वर्तमान भारत की जो तस्वीर है वो “बटवारे,,के बाद हिन्दूओं के बीच हुये जातीय सामाजिक क्षेत्रीय “बंटवारे,, करने के बाद की बनाई गयी उनकी ही तजबीज है। भाई भाई के बीच सौहार्द को जिस तरह से बांटा गया है वह भारत के हर गांव गरीब की वास्तविकता को स्पष्ट दर्शाता है। सत्य यह है कि हम “गांव व शहर,, के लोग जितना भी प्रगति के लिए प्रयास करते हैं उतना सफल होते नहीं,कारण है आपसी गलतफहमी की लालची प्रबत्ति से बनी दीवार जिससे जमीन मकान खेत मेंड रास्ते के केसों में हम उलझ गये हैं,रही सही राजनीतिक चुनावी रंजिशों ने हमारे समाज को खोखला करके भाई चारे को विनष्ट कर दिया है।
ग्रामीण आंचल का वो वात्सल्यमयी प्रेम जो बडे बुजुर्गों में देखा जाता था,नहीं रहा,उन बड़े बुजुर्गों का सामाजिक भय समाप्त प्राय हो चुका है,नैतिक अनैतिक की बात कहने वाले सामाजिक अभिभावक रूपी परिवार के शुभचिंतक अब दूर दूर तक दिखाई नहीं देते, बड़े बुजुर्गों को सामने आता देखकर युवाओं का सम्मान से रास्ता देना,यात्री वाहन बस ट्रेन आदि में बडे बुजुर्ग एवं माँ बहन समान किसी भी महिला को देखते ही सीट खाली कर देना अब अपने संस्कारों से दूर हो गया है।
किसी युवा बच्चे द्वारा कोई गलत कार्य करते देखने पर बडे बुजुर्ग के दो चार “थप्पड घूंसे,, ठोंक दिए जाने पर परिवारिक जन कोई भी आक्रोश व्यक्त नहीं करते थे,कोई भी मामला नहीं बनाते थे,लेकिन अब वर्तमान सामाजिक एवं परिवारिक स्थितियों में कितना परिवर्तन हुआ है आप सब जानते हैं बड़े छोटे की वो मर्यादाएं बड़ो का सम्मान आधुनिकता और पाश्चत्य सभ्यता के विकास की अंधी दौड में सब समाप्त-प्राय है।
हम सब पूरी तरह से गाँव व शहर की जहींन सीमाओं में बंटे हुए लोग हैं। शहर का पढ़ा लिखा युवा अपनी सफलता पर किसी बड़े बुजुर्ग से झुककर आशीर्वाद लेकर अपने सिर पर उनका स्नेहमयी हाथ रखवाना उचित नहीं समझता,अपने समकक्षीय से बडे बड़े महंगे उपहार लेकर गौर्वान्वित होना चाहता है,सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने वाले लगभग समाप्त-प्राय हो गये हैं।
भारतीय संस्कृति व संस्कार इस कदर विक्रत हुये हैं कि अगर पड़ोस का पडोसी किसी नीति संगत विचारधार के तहत किसी पार्टी के व्यक्ति को वोट देता है तो दूसरा पड़ोसी उसे सिर्फ इसलिए वोट नहीं देगा कि फला व्यक्ति के साथ मैं वोट नहीं कर सकता भले ही उसका वोट समाज व राष्ट्र के विरोध में ही क्यों न चला जाये,अपने पड़ोसी से उसे इतनी घोर नफरत क्यों और कहां से आई है सायद उसे स्वयं पता नहीं होगी,लेकिन यह भावना आज सर्वत्र व्याप्त है,जिस विषय पर सुधार करने के लिए अब वर्तमान में सोचने और चिंतन करने का बेहद गम्भीर समय है।
भारत में अब संयुक्त परिवारों की वो परम्परा जो आदर्श परिवारों के रूप में जानी जाती थी “गांव व शहर,,में शायद ही कहीं दिखाई देती हो,जिसकी परिणति के कारण जीवन की वो भूलभूत जीवन रक्षक आवश्यकताओं की पूर्ति एकल परिवार नहीं कर सकते,अपने बच्चों का लालन पालन माँ के साथ दादी, चाची,बुआ के स्थान पर मेड आया अथवा टीवी मोबाइल की स्क्रीन तक सीमित होने के कारण मानवीय संवेदनशीलताओं से बंचित होकर सांस्कृतिक संस्कारों से दूर हो गया है, एकल परिवार के फलस्वरूप शुद्ध दूध,घी, मख्खन के साथ साथ शुद्ध सब्जियां मशाले तथा शुद्ध तेल व दालों के अभाव के कारण उसका दुष्प्रभाव वर्तमान में लगभग प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुप्रभाव के रूप भुगतना पड़ रहा है।
अंग्रेजो की गुलामी से मिली आजादी के बाद देश का बंटवारा केवल भारत का बटवारा नहीं था,आजादी के बाद हमारा समाज भी सुनियोजित तरीके से बांटा गया है,जिसकी भरपाई करने की सीमाओं से भी हम सब बहुत दूर आ खड़े हुये हैं,आपसी भेदभाव व ईर्ष्या की आंधी में हम सब पतन के गर्त में समाते जा रहे हैं, स्वार्थ और धनलिप्सा ने नैतिकता और अनैतिकता का विभेद करना बंद कर दिया है,जिसका परिणाम क्या होगा यह वक्त के गर्त में समाहित है।
