साहित्य जगत

विज्ञापन, व्यापार और जिंदगी

बड़ी दुकानवाला, चाहे असली सा महसूस करवाने वाले, नकली स्वाद का प्रभावशाली विज्ञापन छपवाए या अपने व्यवसाय में पारदर्शिता होने का विज्ञापन बनवाए, विज्ञापन पढऩे या देखने वालों को सब कुछ कहां समझ आता है।

बड़ी दुकानवाला, चाहे असली सा महसूस करवाने वाले, नकली स्वाद का प्रभावशाली विज्ञापन छपवाए या अपने व्यवसाय में पारदर्शिता होने का विज्ञापन बनवाए, विज्ञापन पढऩे या देखने वालों को सब कुछ कहां समझ आता है। हालांकि वे समझते हैं कि उन्हें समझ आ गया या वे समझना नहीं चाहते। इसलिए अधिकांश ग्राहक सब खा, पी और निगल जाते हैं। कुछ भी हो इस तरह से उनकी बीमारियां झेलनी की ताकत बढ़ती जाती है। दुकानदारों और सामान के स्वादिष्ट विज्ञापनों ने उन्हें इतना कुछ बेच, खिला, पिला दिया है कि नकली और नकली पीकर उनकी जीभ को असली का स्वाद भूल गया है। सब जानते हैं कि कानून बहुत सख्त है और लागू है। सभी कम्पनियां, सभी कायदे कानून, बड़े सलीके से फॉलो करती हैं। विज्ञापन में स्पष्ट और साफ छाप देती हैं कि हमारी फ्रूट पॉवर केवल एक ट्रेड मार्क है और इसकी वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। ऐसे विज्ञापन पकाने वाले प्रकृति और प्रवृत्ति को एक ही वस्तु समझते होंगे। वे यह भी समझते होंगे कि विज्ञापन वही जो आकर्षित करे और ग्राहक पटाए या फसाए। क्या फर्क पड़ता है जब कुछ समझदार बंदे पर्यावरण और वातावरण को एक ही समझते हैं। इन दोनों को एक समझने से फर्क पडऩा भी नहीं चाहिए।


 फर्क पडऩे लगा तो कानून को बहुत ज्यादा सख्ती से लागू करना पड़ेगा जो दूसरी कई चीजों को तोड़ देगा। वैसे भी तो काफी कुछ सिर्फ ट्रेड मार्क बनकर ही रह गया है। राजनीति, धर्म, क्षेत्र, सत्य, झूठ, संवेदना, प्यार और नफरत सब ट्रेड मार्क ही तो हो गए हैं और कईयों के तो अपने अपने शानदार ट्रेड मार्क भी हैं। प्रतिनिधित्व न लिखकर सिर्फ प्रकृति या प्रवृत्ति लिखेंगे तो लगेगा बात स्पष्ट हो गई मगर फिर डिप्लोमेसी खत्म हो जाएगी। मिसाल के तौर पर प्यार और नफरत का ट्रेड मार्क बाजार की रौनक है।

 

भीतर से नफरत करने वाले भी नकली प्रवृत्ति की बाहरी मुस्कुराहटें बांट रहे हैं। नकली प्यार की असली जफ्फियां मार रहे हैं, मतलब संबंधों में सांकेतिक इम्युनिटी बढ़ाई जा रही है। कह सकते हैं कि नफरत न दिखाने के लिए जो जफ्फियां प्रदर्शित की जा रही हैं, हाथ मिलाए जा रहे हैं वे प्यार की गहराइयों या ऊंचाई की वास्तविक प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व नहीं करती। कहा भी गया है…दिल मिलें न मिले हाथ मिलाते रहिए। परवाह शब्द ऐसा हो गया है मानो किसी के खाते में नहीं, हाथ में दो दो हजार के नोट थमा दिए हों। वही नोट जो आजकल बाजार की आर्थिक रौनक से बाहर हैं। विज्ञापनों की कैच लाइन का क्या दोष, खरीददारों के लिए, जिन इंसानों ने इन्हें बनाया है वे भी तो स्थापित ट्रेड मार्क हैं। उनके द्वारा डिजाइन की बातें, मुस्कुराहटें, संवाद और वायदे सब कुछ ट्रेड है। बिकने वाले सामान की बारी तो बाद में आती है। इनके विज्ञापन, विटामिन के सुप्रभाव के हिसाब से, ग्राहकों की इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करने का प्रतिनिधित्व जरूर करते हैं। यह विश्वास जमा रहता है कि जिंदगी भी ट्रेड मार्क है।


 

प्रभात कुमार- (स्वतंत्र लेखक)

 

Author: aman yatra

aman yatra

Recent Posts

“एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक ने किया हरिशंकरी पौधरोपण

जालौन। पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से जनपद में आज “एक पेड़ मां…

2 hours ago

जिलाधिकारी ने किया बघौरा कम्पोजिट विद्यालय का औचक निरीक्षण

जालौन। जिलाधिकारी राजेश कुमार पाण्डेय ने आज प्रातःकाल उच्च प्राथमिक बघौरा कम्पोजिट विद्यालय का औचक…

2 hours ago

कानपुर देहात: भाई ने पैसों के लिए की मां की हत्या,आरोपी फरार

राजपुर, कानपुर देहात - राजपुर कस्बे में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है।जहाँ एक…

17 hours ago

रनिया के कॉलेज में ‘मिशन शक्ति’ की गूंज: छात्रों को बताया साइबर अपराध से लड़ने का तरीका

कानपुर देहात, रनियां: रनिया के ओंकारेश्वर इंटर कॉलेज में आज का दिन बेहद खास रहा।…

19 hours ago

रनियां: बंद पड़ी फैक्ट्री में मिला अज्ञात शव, हत्या की आशंका

कानपुर देहात: रनियां थाना क्षेत्र के चिटिकपुर में एक बंद पड़ी सरिया फैक्ट्री में आज…

19 hours ago

उर्वरक केंद्रों पर उप कृषि निदेशक का छापा, खाद वितरण में गड़बड़ी पर लगाई फटकार

कानपुर नगर: किसानों को समय पर और सही दाम पर खाद मिले, यह सुनिश्चित करने…

19 hours ago

This website uses cookies.