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राजेश कटियार, कानपुर देहात। यूपी में सरकारी स्कूलों के विलय के फैसले पर घमासान मचा हुआ है। सरकार ने स्कूल मर्ज नामक ऐसा वायरस फैलाया है जिससे लाखों लोग हताहत हुए हैं हालांकि इस बीमारी को दूर करने के लिए सभी शिक्षक संगठन रूपी डॉक्टर और डीएलएड डिग्रीधारी बेरोजगार मैदान में कूद पड़े हैं। यह लोग इस वायरस के साथ-साथ वायरस फैलाने वाले को भी अच्छी किस्म की दवा खिलाने का प्लान बना चुके हैं।
सरकार ने सरकारी स्कूलों के हालात को दुरुस्त करने के लिए चाहे कितने प्रयत्न किए हों हकीकत के धरातल पर कहीं क्रियान्वित होते नजर नहीं आ रहे हैं। यूपी के इन सरकारी स्कूलों की बदहाल व्यवस्था से इलाहाबाद हाईकोर्ट तक चिंतित है। बावजूद इसके शासन स्तर पर इसमें कोई आमूलचूल परिवर्तन फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 1506 स्कूलों में आज भी स्टूडेंट्स और टीचर्स दोनों खुले में टॉयलेट जाने को मजबूर हैं। 54121 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बाउंड्रीवाल नहीं हैं। 2921 स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था नहीं है।
वहीं कई स्कूल तो तबेला बन गए हैं जहां स्टूडेट्स की जगह भैंस-बकरी आदि बंधे नजर आते हैं। प्रदेश में 5695 सरकारी स्कूलों में केवल एक शिक्षक कार्यरत है। इनमें से 2586 प्राथमिक और 3109 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के 907 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। अब आप जरा खुद ही सोचिए जहां पर पढ़ेंगे तो बढ़ेंगे जैसे नारे दिए जाते हैं बच्चों युवाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है वहीं पर 970 स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं। प्रदेश में टोटल 158839 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं जो शहरी क्षेत्र से लेकर गांव के दूर अंचल तक स्थित हैं।
कहने को तो इन विद्यालयों में पढ़ाई से लेकर किताब, कॉपी, ड्रेस, जूता-मोजा और दोपहर का भोजन तक फ्री है लेकिन सरकार की गलत नीतियों की वजह से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। आज भी 68603 परिषदीय स्कूलों में जमीन पर बैठकर बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। आज भी प्रदेश के तकरीबन 68630 ऐसे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं जहां बच्चों को जमीन पर बिठाकर पढ़ाया जाता है क्योंकि यहां डेस्क और बेंच की व्यवस्था नहीं है। सैकड़ों विद्यालयों में आज भी शौचालय की सुविधा नहीं है। 54121 विद्यालयों में बाउंड्रीवाल ही नहीं है जिससे यहां पर गाय-भैंस लेकर अराजकतत्वों तक का जमावड़ा बना रहता है।
यूपी के प्राथमिक विद्यालयों की संख्या और स्थिति:-
प्रदेश में टोटल 113249 प्राइमरी स्कूल हैं। इनमें 3 लाख 99 हजार 273 टीचर पोस्टेड हैं। इनमें से 53284 विद्यालयों में फर्नीचर की व्यवस्था नहीं है। यहां के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं।
35233 प्राइमरी स्कूलों में अभी तक बाउंड्रीवॉल नहीं बनाई गई है। 60221 विद्यालयों में बिजली की व्यवस्था नहीं है। 1542 विद्यालयों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। 547 विद्यालयों में जेंट्स और 474 विद्यालयों में लेडीज टॉयलेट नहीं है। इन विद्यालयों के स्टूडेंट्स और टीचर आज भी जरूरत पड़ने पर खुले में टॉयलेट जाने को विवश हैं।
यूपी के उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या और स्थिति:-
प्रदेश में 45590 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में 1 लाख 64 हजार 3 टीचर पोस्टेड हैं। 18888 स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं है। 23314 स्कूलों में बिजली की व्यवस्था नहीं है। 1379 स्कूलों में पीने का पानी नहीं है।334 स्कूलों में जेंट्स और 151 स्कूलों में लेडीज टॉयलेट नहीं है। लिहाजा इन स्कूलों के बच्चे और टीचर खुले में टॉयलेट जाने को विवश हैं।
सिस्टम की दुर्दशा की वजह से ही सरकारी स्कूलों में नहीं बढ़ पा रही स्टूडेंट्स की संख्या:-
सिस्टम की इसी दुदर्शा की वजह से आज भी परिषदीय स्कूलों में छात्रों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। प्रदेश सरकार के तमाम दावे और सुविधाएं रोजमर्रा की जरूरतों के अभाव के आगे कमतर प्रतीत हो रही हैं। यही वजह है कि आज एक आम आदमी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने के बजाए प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाता है। बावजूद इसके इन प्राइवेट स्कूलों में न तो प्रशिक्षित शिक्षक होते हैं और न ही वह तमाम सुविधाएं जो सरकारी स्कूल में उपलब्ध हैं। प्रत्येक जनपद में सैकड़ो की संख्या में प्राइवेट स्कूल बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं जिम्मेदार सालीना खर्चा लेकर इन स्कूलों में ताला नहीं लगा रहे हैं। इन स्कूलों की वजह से भी परिषदीय विद्यालयों में छात्र संख्या कम हो रही है।
हाईकोर्ट भी जता चुका है नाराजगी:-
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका पर कोर्ट पिछले सप्ताह सुनवाई करते हुए स्कूलों की इस तरह की स्थिति को देखकर चिंता जता चुका है। इस संबंध में हाईकोर्ट की ओर से बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) इलाहाबाद को फटकार भी लगाई गई थी और जिले के स्कूलों का निरीक्षण करके वहां की कमियों को तत्काल दूर कराने का निर्देश दिया गया था। खासकर पेयजल और शौचालय जैसी व्यवस्थाओं को तत्काल दुरुस्त कराने को कहा गया था। स्कूलों में बिजली की व्यवस्था का भी निर्देश दिया गया था। सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी स्कूलों में कोई सुधार नहीं किया बल्कि उल्टा 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज करने का फरमान जारी कर दिया। आदेश के बाद बेसिक शिक्षा विभाग में तहलका मचा हुआ है। शिक्षकों और डीएलएड अभ्यर्थियों ने भी आर पार की लड़ाई के लिए ठान लिया है। सरकार ने अगर इस आदेश को निरस्त नहीं किया तो लखनऊ में बड़े पैमाने पर धरना प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा।
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