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संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को नहीं कर सकते स्थाई
यूपी बजट सत्र के चौथे दिन मंगलवार को विधानसभा में कई महत्वपूर्ण सवाल और जवाब सुनने को मिले। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने प्रश्नकाल में कहा है कि विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत आउट सोर्सिंग या संविदा कर्मचारियों को स्थाई करने की कोई योजना नहीं है।

लखनऊ/कानपुर देहात। यूपी बजट सत्र के चौथे दिन मंगलवार को विधानसभा में कई महत्वपूर्ण सवाल और जवाब सुनने को मिले। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने प्रश्नकाल में कहा है कि विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत आउट सोर्सिंग या संविदा कर्मचारियों को स्थाई करने की कोई योजना नहीं है। दूसरी ओर बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा है कि शिक्षकों को कैशलेस इंश्योरेंस देने पर विचार चल रहा है। फिलहाल शिक्षकों की भर्ती की कोई योजना नहीं है।
विभिन्न विभागों में संविदा पर कार्यरत कर्मचारी स्थाई होने का सपना छोड़ दें क्योंकि ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है जिसके तहत संविदा या आउटसोर्सिंग के तहत कार्यरत कर्मचारियों को स्थाई किया जा सके। परिषदीय विद्यालयों में अनुदेशक एवं शिक्षामित्र तथा स्वास्थ्य विभाग में विभिन्न पैरामेडिकल से संबंधित स्टाफ बड़े पैमाने पर कार्यरत हैं। इतना ही नहीं लगभग सभी विभागों में संविदा एवं आउटसोर्सिंग के माध्यम से भारी भरकम स्टाफ कार्य कर रहा है जिसे स्थाई नहीं किया जा सकता है।
स्थाई होने का न पाले वहम-
नौकरी करने वाले अमूमन सभी लोग अपनी नौकरी के अपॉइनमेंट पर यह विचार कर सकते हैं कि वे अपनी संस्था में नियमित हैं या नियोजित। साथ ही अक्सर उनके मन में यही सवाल उठ सकते हैं कि क्या संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जा सकता है ? किस हालत में नियमित किया जाएगा या संविदा पर ही कार्यरत रह सकते हैं। इस बात पर नौकरी करने वाली संस्था के अलग अलग नियम हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविदा के आधार पर लंबे समय तक काम करने से सेवा में नियमित होने का कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया जाता है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट 2011 से गुरु गोविंद सिंह इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर अपॉइनमेंट व्यक्तियों की एक अपील पर विचार कर रही थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि इस तरह के नियमितीकरण के लिए कोई योजना होती तो वे ऐसी योजना का लाभ उठा सकते थे लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है। हमें यह भी बताया गया है कि कुछ पेटीशनर ने हाल के रिक्रूटमेंट प्रोसेस में अपॉइंटमेंट के लिए अप्लाई किया है। हाईकोर्ट ने उनके दावे को मुख्य रूप से इस आधार पर खारिज कर दिया कि उन्हें अपनी सेवा के नियमितीकरण की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। हमें नहीं लगता कि कोई अलग अपरोच अपनाया जा सकता है।
संविदा पर नौकरी करने ये तरीके हो सकती हैं-
संविदा की अवधि फिक्स हो सकती है जो आमतौर पर कुछ महीनों या सालों के लिए होती है।
संविदा कर्मचारी को फिक्स वेतन/मानदेय और भत्ते मिल सकते हैं। संविदा पर काम कर रहे कर्मचारी को कंपनी या सरकारी विभाग में अपरेजल या एक्स्ट्रा फैसिलिटी नहीं मिलती है।
संविदा में कर्मचारी के कार्य का एक विवरण हो सकता है। क्या काम करना है, कितने घंटे करना है इसका एक ड्राफ्ट दिया जाता है।
संविदा कर्मचारी को अनुशासन के नियमों का पालन करना होता है। अगर कर्मचारी किसी भी तरह से संस्था या विभाग के अनुशासन का उल्लंघन करता है तो इस हालत में उसे निलंबित या बर्खास्त किया जा सकता है।
संविदा समाप्त होने के बाद कर्मचारी का संस्था से काम का सिलसिला समाप्त हो जाता है। संविदा संस्था या विभाग और उम्मीदवार के बीच हुई सहमति पर आधारित होता है।
भारत में संविदा पर नौकरी करने के लिए कुछ खास नियम भी हैं। उदाहरण के लिए संविदा कर्मचारी को कंपनी या संस्था द्वारा दिए जाने वाले सभी सुविधाओं का लाभ मिल सकता है जैसे कि वेतन/ मानदेय और छुट्टी। इसके अलावा संविदा कर्मचारी को भी श्रम कानूनों के तहत प्रोटेक्ट किया जाता है जैसे कि काम के तय घंटे और सुरक्षा के नियम।
संविदा पर नौकरी करने के कुछ फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं:-
फायदे-
संविदा नौकरी उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो नियमित नौकरी पाने में असमर्थ हैं।
संविदा नौकरी अधिक लचीली होती है क्योंकि संविदा की अवधि निश्चित होती है।
संविदा कर्मचारी को अक्सर नियमित कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम वेतन/मानदेय मिलता है।
नुकसान-
संविदा नौकरी की अवधि निश्चित होती है इसलिए कर्मचारी को यह नहीं पता होता है कि उसकी नौकरी कब समाप्त हो जाएगी।
संविदा कर्मचारियों को अक्सर नियमित कर्मचारियों की तुलना में कम लाभ मिलते हैं।
संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की तुलना में अधिक अनुशासन का पालन करना होता है।
संविदा कर्मचारियों पर संबंधित विभाग का अधिक दबाव होता है।
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