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लखनऊ / कानपुर देहात। बेसिक शिक्षा विभाग के लाख प्रयास के बाद भी स्कूलों की व्यवस्थाओं में सुधार नहीं हो पा रहा है लगातार चल रहे निरीक्षण अभियान ने स्कूल शैक्षणिक गुणवत्ता की पोल खोल दी है। इतना ही नहीं शिक्षा अधिकारियों द्वारा किए जा रहे लगातार निरीक्षण के बाद भी शिक्षक अनुपस्थित मिल रहे हैं छात्र छात्राओं की उपस्थिति में भी कोई सुधार नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि गुणवत्ता सुधारने के लिए जून से लगातार निरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है। महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरन आनंद ने सभी जिलों के बीएसए को पत्र भेजकर एक बार फिर विशेष निरीक्षण अभियान चलाने का निर्देश दिया है विशेष निरीक्षण अभियान 31 अक्तूबर तक चलाया जाएगा।
इसके तहत विद्यालयों में बच्चों को निपुण बनाने के लिए उठाए जा रहे कदमों की प्रगति, योजनाओं के संचालन, मध्याह्न भोजन की स्थिति, शिक्षकों और छात्र-छात्राओं की उपस्थिति आदि का निरीक्षण किया जाएगा। निरीक्षित विद्यालयों की आख्या पर नियमित व अनिवार्य रूप से सूचना राज्य परियोजना कार्यालय के साथ ही मध्याह्न भोजन प्राधिकरण कार्यालय को भी अपलोड करने का निर्देश दिया गया है।
बताते चलें शासन साक्षरता का प्रतिशत बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है लेकिन उसके नुमाइंदे ही व्यवस्था को चौपट करने में लगे हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्र के परिषदीय स्कूलों की हालत यह है कि पिछड़े विकासखंडों में समय के बाद स्कूल खुल रहे हैं तो समय से पहले ही स्कूल बंद हो जाते हैं। इन स्कूलों में अपडाउन करने वाले शिक्षक स्कूलों में बच्चों की जल्दी छुट्टी करने के बाद ताले डालकर घर भाग जाते हैं। यहीं कारण है कि गांव में शिक्षकों की लापरवाही के कारण पढ़ाई व्यवस्था ठप होने से पालक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पहुंचा रहे हैं। यह जरूर है कि एक तरफ शासन सरकारी स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने के लिए गणवेश से लेकर किताबें, 1200 ड्रेस एवं उन स्टेशनरी के लिए दिए जाते हैं।
शिक्षा सत्र के शुरूआती वर्ष में गांव में पालक इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए बच्चों को स्कूल भेजते हैं उसके बाद प्राइवेट स्कूलों में भेजना शुरू कर देते हैं। यदि जांच की जाए तो जिन बच्चों के नाम सरकारी स्कूल में हैं वहीं नाम निजी स्कूलों में दर्ज हैं जबकि शिक्षा विभाग निजी स्कूलों में जांच नहीं करता है।
इसीलिए विभाग ने आधार अनिवार्य कर दिया है जिससे कि फर्जी नामांकन कराने वाले बच्चों की पकड़ की जा सके। यही कारण है परिषदीय विद्यालयों के छात्र नामांकन में तेजी से कमी आ रही है।
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