शिक्षक ऑनलाइन हाजिरी पर जता रहे आपत्ति, सड़क से सदन तक गूंज रही है शिक्षकों की आवाज
शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति को लेकर चौथरपा तहलका मचा हुआ है। एक तरफ महानिदेशक साहब शिक्षकों को तुगलकी फरमान में जकड़ना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर शिक्षक उनके इस अव्यवहारिक आदेश को मानने से इनकार कर रहे हैं। शिक्षकों की ऑनलाइन हाजिरी का मामला अब सड़क से लेकर सदन तक गूंज रहा है।
राजेश कटियार, कानपुर देहात। शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति को लेकर चौथरपा तहलका मचा हुआ है। एक तरफ महानिदेशक साहब शिक्षकों को तुगलकी फरमान में जकड़ना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर शिक्षक उनके इस अव्यवहारिक आदेश को मानने से इनकार कर रहे हैं। शिक्षकों की ऑनलाइन हाजिरी का मामला अब सड़क से लेकर सदन तक गूंज रहा है। शुक्रवार को प्रदेश के समस्त बीआरसी केंद्रों पर शिक्षकों द्वारा धरना प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम सम्बोधित ज्ञापन खंड शिक्षा अधिकारियों को सौंपा गया जिसमें कहा गया कि महानिदेशक स्कूल शिक्षा लगातार बेसिक शिक्षा में प्रयोग के नाम पर प्रदेश के लाखों शिक्षकों को प्रताड़ित करने का कार्य कर रहे हैं।
जबरदस्ती प्रदेश के बेसिक शिक्षकों पर कर्मचारी आचरण एवं अनुशासन नियमावली, बेसिक शिक्षा परिषद नियमावली के विरुद्ध जाकर मनमाने आदेश भय दिखाकर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। विभाग द्वारा परिषदीय विद्यालयों में टेबलेट दिए गए हैं उनमें सिम और डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया परन्तु जबरदस्ती प्रदेश के बेसिक शिक्षक से अपनी आईडी से निजी नाम से सिम और डेटा शिक्षक के पैसे से खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। शिक्षकों की मूलभूत सुविधाओं एवं महत्वपूर्ण समस्याओं का अधिकारियों के स्तर से कोई भी निस्तारण नहीं किया जा रहा है और इसके उलट शिक्षकों पर वाहियात के कार्यों को थोपा जा रहा है। इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। शिक्षकों का कहना है कि हमारा उद्देश्य विभागीय कार्यों में अवरोध उत्पन्न करना नहीं है।
यदि ऐसा होता तो पिछले कई वर्षों से शिक्षक/शिक्षिकाएं अपने व्यक्तिगत मोबाइल/सिम/डाटा से विभागीय कार्य नहीं कर रहे होते। डीबीटी जैसी योजना जमीन पर न उतर पाती। हमारा स्मार्टफोन जो व्यक्तिगत उद्देश्य से खरीदा गया था केवल विभागीय एप के डाटा से पटा पड़ा है। बिना कन्वर्जन कास्ट व बिना फल लागत के कभी भी एमडीएम बाधित नहीं हुआ और स्कूल के बाद भी सरकारी कार्य करते हैं। आनलाइन उपस्थिति का भी विरोध नहीं है अगर ऑनलाइन उपस्थिति लेने से पूर्व अनुकूल वातावरण का सरकार सृजन कर दे।
तुगलकी फरमान में बेसिक शिक्षक दूर दराज के जिस भौगोलिक / सामाजिक परिवेश में काम करते हैं उसका ध्यान नहीं रखा गया।ऑनलाइन उपस्थिति लेने से पूर्व सारे गैर शैक्षकणिक कार्य क्यों नहीं बन्द करवाये गये। विद्यालय अवधि में विद्यालय से सम्बन्धित बहुत कार्य ऐसे होते हैं जिनके लिए विद्यालय से बाहर जाना ही पड़ेगा जैसे एमडीएम / गैस की व्यवस्था, बैंक आदि। अब तो अधिकतर अवकाशों में विद्यालय खोले जा रहे हैं जिसका कोई प्रतिकर अवकाश भी नहीं दिया जा रहा है। कोई छुट्टी आती नहीं कि विद्यालय खोलने की योजना पहले बन जाती है।प्रतिदिन विभिन्न कार्यों को करने हेतु आदेशों की भरमार है। शिक्षक एक आदेश पढ नहीं पाता कई आदेश वेटिंग में लगे होते हैं जो कहीं न कहीं पठन पाठन को बाधित करते हैं।आकस्मिक स्थिति के लिए कर्मियों की भांति हाफ डे लीव होना चाहिए।अर्जित अवकाश की व्यवस्था न होने से शिक्षक अपना विवाह/पुत्र-पुत्रियों का विवाह आदि चिकित्सीय अवकाश लेकर कर रहे हैं। वर्षों से शिक्षक अर्जित अवकाश मांग रहे हैं चाहे ग्रीष्मावकाश में कटौती ही क्यों न हो।सरकारी कर्मियों के लिए सामूहिक बीमा अनिवार्य है।
