2024 तो झांकी है:अखिलेश यादव की नजर 2027 के विधानसभा चुनाव पर,सपा सांसदों को दिए ये निर्देश
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने शनिवार को लखनऊ में पार्टी मुख्यालय में पार्टी के नवनिर्वाचित सांसदों से मुलाकात की।अखिलेश यादव की बात से साफ है कि उनकी नजर अब 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव पर है।अखिलेश यादव ने नवनिर्वाचित सांसदों से कहा कि आप जनता के बीच रहें, उनकी समस्या सुनें तभी आगे ऐसी जीत मिलेगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि पार्टी को बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन मिला है

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने शनिवार को लखनऊ में पार्टी मुख्यालय में पार्टी के नवनिर्वाचित सांसदों से मुलाकात की।अखिलेश यादव की बात से साफ है कि उनकी नजर अब 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव पर है।अखिलेश यादव ने नवनिर्वाचित सांसदों से कहा कि आप जनता के बीच रहें, उनकी समस्या सुनें तभी आगे ऐसी जीत मिलेगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि पार्टी को बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन मिला है।अब समाजवादियों की जिम्मेदारी बढ़ गई है।जनता की एक-एक बात सुनें,उनके मुद्दों को उठाएं,क्योंकि जनता के मुद्दों की जीत हुई है। बता दें कि इस बार लोकसभा चुनाव में सपा ने यूपी की 80 में से 37 सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस को 6 सीटें मिली हैं।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सभी सांसदों से कहा कि इस बार बहुत मजबूती के साथ यूपी की जनता के मान-सम्मान की लड़ाई संसद में लड़नी है। अखिलेश यादव ने कहा कि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जहां से सबसे ज्यादा सांसद चुनकर जा रहे हैं, वहां की जनता की बात संसद में रखें। हमारे सांसदों ने चुनाव में लगातार मेहनत की, जनता के बीच रहें। यही वजह रही कि सपा ने सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की। नकारात्मक राजनीति खत्म हो गई है और सकारात्मक राजनीति का दौर शुरू होने के साथ ही जनता से जुड़े मुद्दों की जीत हुई है।
सरकार और प्रशासन पर तंज करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि हमारे एक सांसद वह हैं, जिन्हें जीत का सर्टिफिकेट मिला दूसरे वे हैं, जिन्हें भाजपा की धांधली की वजह से सर्टिफिकेट नहीं मिल पाया। हम दोनों सांसदों को बधाई देते हैं। अखिलेश ने कहा कि उम्मीद का दौर शुरू हो चुका है। जनता के मुद्दों की जीत हुई है। इस मौके पर सांसद डिंपल यादव ने कहा कि मैं सपा के सभी सांसदों को बधाई देना चाहूंगी। डिंपल ने कहा कि लोकतंत्र में लोग अगर खुश नहीं होते हैं, तो अपना प्रतिनिधि अपने हिसाब से चुनते हैं। अयोध्या में भी यही हुआ।
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