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीतिक परिदृष्य में बनने वाली अधिसंख्य सरकारों ने कभी भी भारतीय सांस्कृतिक सनातनीय संस्कारों के संवर्धन हेतु कतई कोई ध्यान ही नहीं दिया,बल्कि इन संस्कारों की दिशा में यदि किसी सामाजिक राजनीतिक संगठन ने कोई संवर्धन का प्रयास किया तो उस संगठन को हतोत्साहित करने के लिए साम्प्रदायिक कह कर बदनाम करने का कार्य किया गया, तथा अंग्रेजो की “फूट डालो राज करो,, की नीति पर चलते हुए दीर्घ काल तक भारत में राज किया गया,लेकिन धीरे धीरे देश की जनता ने “बांटो और राज करो,, की उनकी नीति को समझा व जाना तब जनता का उनसे मोह भंग होना शुरू हुआ,परिणामतः तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के साथ साथ सबको साथ लेकर सबके विकास का संकल्प व्यक्त करने वाली भाजपा के नेता नरेन्द्र मोदी जी के नेत्रृत्व पर देश की जनता ने अपना प्रचण्ड विश्वास व्यक्त किया,जिसे दीर्घ काल तक भारत की सत्ता में राज करने वाली सत्ता में अपना एकाधिकार समझने वाली वो कांग्रेस पार्टी किसी दशा में शहन नहीं कर पा रही है, परिणामतः देश की जनता को एक बार पुनः गुमराह करने के लिये “भारत जोड़ो यात्रा,, के नाम पर निकल पड़े हैं,जिनकी पार्टी ने देश का बटवारा स्वीकार किया,जिन्होंने भारत के मुकुट कश्मीर पर लज्जाजनक निर्णय लेकर भारत से दूर रहने का कुचक्र रचा,भारत व चाइना सीमा की बहुमूल्य सामरिक भूमि को अनुपयोगी कह कर चाइना के पक्ष में जाने दिया,भारत में अलगाववादियों घुसपैठियों आतंकवादियों का विरोध कभी नही किया ! आज वो भारत को जोड़ने का नाटक करने के लिए उसी पूर्व कालिक टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ निकले हैं जो कभी भारत का भला होते देखना ही नहीं चाहते।
भारत जोड़ने निकले यात्रा के नायक राहुल गाँधी ने चाइना सहित विश्व भर में एक बार पुनः बढ़ती कोरोना संक्रमण की संख्या व भयावता को दृष्टिगत रखते हुये भारत के स्वास्थ्य मंत्री मा.मनसुख मांडविया के पत्र को लेकर जितना बडा बवंडर खड़ा करने का प्रयास किया उसे सारे भारत ने देखा सुना व पढ़ा,बात का बतंगड़ बनाकर देश को गुमराह करने का कुत्सित प्रयास किया,कोरोना की भयावता को नकारते हुये उसे सरकार का नाटक तथा यात्रा से सरकार का डर कह कर यात्रा में कोई अहतियात नहीं बरता, तथा यात्रा भी यथावत जारी रखी ! लेकिन जैसे ही यात्रा के बीच क्रिसमस का त्योहार आया वैसे ही यात्रा को स्थगित करके क्रिसमसोत्सव की छुट्टियां मनाने विदेश चले गये,देश दुनियां की नई बनी कोराना संक्रमण की परिस्थिति पर न कोई उनका विचार आया न कोई सुझाव आया,जबकि पूर्व में आयी कोरोना लहरों के समय उनके द्वारा बड़े बड़े ज्ञान दर्शन की भविष्य वाणियां आती रहती थीं,लेकिन इस बार सरकार द्वारा कोरोना पर सावधानी बरतने की बात कहने पर ही उन्हें सब नाटक दिखता है,भाजपा का डर दिखता है!
भारत जोड़ने निकले यात्रा के नायक राहुल गाँधी कुछ समय पूर्व तक किसी तरह के हिन्दुत्व को नकारते थे,श्रीराम के अस्तित्व को नकारते थे,यात्रा के सहयात्री श्रीराम के लघु भ्राता लक्ष्मण पर माता सीता को लेकर अभद्र टिप्पणी करते थे,लेकिन अब यकाएक श्रीराम के साथ साथ माता सीता को जोड़कर आस्था व विश्वास का व्याख्यान देते देखे जा रहे हैं,यात्रा के नायक राहुल गांधी कुछ समय पूर्व तक भारत में असहिष्णुता का ढिंढोरा पीटते थे,नफरत फैलाने का भाजपा पर लगातार आरोप लगाते नहीं थकते थे,लेकिन यात्रा के नायक दिल्ली आते आते लाल किले मैदान से कहते हैं मैं आधा भारत घूम आया मुझे कहीं नफरत नहीं दिखाई पड़ी मुझे कहीं असहिष्णुता नहीं दिखाई पड़ी,मेरे साथ कुत्ता सुअर गाय भैंस भी चले लेकिन हिंसा कहीं नहीं दिखी,अब उनकी कौन बात सत्य है! वर्तमान की बात अथवा पूर्व की बात,इसकी विवेचना करने पर उनकी मंशा स्वयं स्पष्ट हो जाती है कि उन्हें भारत जोड़ना नहीं बल्कि भारत की सत्ता को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करके तथा उसके साथ जुड़कर भारत की रही सही सम्प्रभुता पर एकाधिकार प्राप्त करना ही उनका उद्देश्य मात्र है।
एक विचार मात्र
विद्यासागर त्रिपाठी
मूसानगर कानपुर देहात उप्र.
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