
आज के समय में हम सभी जीवन में प्राप्त और पर्याप्त के बीच संघर्ष करते दिखाई दे रहे है जिसमें हमारे जीवन में शांति और संतोष का अभाव है। उपलब्ध संसाधनों के बीच भी हमें धन्यवाद प्रेषित करना नहीं आता है। आगे जाकर यहीं चीज हमारे मन में उत्कंठा, निराशा और संत्रास को जन्म देने लगती है। हमारे बच्चे अंदर से बहुत कमजोर दिखाई दे रहे है क्योंकि वे बाहरी दुनिया में अपनी शांति की खोज कर रहे है जोकि केवल भ्रम मात्र है। जब आप बच्चों को भगवान से जोड़ना सीखा देते है तो उनमें जीवन को लेकर अलग ही आत्मविश्वास परिलक्षित होता है। वे अपनी हर अच्छाई-बुराई में ईश्वर को साक्ष्य रखते है और कुछ निर्णय वे स्वतंत्र रूप से लेना स्वयं सीख जाते है।
यदि आप अपने बच्चों को शिव की विशेषताओं से परिचित कराएंगे तो वे जीवन की सत्यता और सार्थकता को भली-भाँति समझ सकेंगे। शिव ईश्वर का सत्यम-शिवम-सुंदरम रूप है। शिव वो है जो सहजता एवं सरलता से सुशोभित होते है। वे ऐसे ध्यानमग्न योगीश्वर है जो नीलकंठ बनकर अपने भीतर विष को ग्रहण किए हुए है और भुजंगधारी बनकर विष को बाहर सजाए हुए है। इसके विपरीत भी उमापति की एकाग्रता, शांतचित्त रूप और ध्यान में कहीं भी न्यूनता परिलक्षित नहीं होती। वैभव देने वाले भोलेनाथ स्वयं वैरागी रूप में विराजते है। ध्यान की उत्कृष्ट पराकाष्ठा शिव अपने आराध्य श्रीराम के स्वरूप को अपने भावों की माला से ध्याते है। सृष्टि के कल्याण के लिए शांत भाव और सहजता से विषपान को स्वीकार करते है।
शिव की शिक्षाओं को अपनाना नहीं है आसान।
पर स्वीकार कर लेने से जीवन बन जाएगा वरदान॥
शिव की आराधना अत्यधिक सहज और सरल है जबकि उनके स्वरूप में अत्यधिक विचित्रता दिखाई देती है। शिव हमें विषमताओं में रहना सिखाते है। शिव बाहर झाँकने की बजाए भीतर ध्यान केन्द्रित करने पर बल देते है। शिव हमें आडंबर से मुक्ति दिलाते है। शिवतत्व ही सृष्टि के संहारक है। विषपान के पश्चात भी सहर्ष ध्यान साधना में लगे रहना ही शिव की उत्कृष्टता है। जीवन का भी यहीं सत्य है। जीवन तो सुख-दु:ख का विधान ही है। देवाधिदेव महादेव हमें ध्यान में मग्न होकर एकाग्र होने की प्रेरणा देते है। यदि आपका बच्चा भगवान के अस्तित्व में विश्वास करेगा तो वह चीजों के सिद्ध होने एवं प्रत्यक्ष होने में भी विश्वास करेगा। जब आप उसको शिव के चरित्र का वर्णन सिखाएँगे तो उसे ज्ञान होगा कि जब व्यक्ति कल्याण की ओर अग्रसर होता है तो वह महादेव की उपाधि से सुशोभित होता है। शिव की वेशभूषा आपके बच्चे को जीवन का सार सीखने में मदद करेगी और वह शिव की कृपा से जीवन को आनंद स्वरूप में स्वीकार करेगा। यदि हम उसके जीवन में आध्यात्म का रस घोलेंगे तो उसकी जीवन सरिता में आनंद का प्रवाह अभिभूत होगा।
असाध्य को साध्य बना सकती शिव की आराधना।
मनुष्ययोनि के द्वारा ही संभव है ध्यान, योग और साधना॥
बच्चों में यदि एक बार अच्छी आदते विकसित की जाए तो वह उन्हें जीवनपर्यंत लाभान्वित करेंगी। तो क्यों न मनुष्ययोनि के ध्येय को सार्थक स्वरूप प्रदान करें और बच्चों को भगवत भक्ति का मार्ग प्रशस्त करें जिसके कारण वे असाध्य बाधाओं का भी पूर्ण आत्मविश्वास से सामना कर सकेंगे। शिव की सत्ता की व्यापकता हो अनंत है। वह अविनाशी, ओढरधानी, नीलकंठ और अर्धनारीश्वर स्वरूप है जो जीवन में त्याग और सच्चे प्रेम की सार्थकता को भी उजागर करते है।
मनोकामना पूर्ति का शिव पूजन तो है सरल उपाय।डॉ. रीना कहती, भावों की माला से भजो ॐ नमः शिवाय॥
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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