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कागज पर खेलो इंडिया धरातल पर बजट ही नहीं

परिषदीय स्कूलों और कॉलेजों में खेलकूद प्रतियोगिताओं की धूम है। इसके लिए बजट की जो व्यवस्था की गई है उससे स्कूल स्तर से राज्य स्तर तक खेलों का आयोजन करना बेहद कठिन है।

Story Highlights
  • औपचारिकता मात्र रह गई हैं खेल प्रतियोगिताएं

अमन यात्रा, कानपुर देहात। परिषदीय स्कूलों और कॉलेजों में खेलकूद प्रतियोगिताओं की धूम है। इसके लिए बजट की जो व्यवस्था की गई है उससे स्कूल स्तर से राज्य स्तर तक खेलों का आयोजन करना बेहद कठिन है। ऐसे में पगडंडियों की प्रतिभाओं में निखार लाने की सरकारी कोशिशों पर पैसे की कमी भारी पड़ रही है। जिले के 10 ब्लॉकों में 1926 प्राथमिक, जूनियर और कम्पोजिट विद्यालय हैं। इसके बावजूद विद्यालयवार खेल का कोई बजट निर्धारित नहीं है। एक ब्लॉक को खेलों के आयोजन के लिए 5682 रुपये दिए जाते हैं। इस बजट से स्कूल स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन कराने के बाद न्याय पंचायत व ब्लॉक स्तर पर प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं।

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इसी बजट में जिला स्तर पर प्रतियोगिताएं होती हैं। जिले स्तर पर चयनित होने वाली टीम को इसी बजट में मंडल स्तर पर प्रतिभागिता के लिए भेजा जाता है। विभागीय जानकार बताते हैं कि न्याय पंचायत स्तर पर आयोजित होने वाले खेलों में ही 8 से 10 हजार का खर्चा आता है। ऐसे में खेल प्रतियोगिताएं किस तरह आयोजित होती होंगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। जिला स्तर पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में सभी 10 विकासखंडों की टीमें प्रतिभाग करती हैं।

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तीन दिवसीय प्रतियोगिता में छात्रों के ठहरने और भोजन का इंतजाम शिक्षा विभाग के अधिकारियों को ही करना होता है। बजट के अभाव में आयोजन बदहाल होते हैं। खिलाड़ियों के लिए न ही उचित भोजन की व्यवस्था हो पाती है न ही उनके रहने का इंतजाम। औपचारिकताओं में ही वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिताएं निपट जाती हैं। कुल मिलाकर कागज पर ही खेल प्रतियोगिताएं दौड़ती हैं धरातल पर बजट की कमी से जूझती दिखाई पड़ती हैं।

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Author: aman yatra


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