
औरत या नारी
की दुर्दशा का कौन हैं असली गुनहगार
आखिर,कौन ??
हर लेखक,हर रचनाकार
औरत की मन की जबानी को
शब्दों में ढालने की चेष्टा करता हैं मन की पीर,
मस्तिष्क की हर उथल पुथल को
कागज़ी जामा पहनाने की कोशिश भी करता हैं ।।
पर
वो, जायज़ या उचित को
क्यूं,शब्दों में पिरोंन
बयां नहीं करता ।।
आखिर! क्यूं नही लच्छेदार, शब्दों की चासनी में
लपेटकर कलम से सत्य को नही लिखता ।।
कौन हैं!
जिम्मेवार नारी या औरत की
इस,दुर्दशा का
पिछड़ेपन का और शारीरिक,मानसिक विक्षिप्ता का ।।
क्यों,
सतयुग ,द्वापर,त्रेतायुग से ही
औरत, रानी के नाम का ताज पहन सिर्फ
महलों की शोभा बढ़ा रही थी
या एक राजा की कई पटरानियां बन
बिना सर पर की प्रथा को निभा रही थी ।।
सदियों से चली आ रही इस कुरीति को
मर्द,
अपनी पौरुष शक्ति समझ छाती चौड़ाकर
फुला ना समा रहा था ।।
कौन हैं,
वास्तव में नारी समाज की ऐसी परिस्थितियों का
असली गुनहगार,
ज़रा सोचिए,
विचार कीजिए ।।
खुद,स्वयं ही एक औरत
हां!
एक औरत ही औरत की सबसे बड़ी अवरोधक हैं
मानसिक ,सामाजिक और प्रगति के मार्ग पर
रोड़ा के रूप में ।।
जरा,
रुकिए जनाब
और तसल्ली से दिमाग के पेचों को हिलाएं और डुलाए
अरे,
हुजूर
कहानी अभी ज़ारी हैं
और मेरी कलम का विद्रोहक रूप अभी बाक़ी हैं ।।
स्नेहा की कलम से……………………….………………. साहित्यकार, पर्यावरण प्रेमी और राष्टीय सह संयोजककानपुर उत्तर प्रदेश