एस0खान/बुरहानपुर। रात का सन्नाटा भयानक काली रात सिर्फ चमगादडों की चहलकदमी के बीच किले के एक बीराने से कमरे में एक रूह कपा देने वाली आवाज आती हैं। आवाज में वो भयानक डरावनपन जिस किसी ने भी इसे सुना वो दुबारा वहां जाने की हिम्मत नही करता है। दरअसल सन्नाटे को चीरती हुई वो दर्द भरी आवाज आज भी ऐसा कहा जाता है कि एक कमरे से आती है जहां हिन्दुस्तान के अजीम शहंशाह शाहजहां की प्यारी बेगम मुमताज की चौदहवे बच्चे के जन्म के समय मौत हुई थी। स्थानीय लोगों एंव जनश्रुतियों में ऐसा दावा किया जाता है कि हर रोज रात के सन्नाटे में बुरहानपुर के किले के एक कमरे से चार सौ साल बीतने के बाद भी मुमताज की दर्द भरी चीखने की आवाजें आती है।
दर्द भरी आवाज के पीछे की दास्तान-आगरा का वो मीना बाजार जहां पर बादशाह शाहजहां की नजर एक खूबसूरत लडकी पर पडी। जब वो मीना बाजार में घूमने गया था। वो लडकी कोई और नही बल्कि उस जमाने की हिंदुस्तान की मलिका अर्जुमन्द बानो बेगम थी जिसे शाहजहां प्यार से मुमताज कह कर पुकारता था। कहा जाता है मुमताज शाहजहां की चार बेगमों मे से सबसे खुबसूरत थी इसीलिए उसे मुमताज कहा गया। जब मुमताज अपने 14 वे बच्चे की मां बनने वाली थी तो हिन्दुस्तान के दक्षिणी हिस्से में खानेजहॉ लोदी ने विद्रोह कर दिया उसे कुचलने के लिए जब शाहजहां आगरा से जा रहा था तो मुमताज ने भी उसके साथ जाने की जिद की और वह भी उसके साथ चल पडी। काफिला बुरहानपुर पहुंचा जहां पहले से शाहजहां द्वारा बनवाये गये किले में बेगम मुमताज रूकी। 16 जून 1631 की वो काली रात जब मुमताज को प्रसव पीडा होने लगी। उसने बेटी गौहर आरा को जन्म दिया। जन्म के समय उसे अधिक रक्त स्राव होने लगा। हकीम वजीर खान ने मुमताज को बचाने का हरसम्भव प्रयास किया लेकिन अधिक रक्त स्राव के कारण मुमताज की उसी रात किले के एक कमरे में दर्द से चीखते हुए मौत हो गई। ऐसा दावा किया जाता है कि मरते वक्त मुमताज ने शाहजहां से दो वचन लिए थे पहला ये कि दूसरी शादी न करना। दूसरा वो उनकी याद में एक खूबसूरत मकबरा बनावायेंगे। अगले दिन मुमताज को बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे जैना बाग में दफना दिया गया। मुमताज के शरीर को तो दफना दिया गया लेकिन उसकी आत्मा उस दिन से महल के उसी कमरे में दर्द से चीखती हुई भटकने लगी ।
किले में आत्मा होने का दावा-स्थानीय व घूमने आने वाले लोगों में ऐसा दावा किया जाता है कि मुमताज की बुरहानपुर के जिस किले में दर्द से चीखते हुए मौत हुई थी वहां से आज भी भयानक डरावनी आवाजे आती है। शाम होने के बाद वहां पर मुमताज की आत्मा का बसेरा हो जाता है। कमरे में चारों तरफ खुशबू फैल जाती हैं। वहां जाने वालों को एक अजीब सी आहट, किसी के रोने की आवाज, कभी ऐसा लगेगा मानों कोई अगल बगल में चल रहा हो। अचानक सन्नाटा तो कभी चीखने की तेज आवाजे आने लगती है। जिस कमरे से आवाजें आती हैं वहां पर किसी की जाने की हिम्मत नही होती है। जिसने भी वहां जाने की कोशिश की वो वापस नही लौटा। हालांकि वहां अब तक आत्मा के होने का प्रमाण नही मिला जैसा दावा किया जाता है।
दीमक ने आगरा को दिया ताजमहल का तोहफा- मडपैक थैरेपी अर्थात मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाकर मुमताज के शव को छह महीने 9 दिन तक बुरहानपुर में रखा गया था। शाहजहां बेगम की याद में बुरहानपुर में मकबरा बनाना चाहता था। बुरहानपुर की मिट्टी में दीमक बहुत ज्यादा थी। अगर वहां की मिटटी में दीमक नहीं होती तो ताजमहल आज आगरा के बजाय बुरहानपुर में ताप्ती किनारे होता। वहां की मिट्टी में दीमक के खतरे को भांपकर शाहजहां ने आगरा में यमुना के किनारे 110 पिलरों पर आबनूस महोगिनी सागौन से ताजमहल की 50 फीट गहरी नीव रखी जो दीमक के कारण बुरहानपुर में ताजमहल की नींव रखना सम्भव नही था। बुरहानपुर के किले में मुमताज की आत्मा आज भी भटकती है ऐसा जनश्रुतियो एंव लोगों में दावा किया जाता है इस तथ्य में कितनी सच्चाई है। ये दावे के साथ नही कहा जा सकता है। आज के वैज्ञानिक युग में आत्मा भूत प्रेत जैसी बाते कल्पना मात्र है। इसका मकसद अंधविश्वास को बढावा देना कतई नही है।
;इस कहानी में रोचकता लाने के लिए बाहरी कडियों को जोडा गया है। इसमें सत्यता का दावा नही किया जाता है।
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