मुंबई,अमन यात्रा : : इस फिल्म का नाम जॉन, जॉनी, जर्नादन नहीं है लेकिन एक टिकट पर तीन जॉन के लिए आप सत्यमेव जयते 2 को याद रखेंगे. करीब 10 साल पहले विद्या बालन स्टारर द डर्टी पिक्चर आई थी तो लोगों ने कहा था, एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट. सत्यमेव जयते 2 देखते हुए लगता है, मसाला मसाला मसाला. सवाल यह कि आप कितना मसाला हजम कर सकते हैं. इसका जवाब है कि आपका स्वाद क्या है. फिल्म के निर्माता-निर्देशक कुछ बातों को लेकर स्पष्ट हैं. एक तो यह कि फिल्म 1980 के दौर के अंदाज से लिखी और बनाई गई है. हीरो का हड्डी तोड़ एक्शन, चुटीली कॉमेडी और लॉजिक जीरो. दूसरी बात सत्यमेव जयते 2 मुख्य रूप से सिंगल स्क्रीन फ्लेवर का सिनेमा है. जहां दर्शक हीरो की एंट्री से हर डायलॉग तक सीटी मारते हैं. ताली पीटते हैं.
जब यह लक्ष्य है तो आप इसे आज की सिने-कसौटियों पर नहीं कस पाएंगे. निर्माता कंपनी टी-सीरीज, निर्देशक मिलाप जवेरी और जॉन अब्राहम ने सिंगल स्क्रीन में दर्शकों की वापसी कराने का बड़ा जोखिम लिया है. भारत में आज करीब 7000 हजार सिंगल स्क्रीन हैं और कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद ज्यादातर ध्वस्त हैं. थियेटर मालिक उन्हें चलाने की स्थिति में नहीं हैं या बंद करना चाहते हैं. सत्यमेव जयते 2 सिंगल स्क्रीन को सहारा देगी या शटर गिरने से पहले जिंदा रखने की आखिरी कोशिश साबित होगी, यह जल्द पता चल जाएगा.
जहां तक फिल्म की बात है तो वह जमाने के रुख के मुताबिक है यानी देशभक्ति के वर्तमान राष्ट्रीय मौसम के अनुकूल. मैसेज है, तन मन धन से बढ़ कर जन गण मन. अच्छी बात यह है कि हमारा सिनेमा राष्ट्रभक्ति की बात करता है तो भ्रष्टाचार और अत्याचार की तस्वीर साथ लाता है. जिसमें आम आदमी के दुश्मन, देश के अंदर दिखते हैं. वह उस सत्ता-व्यवस्था के चमकते चेहरे हैं, जो जन-गण की अंगुली पर लगी मतदान की स्याही और पसीने के दम पर शीर्ष तक पहुंचे हैं. सत्यमेव जयते 2 में जुड़वा भाई सत्या और जय अत्याचार, अन्याय, भ्रष्टाचार तथा गुंडई के विरुद्ध अपने-अपने अंदाज में लड़ाई लड़ते हैं. यह जज्बा उन्हें खून में मिला है. किसान पिता दादासाहेब बलराम आजाद से. तीनों ही भूमिकाएं जॉन अब्राहम ने बढ़िया ढंग से निभाई हैं.
यूपी के ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी गृहमंत्री के रूप में सत्या के सामने जन-सेवा और सबको बराबरी का हक देने वाले वाला समाज बनाने का मौका है. इसके लिए विधानसभा में कुछ नए कानून पारित होना भी जरूरी हैं मगर उसकी कोशिशों पर लालची और बेईमान पानी फेरते हैं. नतीजा मासूम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़. विपक्षी दल में सत्या की विधायक पत्नी विद्या (दिव्या खोसला कुमार) भी है, लेकिन वह उसके अच्छे कामों के साथ खड़ी रहती है. विद्या के पिता (हर्ष छाया) मुख्यमंत्री हैं. दिन में लोकतांत्रिक ढंग से जनता की मुश्किलें खत्म करने को लड़ता सत्या रात में ‘शहंशाह’ के अंदाज में आम जनता का मसीहा बनकर, अपराधियों को सजा देता है और इस बात से राज्य में हंगामा खड़ा होता है.
हत्या करने वाले को कोई नहीं जानता और आंख के बदले आंख वाले न्याय से पीड़ित खुश होते हैं. मगर मुख्यमंत्री को गृहमंत्री से कहना पड़ता है कि कानून और न्याय को हाथ में लेने वाले को रोकना होगा. पकड़ना होगा. इसके लिए मुख्यमंत्री सारा मामला ऐसे बेस्ट ऑफिसर जय को देने को मजबूर होते हैं, जो अपने सिवा किसी की नहीं सुनता. यही कहानी का वह बिंदु है, जहां से दोनों भाई आमने-सामने आ जाते हैं. एक है तूफान तो दूसरा है चट्टान. सवाल यह कि दोनों आपस में लड़ेंगे या फिर उनके सामने कोई और भी बड़ी चुनौती आएगी.
निस्संदेह कहानी फिल्मी है लेकिन जबर्दस्त ऐक्शन और डायलॉगबाजी यहां है. जॉन का मांस-पेशियों से भरा ऐक्शन फैन्स को मजा देगा. तीनों किरदारों के रूप में उन्होंने जबरदस्त एंट्री ली है और जमकर ऐक्शन किया है. उनकी दहाड़ तक अपराधियों को हवा में उड़ा देती है. ‘वहां अपने ही घर में पंखे पर लटक रहा किसान है, लेकिन मेरा देश महान है’, ‘शेर गुस्से में दहाड़ता है, आजाद फाड़ता है’, ‘जब चट्टान से टकराएगा तूफान, करप्शन भूल जाएगा बेईमान’ जैसे डायलॉग आपको मसाला फिल्मों की याद दिलाएंगे. कुछ डायलॉग आगे जाकर सोशल मीडिया में मीम्स बनाने के काम आएंगे. फिल्म में दिव्या खोसला कुमार सशक्त मौजूदगी दर्ज कराती हैं. उनका अभिनय अच्छा है. खास तौर पर दूसरे हिस्से में वह जॉन के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. फिल्म का गीत-संगीत सुनने जैसा है. कैमरा वर्क अच्छा है. सभी कलाकारों ने अपने भूमिकाओं से सही ढंग से निभाया है. नोरा फतेही एक बार फिर अपने डांस नंबर कुसु कुसु के साथ याद रह जाती हैं. उनके फैन्स के लिए यह रिटर्न गिफ्ट है.
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