डिग्रियां टंगी दीवार सहारे,मेरिट का ऐतबार नहीं है।

एक बेरोजगार का दर्द
डिग्रियां टंगी दीवार सहारे,मेरिट का ऐतबार नहीं है।
सजी है अर्थी नौकरियों की,देश में अब रोजगार नहीं है।
शमशान हुए बाजार यहां सब,चौपट कारोबार यहां सब।
डॉलर पहुंचा आसमान पर,रुपया हुआ लाचार यहां पर।
ग्राहक बिन व्यापार नहीं है,देश में अब रोजगार नहीं है।
चाय से चीनी रूठ गई है,दाल से रोटी छूट गई है।
साहब खाएं मशरूम की सब्जी,कमर किसान की टूट गई है।
है खड़ी फसल खरीदार नहीं है, देश में अब रोजगार नहीं है।
दाम सिलेंडर के दूने हो गए,कल के हीरो नमूने हो गए।
मेकअप-वेकअप हो गया महंगा,चाँद से मुखड़े सूने हो गए।
नारी है पर श्रृंगार नही है,देश मे अब रोजगार नहीं है।
साधु-संत व्यापारी हो गए,व्यापारी घंटाधारी हो गए।
कैद में आंदोलनकारी हो गए,सरकार से कोई सरोकार नहीं है।
युवा मगर लाचार नहीं है,देश मे अब रोजगार नहीं है।
राजेश बाबू कटियार जगइयापुर, राजपुर, कानपुर देहात
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