरुद्ध है। उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी नियमावली 1956 तथा बेसिक शिक्षा परिषद नियमावली 1972 अद्यतन संशोधित 1982 के भी विरुद्ध है। जब प्रदेश के किसी भी विभाग में ऑनलाइन उपस्थितिलागू नहीं है तो फिर बेसिक शिक्षकों पर नियमावली के विरुद्ध जाकर सौतेला व्यवहार क्यों ? शिक्षकों पर अविश्वास क्यों ? परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों की फोटो युक्त उपस्थिति बाल अधिकार अधिनियम के विरुद्ध है। कानून का खुला उल्लंघन है।

अधिकारी एवं शिक्षक क्यों करें उल्लंघन-
यह आदेश किसी भी समस्या का समाधान करने वाला नहीं है। इस आदेश को रद्द कराने की जरूरत है क्योंकि डिजिटाइजेशन मौत का फरमान है। जो हमे स्वीकार नहीं है। उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाई स्कूल शिक्षक संघ इस लड़ाई को 3 सितंबर 2019 से लड़ रहा है। हमने खुलकर प्रेरणा ऐप का बहिष्कार किया
है और मैं आज भी कर रहा हूँ इस सम्बंध में संगठन की एक रिट माननीय उच्च न्यायालय खण्ड पीठ लखनऊ में विचाराधीन है। जिस पर विभाग ने अब तक प्रति शपथ पत्र नहीं दाखिल किया है। 6 जुलाई 2024 को प्रदेश संगठन की बैठक लखनऊ दारुलशफा में होने जा रही है उसमे सभी जिलों के अध्यक्ष महामंत्री प्रतिभाग करेंगे। उसमें अगली रणनीति पर निर्णय लिया जाएगा। संगठन की मांग है कि इस व्यवस्था में बेसिक शिक्षा विभाग के चपरासी से लेकर महानिदेशक तक तथा प्रदेश के राज्य कर्मचारी और अधिकारी सभी को शामिल किया जाए। वह भी अपनी ऑनलाइन उपस्थिति दें। आप निश्चिंत रहें इस काले आदेश को वापस कराया जाएगा। परन्तु निर्भय होकर किसी संगठन के सदस्य हों ? हम लड़ेंगे यह भरोसा दिलाता हूं। संगठनों के साथ-साथ हमारा मानना है कि शिक्षकों को भी आकस्मिक अवकाश में हाफ डे लीव का विकल्प अन्य विभागों की तरह से दिया जाए। आकस्मिक घटना या आपदा की स्थित में 30 मिनट तक पांच कार्य दिवस में विलंब से पहुंचने अथवा माह में अधिकतम ढाई घंटे तक विलंब होने पर उसे अनुपस्थित न माना जाए अपितु एक आकस्मिक अवकाश संबंधित शिक्षक के सीएल बैलेंस से समायोजित कर लिया जाए। बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों को भी राज्य कर्मचारियों की तरह 30 ईएल प्रदान की जाए।

यदि इसमें कोई विधिक समस्या है तो महाविद्यालयों की तरह से उन्हें भी प्रिविलेज अवकाश दिया जाए। प्राकृतिक आपदा/मौसम की प्रतिकूलता तथा विभागीय कार्यक्रमों में प्रतिभागिता की स्थिति में बीएसए को ऑनलाइन उपस्थित में शिथिलता प्रदान करने का विकल्प दिया जाए। पंजिकाओं का डिजिटाइजेशन सर्वर की उपलब्धता पर निर्भर है। एक ही समय में अधिक लोड होने के कारण सर्वर क्रेश होने पर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन उपस्थिति के दौरान अपना फोटो भी अपलोड करना सरासर गलत है। शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं की डिजिटल माध्यम से एक निश्चित अवधि में उपस्थिति दर्ज कराना किसी भी ढंग से ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि दूर दराज गांव से आने वाले शिक्षकों को हमेशा समयबद्ध पहुंचना एक चुनौती पूर्ण कार्य है। आंधी-तूफान, ओलावृष्टि, कोहरा, मार्ग बाधित, धार्मिक व राजनीतिक जुलूस, कांवड़ यात्रा में स्लो ट्रैफिक आदि कई कारणों से कभी कभार स्कूल पहुंचने में देरी हो जाती है। ऐसे में उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा। सभी शिक्षक संगठनों ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार हमारी नियुक्ति बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए हुई हैं। यह गैर शैक्षणिक कार्य आरटीई 2009 के अनुरूप नहीं है।

ऑनलाइन उपस्थिति की कुछ शिक्षक कर रहे हैं सराहना-
एक पूर्व शिक्षक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आप शिक्षकों की समस्याएं उठा रहे हो इसके लिए आपको साधुवाद। उनका कहना है कि डिजिटल हाजरी का महानिदेशक का आदेश गलत नहीं है क्योंकि प्रदेश के 20 प्रतिशत परिषदीय स्कूलों में ही अध्यापक समय पर पहुंचते हैं। 80 फीसदी नहीं। उसी कारण से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। उन्होंने कहा कि खुद मेरा सहायक पिछले 8 साल से एक भी दिन समय पर स्कूल नही आया है। उन्होंने इस पर दुःख व्यक्त किया है कि स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ नही रही है और हम खुद को सुधारने की बजाय सुधारात्मक आदेशों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने विजय किरन की कार्यप्रणाली का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि आकस्मिक स्थिति के लिए ईएल आदि की व्यवस्था जरूर की जानी चाहिए। कुछ विसंगतियां हैं इस आदेश में वे दूर होनी चाहिए। वहीं शिक्षकों को खुद में सुधार कर समय पर स्कूल जाने की आदत डालनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने शिक्षकों की लड़ाई खुद लड़ी है।

शिक्षा मंत्री रामगोविंद से 2012 में पदोन्नति आदेश कराए हैं। कई और निर्णय हुए हैं। पहले शिक्षक संगठन नही थे लेकिन जब से राज्य में योगी आदित्यनाथ जी की सरकार बनी है तब से राजनीति की तरह अनगिनत शिक्षक संगठन बन गए हैं और वे संगठन योगी विरोध में कार्य कर रहे हैं। 2022 के चुनावों में भी योगी जी का विरोध इन्होंने किया लेकिन वे अपने बूते विजयी हुए। उन्होंने फिर कहा कि परिषदीय अध्यापक खुद को सुधारें और डिजिटल हाजरी का विरोध करना छोड़े। शिक्षा क्षेत्र व बच्चों के भविष्य के बारे में सोचे। अपने बारे में नहीं। हमने उनसे कहा कि आप अपना बयान जारी कीजिये। तो वे बोले लिखित में बयान देने से प्रदेश में मेरा विरोध होगा क्योंकि आज वही लाबी हावी है। उन्होंने दोहराया डिजिटल हाजरी बुरी नही है अगर हम खुद समय के पाबंद हैं तो डिजिटल हाजिरी बहुत ही अच्छी व्यवस्था है। उन्होंने यह भी कहा कि जो शिक्षक कभी कभार स्कूल जाते हैं या हर समय देरी से जाते हैं वे ही ऑनलाइन अटेंडेंस का विरोध कर रहे हैं।

Author: anas quraishi

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