बेरोजग़ारी, गरीबी और अभाव ऐसी स्थिति है जिससे हर कोई बचना चाहेगा। बहुत मेहनत के बावजूद भी बहुत से लोग गरीबी और अभावों का जीवन जीते हैं। अक्सर लोग अपनी स्थिति से समझौता करके गरीबी को अपनी किस्मत मान लेते हैं, दरअसल उन्हें मालूम ही नहीं होता कि ऐसे कौन से उपाय हैं जिनकी सहायता से वे गरीबी से उबर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। हमारे देश के बहुत से राज्य ऐसे हैं जिनकी भौगोलिक स्थिति के कारण वहां बड़े उद्योग नहीं लग सकते, या पूरे राज्य में उद्योग नहीं लग सकते। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर-पूर्व के राज्य ऐसे ही राज्यों की श्रेणी में हैं। हिमाचल प्रदेश में बद्दी, नालागढ़, परवाणु और ऊना को छोड़ दें तो ऊपरी हिस्से में ऐसे उद्योग अथवा संस्थान न के बराबर हैं जो बड़ी संख्या में रोजग़ार का कारण बन सकें। पहाड़ी राज्य अपनी सुंदरता के कारण पर्यटन-स्थल हैं जो रोजग़ार का अच्छा साधन है। हिमाचल प्रदेश में सेब और असम में चाय के बागान तथा कच्चा तेल न केवल रोजग़ार के साधन हैं बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान के लिए भी उपयोगी हैं। तो भी, इन राज्यों में गरीबी भी भरपूर है और जीवन कठिन है। ऐसे में हमें रोजग़ार सृजन के वैकल्पिक उपायों का सहारा लेना आवश्यक है।
बड़ी बात यह है कि रोजग़ार के ऐसे वैकल्पिक साधन न केवल उपलब्ध हैं बल्कि उनकी उपयोगिता पर कोई प्रश्न-चिन्ह भी नहीं है और वे केवल पहाड़ी राज्यों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में समान रूप से लाभदायक हैं। हमारे देश में गरीब होना एक अभिशाप है क्योंकि गरीबों के उत्थान के लिए कोई योजनाबद्ध सामाजिक कार्यक्रम नहीं है और बेरोजग़ारी भत्ता भी नहीं है। लेकिन कई परिवर्तन युगांतरकारी होते हैं और वे समूचे समाज का ढांचा बदल डालते हैं। ऐसे परिवर्तन हालांकि बहुत नहीं होते, लेकिन जब-जब होते हैं, वे वरदान जैसे बन जाते हैं। स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश को कंप्यूटर का तोहफा दिया था। उसके बाद इंटरनेट आया। कंप्यूटर के बाद इंटरनेट का प्रादुर्भाव तो एक क्रांति ही थी। ईमेल की सुविधा ने पूरे संसार को मानो एक गांव में बदल दिया और हर व्यक्ति उस दूसरे व्यक्ति से जुड़ गया जिसके पास कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा है।
आज हर स्मार्टफोन में इंटरनेट की सुविधा है और यह बहुत किफायती भी है। ह्वाट्सऐप, टेलिग्राम, ज़ूम और दूसरे कई ऐप ऐसे हैं जिन्होंने जीवन में क्रांति ही ला दी है। जीवन के हर क्षेत्र में अब डिजिटल साक्षरता आवश्यक होकर यह अब जीवन के एक महत्वूपर्ण अंग में बदल गई है। डिजिटल साक्षरता एक ऐसा वरदान है जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल सकती है। यही नहीं, यह साधारण कामगारों को सक्षम व्यापारियों अथवा उद्यमियों में बदल सकती है। यह सुखद है कि भारत सरकार इस ओर गंभीरता से प्रयास कर रही है। डिजिटल देशों की कतार में भारत को अग्रणी देश के तौर पर स्थापित करने के लिए लोगों को डिजिटल कुशलताओं और इंटरनेट की जानकारी की मदद से सशक्त बनाना इस दिशा का पहला कदम है। देश के नागरिकों को डिजिटल कुशलता और पर्सनल कंप्यूटर प्रशिक्षण देने से जमीनी स्तर से डिजिटल इंडिया की नींव तैयार करने में मदद मिलेगी। व्यावहारिक जीवन में कंप्यूटर के अनुभव से भारत के गैर-शहरी क्षेत्रों में अवसर और उद्यमिता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
