वाहवाही के चक्कर में अधिकारियों के फरमानों में जकड़े शिक्षक
शिक्षक दिवस पर शिक्षक पुरस्कार पाकर भले ही शिक्षक उत्साहित हो लेकिन पूरे वर्ष उन पर क्या गुजर रही है उनसे बेहतर शायद कोई नहीं जानता होगा। कुछ शिक्षक अधिकारियों के भले बनने के लिए एवं अपनी वाहवाही के लिए अधिकारियों के मकड़जाल में ऐसे फंस गए कि उन्हें यह तक पता नहीं चल पाता कि कब रात हुई और कब सुबह हो गई वे अपने पारिवारिक सदस्यों को भी समय नहीं दे पा रहे हैं।देश की बुनियाद बनाने का औहदा शिक्षकों को भले ही दिया जाता हो लेकिन आजकल उसका दर्जा उससे छिनने लगा है।

- औपचारिकताओं को पूरा करने में गुम होने लगा उत्साह
- संख्या अधिक होने से सबकी निगाह में परिषदीय शिक्षक
- एक जान कई सारे काम, पुराने के साथ नई योजनाएं पड़ रहीं भारी
कानपुर देहात, अमन यात्रा : शिक्षक दिवस पर शिक्षक पुरस्कार पाकर भले ही शिक्षक उत्साहित हो लेकिन पूरे वर्ष उन पर क्या गुजर रही है उनसे बेहतर शायद कोई नहीं जानता होगा। कुछ शिक्षक अधिकारियों के भले बनने के लिए एवं अपनी वाहवाही के लिए अधिकारियों के मकड़जाल में ऐसे फंस गए कि उन्हें यह तक पता नहीं चल पाता कि कब रात हुई और कब सुबह हो गई वे अपने पारिवारिक सदस्यों को भी समय नहीं दे पा रहे हैं।देश की बुनियाद बनाने का औहदा शिक्षकों को भले ही दिया जाता हो लेकिन आजकल उसका दर्जा उससे छिनने लगा है। गांवों में काम करने के लिए माहौल की तलाश कर रहे शिक्षकों को शिक्षा बड़ा काम लगने लगा है। आए दिन नए फरमान, योजनाएं और ब्यूरोक्रेसी शिक्षक और शिक्षण दोनों को प्रयोगशाला बना रखा है।
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शिक्षकों के हाथ में अब शायद कुछ नहीं रहा। सिर्फ आदेशों का पालन ही उनकी नियति बन गया है।यह दर्द शिक्षकों के दिल से जोरों से निकल रहा है। दशकों पहले शिक्षकों के पास न तो एमडीएम था और न ही पोलियो। न तो डीएम साहब का डर था और न ही विभाग के हाकिम जी का। अब मामला बिलकुल उलट है।बेसिक शिक्षकों का कहना है कि विभाग में सभी शिक्षक नकारा नहीं हैं। कुछ नकारा शिक्षकों की वजह से सभी शिक्षक बदनाम है। अन्य विभागों में भी नकारे लोग मौजूद हैं। उनका तर्क है कि हमारी संख्या अधिक होने से शिक्षक लोगों की नजरों में आ जाते हैं। दूसरे विभागों के निरीक्षण में भी आए दिन कर्मचारी और अधिकारी गैरहाजिर मिलते हैं लेकिन उनका दस प्रतिशत काफी कम होता है। जिले में करीब पांच हजार शिक्षकों का दस प्रतिशत पांच सौ होता है। यह संख्या निरीक्षण के दौरान काफी बड़ी दिखती है। शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं है। एक तरफ शिक्षकों को शिक्षक पुरस्कार देकर सम्मानित करते हैं और दूसरी तरफ अनुपस्थिति का हवाला देकर अपमानित करते हैं और समाज में शिक्षकों के प्रति गलत धारणा का व्याख्यान करते हैं यह ठीक नहीं है।
वाहीयाद के कार्य शिक्षकों के जिम्में-
- बालगणन ● स्कूल चलो अभियान ● छात्रवृत्ति के फार्म भराना ● बच्चों के बैंकों में अकाउन्ट खुलवाना ● ड्रेस वितरण कराना ● मिड डे मील बनवाना ● निर्माण कार्य कराना ● एसएमसी की बैठक कराना ● पीटीए की बैठक कराना ● एमटीए की बैठक कराना ● ग्राम शिक्षा समिति की बैठक ● रसोइयों का चयन कराना ● लोक शिक्षा समिति के खाते का प्रबंधन ● एसएमसी के खाते का प्रबंधन ● मिड -डे -मील के खाते का प्रबंधन ● ग्राम शिक्षा निधि के खाते का प्रबंधन ● बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी करना ● पोलियों कार्यक्रम में प्रतिभाग करना ● बीएलओ ड्यूटी में प्रतिभाग करना ● चुनाव ड्यूटी करना ● जनगणना करना ● संकुल की सप्ताहिक और बीआरसी की मासिक मीटिंग में भाग लेना ● अन्य विद्यालय अभिलेख तैयार करना ● विद्यालय की रंगाई पुताई कराना ● रैपिड सर्वे कराना ● बच्चों के आधार कार्ड बनवाना ● क्लर्क और चपरासी के काम भी करना ● अन्य सरकारी योजनाओं को लागू कराना
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