हमारे लिए जोखिम क्यों। सामूहिक बीमा में वेतन आयोग के क्रम में जारी शाानादेशों का अनुपालन 14 साल बाद भी नहीं हो रहा है। 80 फीसदी प्रधानाध्यापकों के पद समाप्त कर पदोन्नति के अवसर भी समाप्त कर दिये गये। राज्य कर्मियों की भांति एसीपी क्यों नहीं। एक ही पद पर 22 वर्ष की संतोषजनक सेवा पर सिर्फ 20 फीसदी को प्रोन्नत वेतनमान क्यों सबको क्यों नहीं। वर्षों से जनपद के अन्दर स्थानान्तरण / पदोन्नति राह देखते देखते आंखें पथरा गयी। इसके लिए दोषी कौन। राज्य कर्मियों की भांति शिक्षकों की बीमारी के इलाज की कोई सुविधा नहीं। अभिभावक द्वारा यूनीफार्म / आधार न बनवाने पर बच्चों को स्कूल न भेजने पर शिक्षक कैसे दोषी। बच्चों का आधार न होने, अभिभावक का खाता न होने या खाते में धनराशि न पहुंचने पर ऐसे बच्चों के साथ भेदभाव क्यों, उन्हें सुविधाओं से वंचित रखना क्या यह निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम का उल्लंघन नहीं। आखिर इसके लिए कौन दोषी है। क्या जियो लोकेशन आधारित ऑनलाइन उपस्थिति केवल बेसिक शिक्षकों लिए ही जरूरी है।
जिनको वाहन भत्ता तक दिया जाता है उनके लिए क्यों नहीं। क्या शिक्षक ईमानदारी में अन्य सभी अधिकारियों / कर्मियों से अधिक भ्रष्ट है। व्यक्तिगत संशाधनों जैसे व्यक्तिगत मोबाइल सिम आदि का उपयोग नहीं करना चाहते। व्यक्तिगत डाटा की गोपनीयता / सुरक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है। प्रेरणा ऐप को बनाने वाली कम्पनी कह रही है कि एप इंस्टाल करने पर अपने व्यक्तिगत मोबाइल का पूरा डाटा उससे शेयर करना होगा। कम्पनी यह भी कह रही है कि डाटा सुरक्षा की 100 प्रतिशत की गारण्टी नहीं दी जा सकती। कम्पनी यह भी कह रही है कि 13 वर्ष से कम आयु के बच्चे का डाटा एकत्रित नहीं करती है तो फिर ऐसा क्यों किया जा रहा है। सोचनीय है। भारत सरकार की गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए शिक्षक के पास से एमडीएम बनवाने / रखरखाव की जिम्मेदारी क्यों नहीं हटायी जाती। संकुल/ब्लॉक में होने वाली समीक्षा बैठकें आदि शैक्षणिक कार्य में आता है तो विद्यालय अवधि में बैठक क्यों नहीं होनी चाहिए। 13 फरवरी 2019 के शासनादेश के अनुसार सभी एनपीएस खाताधारक शिक्षकों के खाते नियुक्ति तिथि से अब तक ब्याज सहित राज्यांश क्यों नहीं जमा किया गया जबकि महानिदेशक ने तत्काल अनुपालन का आश्वासन दिया था।
अनुदेशकों/शिक्षामित्रों को केवल किराया भर का मानदेय दिया जा रहा है क्या इतने मानदेय पर परिवार सरवाइव कर सकता है। वे भी शिक्षण कार्य कर रहे हैं क्यों सम्मानजनक मानदेय नहीं दिया जा रहा है। शिक्षक शिक्षण योजना बनाने हेतु तैयारी के घण्टे कब दिये जाएंगे। विद्यालय अवधि में एक भी पीरियड खाली नहीं विद्यालय अवधि के बाद ढेर सारे विभागीय, ऑनलाइन कार्य, गैर विभागीय कार्य तो शिक्षण योजना कब बनेगी। विभाग उपरोक्त बिन्दुओं पर गम्भीरता से विचार कर समाधान निकाले। ऑनलाइन उपस्थिति हेतु अनुकूल वातावरण सृजन होने तक हमारा विरोध जारी रहेगा। जब तक हमारी समस्याओं का निराकरण नहीं होता तब तक हम ऑनलाइन अटेंडेंस स्वीकार नहीं करेंगे।