डिजिटल इंडिया की दिशा में बढ़ाया गया यह कदम लोगों को इस बारे में जागरूक करना है कि एक कंप्यूटर से कारोबारों और परिवारों में किस तरह के बदलाव आ सकते हैं। हम जानते हैं कि इंटरनेट की शक्ति से जुड़े डेस्कटाप, लैपटाप, नोटबुक और टैबलेट पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। हर दिन नई-नई प्रौद्योगिकियों की खोज से पीसी, स्मार्टफोन से भी अधिक शक्तिशाली बनते जा रहे हैं। आज बाजार में कई तरह के नोटबुक और टैबलेट उपलब्ध हैं जिनमें उच्च कंप्यूटिंग क्षमता है और वे कुछ स्मार्टफोन माडलों की तरह ही कम वजन के, पोर्टेबल और सस्ते हैं। कंप्यूटर साक्षरता की मदद से कस्बों और गांवों में भी लोगों के लिए नए रोजगार पैदा करना और जीवनस्तर सुधारना संभव हो गया है। यह अतिशयोक्ति नहीं है कि कंप्यूटर साक्षरता में शहरी और गैर-शहरी भारतीयों लिए नए अवसरों के द्वार खोल देने की असीम शक्ति है। ऑनलाइन एजुकेशन भी इसी क्रांति का परिणाम है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि विश्व के हर कोने से शिक्षा के स्रोत हमें घर बैठे ही उपलब्ध हैं और हम अपना ज्ञान आसानी से बढ़ा सकते हैं। यही नहीं, भारतीय शिक्षक और कोच अपना ज्ञान विश्व भर में फैला सकते हैं। कुछ नया सीखने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए बहुत से उपयोगी विकल्प मौजूद हैं। यूट्यूब पर उपलब्ध बहुत से वीडियो हमें मुफ्त में उपलब्ध हैं और जीवन बदल देने की क्षमता रखते हैं। जीतो दुनिया, वाओ हैपीनेस और हैलो अलादीन जैसी कंपनियों ने इस दिशा में प्रशंसनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। ऐसी और भी संस्थाएं हैं जो हमें एक-एक कदम आगे बढ़ा कर नए युग की नई जरूरतों के प्रति जागरूक कर रही हैं और प्रासंगिक ज्ञान और हुनर उपलब्ध करवा रही हैं। इसमें दो राय नहीं है कि नालेज इकानमी भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत बड़ा कदम साबित हुआ है।
नालेज इकानमी में बड़े शहरों के दायरे से बाहर निकल कर कस्बों और गांवों को उद्योग और रोजग़ार का केंद्र बनाने की अपार संभावना है। यह एक ऐसी क्षमता है जिसका लाभ लिया जाना अभी बाकी है। यह खुशी की बात है कि कई निजी कंपनियां भी इस उद्देश्य में सहयोग देकर अपने प्रयासों से सराहना पा रही हैं। तकनीक की सहायता से ज्ञान और अनुभव को शहरों से बाहर छोटे-छोटे गांवों तक ले जाया जा रहा है, जहां एक कंप्यूटर, सिर्फ एक व्यक्ति का कंप्यूटर न होकर एक सामुदायिक संसाधन के तौर पर काम करता है और इसका इस्तेमाल पूरे समुदाय के हित में किया जा रहा है। कंप्यूटर का इस्तेमाल गांवों के स्कूलों में बच्चों को शिक्षित बनाने और स्थानीय नागरिकों के लिए जरूरी जानकारियां हासिल करने के लिए भी किया जा रहा है। लोगों के जीवन जीने के अंदाज, काम पर जाने के तरीकों, परिवार का पालन-पोषण करने की कोशिश में पीसी सीखने से आने वाली पीढिय़ों पर गहरा असर पड़ेगा, जो सच में डिजिटल इंडिया में जिंदगी गुजारेंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार, समाज और कार्पोरेट क्षेत्र इस पर फोकस बनाएंगे और डिजिटल इंडिया का सपना साकार होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
पीके खुराना- (लेखक राजनीतिक रणनीतिकार है)
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