कानपुर के ऐतिहासिक हटिया गंगा मेला का शुभारंभ: जिलाधिकारी ने रज्जन बाबू पार्क में फहराया तिरंगा
कानपुर के ऐतिहासिक हटिया गंगा मेला का आगाज आज रज्जन बाबू पार्क में तिरंगे झंडे के फहराने के साथ हुआ। इस अवसर पर जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने झंडारोहण किया और उपस्थित लोगों के साथ राष्ट्रगान गाया।

- अनुराधा नक्षत्र में शुरू हुई 83 साल पुरानी परंपरा, सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बना गंगा मेला
कानपुर: कानपुर के ऐतिहासिक हटिया गंगा मेला का आगाज आज रज्जन बाबू पार्क में तिरंगे झंडे के फहराने के साथ हुआ। इस अवसर पर जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने झंडारोहण किया और उपस्थित लोगों के साथ राष्ट्रगान गाया। अनुराधा नक्षत्र में शुरू होने वाले इस मेले को लेकर शहर में उत्साह का माहौल है। यह मेला न केवल होली के उत्सव का विस्तार है, बल्कि कानपुर की सांस्कृतिक विरासत और आजादी की लड़ाई से जुड़ी यादों का भी प्रतीक है।
जिलाधिकारी ने दी शुभकामनाएं, याद की ऐतिहासिक परंपरा
झंडारोहण के बाद जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने अपने संबोधन में कहा, “अनुराधा नक्षत्र में मनाया जाने वाला ऐतिहासिक गंगा मेला कानपुर की सांस्कृतिक विरासत और जिंदा दिली का प्रतीक है। इस मेले का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।” उन्होंने आगे कहा कि यह परंपरा 1942 से चली आ रही है, जब स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने होली पर पाबंदी लगा दी थी। उस समय एक जिलाधिकारी ने होली को रुकवाया था, लेकिन बाद में जनता के विरोध और क्रांतिकारियों के जज्बे के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा। तब से यह मेला जिलाधिकारियों के संरक्षण में खिलता रहा है। जिलाधिकारी ने जनपदवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं भी दीं।
1942 से जुड़ा है गंगा मेला का इतिहास
गंगा मेला कानपुर के लिए सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की एक जीवंत स्मृति है। 1942 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत के तहत हटिया बाजार के रज्जन बाबू पार्क में युवा क्रांतिकारियों ने तिरंगा फहराया और होली खेली। अंग्रेजों ने इसे रोकने की कोशिश की और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन शहरवासियों के जबरदस्त विरोध और एकजुटता के कारण अंग्रेज प्रशासन को झुकना पड़ा और अनुराधा नक्षत्र के दिन सभी क्रांतिकारियों को रिहा करना पड़ा। इसके बाद से यह परंपरा हर साल अनुराधा नक्षत्र में गंगा मेला के रूप में मनाई जाती है, जिसे ‘दूसरी होली’ भी कहा जाता है।
रंगों से सराबोर रहा रज्जन बाबू पार्क
मेले की शुरुआत रज्जन बाबू पार्क से रंगों के ठेले के साथ हुई। इस ठेले के पीछे ऊंट, घोड़े और हाथियों की सवारियां थीं, जो पारंपरिक अंदाज में सजाई गई थीं। सुबह 10:30 बजे से शुरू हुआ यह जुलूस हटिया बाजार से होते हुए शहर के ऐतिहासिक मोहल्लों जैसे नयागंज और चौक सर्राफा से गुजरा। लगभग 25,000 हुरियारों ने नाचते-गाते हुए इस जुलूस में हिस्सा लिया। दोपहर 2 बजे यह जुलूस फिर रज्जन बाबू पार्क पहुंचा, जहां लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर होली की खुशियां मनाईं। शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला आयोजित हुआ, जहां शहर भर से लोग जुटे और होली की शुभकामनाएं दीं।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व का संगम
गंगा मेला कानपुर की जिंदादिली और सांस्कृतिक धरोहर का अनूठा संगम है। यह मेला जहां एक ओर स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि देता है, वहीं दूसरी ओर होली के रंगों के जरिए एकता और उल्लास का संदेश फैलाता है। इस साल यह मेला अपनी 83वीं वर्षगांठ मना रहा है, और हर बार की तरह इस बार भी इसमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए। मेले में पारंपरिक संगीत, नृत्य और स्थानीय कलाकृतियों की प्रदर्शनी ने भी लोगों का मन मोह लिया।
कानपुरवासियों में उत्साह की लहर
गंगा मेले को लेकर कानपुरवासियों में खास उत्साह देखा गया। स्थानीय निवासी कैलाश नाथ ने बताया, “यह मेला हमारे लिए सिर्फ होली का जश्न नहीं, बल्कि हमारे क्रांतिकारियों की बहादुरी का सम्मान है। हर साल हम इसे पूरे जोश के साथ मनाते हैं।” वहीं, एक अन्य नागरिक मूूलचंद सेठ ने कहा कि यह मेला शहर की पहचान है और इसे और भव्य बनाने के लिए सरकार को भी प्रयास करना चाहिए।
प्रशासन की ओर से व्यापक इंतजाम
मेले के आयोजन के लिए जिला प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की थीं। सुरक्षा व्यवस्था, यातायात प्रबंधन और स्वच्छता के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे। जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि मेले में आने वाले हर व्यक्ति को सुरक्षित और सुखद अनुभव मिले।
गंगा मेला न केवल कानपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है, बल्कि यह आज भी लोगों को एकजुटता और उमंग के साथ जीने का संदेश देता है। यह उत्सव आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
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