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कानपुर देहात,अमन यात्रा : सरकारी सिस्टम ने प्राथमिक पाठशालाओं को प्रयोगशाला बना दिया है। शिक्षक का मूल काम बच्चों को पढ़ाना होता है। लेकिन एक भी ऐसा दिन नहीं होगा जिस दिन शिक्षकों को पढ़ाई के आलावा अन्य कार्य नहीं करने पड़ते हो। शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से प्रत्येक न्याय पंचायत में 5 शिक्षक संकुल का गठन किया गया है। लेकिन जब से संकुलों की संख्या बढ़ी है तब से विभागीय कामों में भी भारी वृद्धि हो गई है। इतना ही नहीं आए दिन कहीं इस स्कूल में मीटिंग कहीं उस स्कूल में मीटिंग कहीं बीआरसी में मीटिंग यही ड्रामा चलता रहता है। इन मीटिंगों में प्रधानाध्यापकों का जाना अनिवार्य होता है। वैसे तो स्कूल समय में मीटिंग किए जाने पर रोक है लेकिन इसका पालन खंड शिक्षा अधिकारी स्वयं नहीं करते और स्कूल समय में ही बीआरसी में मीटिंग करते हैं। प्रधानाध्यापक भी संकुल की मीटिंग स्कूल समय में ही करते हैं। इन मीटिंगों में शिक्षा गुणवत्ता संवर्धन के लिए कुछ नहीं होता सिर्फ सरकारी धन और बच्चों की पढ़ाई की बर्बादी होती है। इतना ही नहीं प्रत्येक दिन विभाग द्वारा शिक्षकों से तत्काल ऑनलाइन एवं ऑफलाइन जानकारी मांगी जाती है। शिक्षक मजबूरी में कार्यवाही के डर से बच्चों को पढ़ाना छोड़ डाक बनाने में जुट जाता है। इस तरह शिक्षक, शिक्षक कम बाबू ज्यादा बन गया है।
स्कूलों में अभी कई ऑनलाइन एंट्री कार्य जारी हैं और शिक्षा सत्र के अंत तक कई कार्य जारी भी रहेंगे। स्कूलों में अभी डीबीटी एंट्री, बेसलाइन आकलन, छात्रवृत्ति एंट्री, जाति निवास एंट्री , मध्यान्ह भोजन की ऑनलाइन जानकारी, गणवेश वितरण, पुस्तक वितरण, बच्चों की स्थापना की जानकारी, आधार कार्ड की जानकारी, बैंक डिटेल की जानकारी, सिद्धि शाला, यू डायस डाटा सहित अनगिनत ऑनलाइन कार्य है। यदि शिक्षक का सारा समय इन कार्यों में निकल जायेगा तो फिर पढाई कब कराएगा। फिर बच्चों में गुणवत्ता कैसे आएगी।
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प्राथमिक स्कूलों में भी हो बाबू की नियुक्ति- स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत कार्य इतने बढ़ गए है कि अब प्राथमिक पाठशालाओं में भी कम्प्यूटर और बाबू की आवश्यकता हो गई है। यदि सरकार स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा चाहती है तो शिक्षकों को सिर्फ बच्चों तक ही सिमित रखें। अन्य विभागीय कार्यों के लिए बाबू की नियुक्ति करें। प्राथमिक शिक्षा वास्तव में बुनियादी शिक्षा होती है ऐसे में प्राथमिक शिक्षकों को पूरा समय बच्चों को देना होता है। जब शिक्षक बच्चों से दूर रहेंगे तो वे क्या सीखेंगे।
स्कूल बन गया प्रयोगशाला-
वर्तमान में स्कूल का नाम बदलकर प्रयोगशाला रख दिया जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि प्रति वर्ष स्कूलों में कई गतिविधियां बदल जाती है। अब तो शिक्षकों को ऑनलाइन रोज पढ़ाई भी करनी होती है। विभाग द्वारा रोज नए नए माड्यूल शिक्षकों को पढ़ने के लिए दिए जाते हैं ऐसे में शिक्षक स्वयं पढ़ाई करेंगे या बच्चों को पढ़ाएंगे। शिक्षक इतने प्रकार के रजिस्टर मैंटेन करते रहते हैं कि उनका दिमाग भी चकरा जाता है। प्रतिवर्ष मूल्यांकन, आकलन सहित प्रक्रियायों, फार्मेट में बदलाव से रजिस्टर, प्रपत्र आदि भी लगातार बदलने पड़ते है। स्कूलों में प्रतिवर्ष नई-नई नीतियों का प्रयोग जारी है। अब स्कूल स्कूल नहीं प्रयोगशाला बन गया है और शिक्षक शिक्षक नहीं बाबू बन गया है।
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