क्योंकि ऐसी रचना स्वयं परमेश्वर ने की है उनका अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात को सिद्ध करता है । यदि परमेश्वर इस सृष्टि के रचयिता है तो उस रचना में जिस शक्ति का वे प्रयोग करते हैं उसी शक्ति का मूर्त रूप नारी है
जिस पृथ्वी पर हम जीवन यापन करते है उसे धरती माता कहा जाता है । जिस प्रकृति का भरपूर दोहन कर हम अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाते है उस प्रकृति को प्रकृति माता कहते है ।जिस देश में हमारा जन्म हुआ है उस देश को हम भारत माता के नाम से पुकारते है
हमारी सनातन संस्कृति में गाय मे 33 करोड़ देवी देवताओं का वास माना जाता है ,उन्हे केवल गाय नहीं गौमाता कहा
जाता है। गंगा वो नदी है जो भारत की पहचान है उन्हे हम केवल गंगा नही बल्कि गंगा मैया कहकर पुकारते है।
तुलसी एक ऐसी वनस्पति है जिसके पत्ते से लेकर सूखी डालियों तक का प्रयोग हम अपने कल्याण के लिए करते है, उस वनस्पति को हम तुलसी नही तुलसी माता कहकर पुकारते है।
वह स्त्री जो अपने गर्भ में हमारा पालन कर असहनीय पीड़ा सहन कर हमे संसार में लाती है ,हमारा पालन करती है और जीवन भर केवल देती है बदले में हमसे कुछ भी नही मांगती है उसे हम मां कहते है । इस कथन में ध्यान देने वाली बात यह है कि, माता शब्द का प्रयोग हम उसे लिए करते है जो केवल और केवल देती है। बदले में कोई स्वार्थ नहीं रखती। प्रकृति माता ,भारत माता, गंगा माता, तुलसी माता या फिर हमे जन्म देने वाली माता
इन सबकी प्रकृति का गहनता से विचार करने पर हमे एक ही गुण समान मिलेगे वह है
“देने का गुण ।”यानी जो दात्री है जिसमे बिना सामर्थ्य के देने का साहस है वह नारी है।”
नारी सदैव सर्वश्रेष्ठ है या हम कह सकते है परम पिता परमेश्वर की श्रेष्ठतम रचना नारी है संसार में जितने श्रेष्ठतम मानवीय गुण है जैसे वात्सल्य प्रेम त्याग तप भक्ति क्षमा वीरता इन सभी के लिए शिखरतम उदाहरण नारी शक्ति ने स्थापित किया है ।
वात्सल्य की बात करे तो मैया यशोदा से बढ़कर कोई और उदाहरण नहीं है। मैया यशोदा जिन्होंने जगत के रचयिता को अपने आंचल में समेटकर उन्हे ऐसा वात्सल्य दिया ।आज सारा संसार उन्हे यशोदा नंदन के नाम से जानता है त्याग की बात करे तो माता सीता के त्याग को कैसे भूल सकते है जिन्होने एक ही क्षण में अपने पति के अनुसरण हेतु राज भवन की समस्त सुख सुविधाओं को ऐसे त्याग दिया जैसे शरीर का कोई मलिन वस्त्र हो।
तप की बात करे तो माता अनुसुइया जिन्होने अपने तपोबल से त्रिदैवो को बालक बनाकर अपने पास रख लिया था और अपने तपोबल से ही मंदाकिनी नदी को प्रगट कर लिया था भक्ति के विषय में चिंतन करे तो माता मीरा का चरित्र स्वतः आंखो में उभरकर आ जाता है जिन्होने अपनी भक्ति में लीन होकर विष का पान कर लिया था ।ऐसी पराकाष्ठा भक्ति की थी सशरीर गिरधर गोपाल में समाहित हो गई
“मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।” क्षमा की पराकाष्ठा यदि देखनी है तो साम्राज्ञयी द्रौपदी के चरित्र का रसपान कीजिए ,क्षमा भाव का ऐसा अलौकिक दर्शन होगा हो शायद ही अन्यत्र देखने को मिले। अपने पुत्रों के कटे हुए मस्तक देखने के बाद भी जब अर्जुन ने हत्यारे अश्वस्थामा को मृत्यु दण्ड देने की बात कही ,तब क्षमा की देवी द्रौपदी ने अर्जुन को यह कहकर रोक लिया की आर्य यह गुरु पुत्र है और पुत्र वियोग की पीड़ा में समझती हूं इसलिए नहीं चाहती की गुरु माता इस कष्ट को सहन करे ।
वीरता की बात करे तो ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है की रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्य क्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना थी जिन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और भारत की रणभूमि के वीरगति को प्राप्त हो गई।
यह सब चर्चाएं श्रेष्ठतम गुणों की है । अरे नारी में तो वह सामर्थ्य है की उसने युगो युगों तक कलंकित होकर विधि के विधान को संचालित किया है।स्वयं त्रिलोकी नाथ भगवान श्री राम ने अपने उद्देश्य पूर्ति हेतु माता कैकई की शरण ली थी। यह संसार माता कैकई को कुमाता के रूप में याद करता है, कोई भी माता पिता अपनी बच्ची का नाम कैकई नही रखना चाहते परंतु, किसी ने यह विचार नहीं किया कि जिस माता ने श्री राम को माता कौशल्या से भी अधिक प्रेम किया वह एक दासी के कहने पर एक ही रात में इतनी परिवर्तित केसे हो सकती है कि, अपने पुत्र के लिए वनवास मांग बैठेगी ?
ये तो भगवान के श्री राम अवतार की लीला का एक हिस्सा था जिसके लिए भगवान श्री राम ने माता कैकई से प्रार्थना की थी कि ,माता केवल और केवल आपने यह सामर्थ्य है जो मेरा इस अवतार के उद्देश्य को पूर्ण करने में मेरा सहयोग कर सके। जो कार्य करना है उसके लिए युगों युगों तक कलंकित होना पड़ेगा अपयश सहना पड़ेगा क्या आप मेरे लिए कुमाता होने का कलंक स्वीकार करेंगी ?
तब माता कैकई ने श्री राम के प्रेम में युगों युगों तक कलंकित होना स्वीकार कर लिया जरा सोचिए भक्ति प्रेम त्याग तप इन सबको साधना कितना कठिन होता है ,तो कलंक को स्वीकार करना कितना कठिन होगा? माता कैकई जो भरत जैसे पुत्र की जन्मदात्री है क्या वह कभी कुमाता हो सकती है?
परंतु नारी में ही वह सामर्थ्यता है इसलिए स्वयं भगवान अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए नारी शक्ति के समक्ष याचक बने ।
ऐसी श्रेष्ठ तम क्षमता को भूलकर वर्तमान समय में हम पुरुषो की बराबर अधिकार के लिए लड़ रही हैं जबकि युग परिवर्तन की क्षमता केवल और केवल नारी शक्ति में ही है ।जरूरत है तो उस शक्ति के स्मरण एवं नारी शक्ति के संगठित होने की
जब हर नारी अपनी श्रेष्ठता को पहचानेगी नारी नारी की शत्रु नही बल्कि मित्र बनेगी तब युग परिवर्तन अवश्य होगा।