सोशल मीडिया हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है परंतु युवाओं पर इसके दुष्प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आज के सोशल मीडिया के दौर में गंभीर चिंतन वाली टिप्पणी के बजाय जय जयकार करने, वाहवाही करने और काम चलाऊ इमोजी के रूप में अपनी अभिव्यक्ति करना आम हो गया है।
इस दौर में किसी पोस्ट पर टिप्पणियों का सूनापन इस कदर हो चला है कि बात विमर्श अब बीते जमाने की बात लगती है। इसकी कई वजहें हैं। एक वजह यह है कि सोशल मीडिया एक त्वरित और सहज माध्यम है। लोग यहां अपनी भावनाओं और विचारों को तुरंत और बिना किसी सोच-विचार के व्यक्त करना चाहते हैं इसलिए वे गंभीर टिप्पणी करने के बजाय जल्दी से एक इमोजी या एक शब्द से अपनी प्रतिक्रिया दे देते हैं।
दूसरी वजह यह है कि लोग सोशल मीडिया पर अपनी छवि बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। वे चाहते हैं कि उनके पोस्ट पर ज्यादा लाइक्स और कमेंट्स आएं ताकि वे दूसरों की नजर में अच्छा बन सकें इसलिए वे अक्सर ऐसे पोस्ट करते हैं जो दूसरों को पसंद आएं भले ही वे गंभीर न हों।
तीसरी वजह यह है कि सोशल मीडिया पर लोगों को गंभीरता से लेने की आदत नहीं पड़ी है। लोग अक्सर सोशल मीडिया पर जो कुछ भी देखते हैं उसे हल्के में लेते हैं इसलिए वे गंभीर टिप्पणी को भी हल्के में लेते हैं और उस पर ध्यान नहीं देते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए एक उपाय यह हो सकता है कि ऐसा सोशल मीडिया मंच बनाया जाएं जहां 200 शब्दों से कम की टिप्पणी ही संभव न हो। इससे लोगों को गंभीरता से सोचने और अपनी टिप्पणी को अधिक सोच-समझकर लिखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा हालांकि बाजारवादी समय में ऐसा कोई व्यापारिक संगठन करेगा क्यों।
इसके अलावा, लोगों को सोशल मीडिया पर गंभीर टिप्पणी के महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें बताया जाना चाहिए कि सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जहां लोग विभिन्न विषयों पर गंभीरता से चर्चा कर सकते हैं और अपने विचारों को साझा कर सकते हैं। इससे लोगों को सोशल मीडिया पर गंभीरता से टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
बेशक यह एक मुश्किल काम है लेकिन अगर हम इस दिशा में प्रयास करें तो हम सोशल मीडिया को एक ऐसे मंच में बदल सकते हैं जहां गंभीर चर्चा और विमर्श हो सके।
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