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पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर मोदी सरकार पर बढ़ रहा राजनीतिक दबाव

मोदी सरकार पर अब पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर दबाव बढ़ता नजर आ रहा है। इसका कारण है झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे विपक्ष शासित राज्यों में नई पेंशन स्कीम की जगह एक बार फिर पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का फैसला।

लखनऊ / कानपुर देहात। मोदी सरकार पर अब पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर दबाव बढ़ता नजर आ रहा है। इसका कारण है झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे विपक्ष शासित राज्यों में नई पेंशन स्कीम की जगह एक बार फिर पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का फैसला। इसी को लेकर अब केंद्र की मोदी सरकार पर भी पुरानी व्यवस्था में लौटने की मांग तेजी से बढ़ रही है। यहां तक की खुद मोदी सरकार के मंत्री भी ये मान रहे हैं कि सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। सरकारी कर्मचारी मोदी को चैलेंजिंग पत्र भी लिख रहे हैं जिसमें कई सारे प्रश्नों के जवाब मांगे जा रहे हैं और सरकार जवाब देने से कतरा रही है।

 

एक सरकारी कर्मचारी ने मोदी जी को संबोधित करते हुए लिखा है कि पता नहीं किस आधार पर हम सारे कर्मचारियों की 2004 से पेंशन खत्म कर दी। आपको यह तो पता ही होगा कि शुरू में सांसदों और विधायकों को केवल भत्ते मिलते थे, बाद में आप लोगों ने संविधान संशोधन द्वारा खुद की पेंशन भी जारी कर ली। आप सबने समाजसेवा के नाम पर राजनीति में प्रवेश किया था कि जन, समाज, क्षेत्र और देश का विकास करेंगे जबकि सफल होने पर खुद के लिए तनख्वाह, भत्ते, पेंशन आदि सारी सुविधाएं जुटालीं। अधिकार का ऐसा दुरुपयोग कोई आप लोगों से सीखे। क्या आप बता सकते हैं कि आप जैसे ही अन्य समाजसेवी गाँव के प्रधानों, बीडीसी मेम्बरों, जिला पंचायतों, ब्लॉक प्रमुखों आदि को पेंशन क्यों नही मिलती। आप यह भी सोचिए कि राज्य के राज्यपाल को पेंशन नही मिलती, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के साथी को मुफ्त यात्रा का लाभ नही मिलता। सरकारी अधिकारियों को दी जाने वाली पेंशन कर्मचारियों और सरकार के योगदान से बने फंड से दी जाती है अर्थात जो हम देते हैं उसी में सरकार के योगदान को मिलाकर पाते हैं जबकि आप सभी पूर्व विधायकों और पूर्व सांसदों को उस संचित निधि से पेंशन दी जाती है जिसमें आप सबका कोई योगदान भी नहीं हैं आप सबको मिलने वाली पेंशन हम करदाताओं का पैसा है। हमारी समझ से आप जैसे समाजसेवियों के लिए पद साघ्य नहीं जनता की सेवा का साधन मात्र है। खुद पे गौर करें आप को प्रतिमाह लगभग 1 लाख 25 हजार रुपये वेतन के रूप में मिलते हैं।

 

साथ ही आपको मुफ्त आवास, यात्रा, चिकित्सा, टेलीफोन आदि अन्य बहुत सी सुविधाएँ मुहैया करायी जाती हैं। भत्ते के रूप में आपको निर्वाचन क्षेत्र, आकस्मिक खर्च, अन्य खर्चे एवं डी.ए. आदि दिया जाता है। ठीक ऐसे ही मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को भी मनमाने ढंग से बहुत सारी सुविधाएं दी गयी हैं। आप सबने एक दिन के लिए भी बने सांसदों व विधायकों को 20000 लगभग प्रतिमाह पेंशन तय कर लिया है जबकि आपको भी पता है कि उन्हें किसी तरह की पेंशन की जरूरत नहीं होती। ऐसे सभी लोग अरबपति होते हैं जो सैकडों लोगों को नौकर रख सकते हैं। सरकारी कर्मचारियों को लंबी सेवा के बावजूद पुरानी पेंशन को समाप्त कर, अंशदायी पेंशन की अनिवार्य व्यवस्था की गई है जिसमें अब तक परिणाम जो सामने आए हैं किसी को 900 रु महीने किसी को 1000 रु परिवार चलाने के लिए नई पेंशन दी जा रही है। हमारी कटौतियाँका पैसा पता नही किन कम्पनियों को जा रहा है यह विदित नही है और यह भी अंदेशा नही बल्कि विश्वास है कि एनपीएस भविष्य की सबसे बड़ी घोटाला साबित होने जा रही है। ऐसा क्यों है कि आपकी पेंशन संचित निधि से दी जाए और हमारी पेंशन कम्पनी या बाजार तय करे ? क्या यह व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 के विपरीत नहीं है ?

 

 

आप और आपकी पार्टी वर्तमान में एक देश-एक टैक्स का बखान करते नहीं थक रही है और इस एक टैक्स से राष्ट्रवाद को बढावा मिलेगा आदि तो माननीय प्रधानमंत्री जी यदि एक देश-एक टैक्स से राष्ट्रवाद बढता है तो एक देश-एक पेंशन (पुरानी पेंशन) से राष्ट्रवाद कम हो जाता है क्या ? यदि देश के लाखों कर्मचारियों को वेतन, पेंशन, भत्ता आदि देने से भारत सरकार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है तो क्या तमाम वर्तमान व पूर्व  सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों को वेतन, पेंशन, बंगला, गाड़ी, मुफ्त टेलीफोन, मुफ्त हवाई व रेल यात्रा, सस्ती कैण्टीन आदि में अरबों रुपये खर्च करने से भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है ? भारत के लाखों कर्मचारी व आम जनता आपका विचार इस मुद्दे पर जानना चाहती है कि क्या केवल लाल, नीली बत्ती हटा देने से सरकार के खर्चे में कटौती हो जायेगी ? वर्तमान में जब सभी टेलीकाम कम्पनियां 349 रु. में एक महीने मुफ्त काल व नेट की सुविधा दे रहीं हैं तो भारत सरकार अपने सांसदो को 15000/- टेलीफोन भत्ता किसलिए दे रही है ? क्या देश की जनता मूर्ख है ?

 

 

आप सबने सुनियोजित ढंग से शिक्षक कर्मचारी पर आरोप लगाया कि वे कामचोर हैं, भ्रष्ट है इसलिए पहले पेंशन बंद कर दी, समुचित वेतन नही बढ़ाया, अब वेतन आयोग को बंद कर रहे हैं। अपने पूँजीपति भाइयों को खुश करने के लिए संस्थाओं का निजीकरण करने का मुद्दा उठा रहे हैं। आम जन को आपकी कार्यशैली पसंद आ रही पर भेड़ जनता को हकीकत तब पता चलेगी जब हाथ में कुछ भी नहीं रह जायेगा क्योंकि बुनियादी स्वास्थ्य के बिना मरीज अस्पतालों के बाहर मरे मिलेंगे और बुनियादी शिक्षा के बिना भारत जैसे देश के आधे नौनिहाल अशिक्षित रह जाएंगे और तो और नुकसान की बात कर निजी कम्पनियां बीच मे स्कूल भी बंद कर देंगी अन्यथा खून चूसती रहेंगी। क्या आप सबको पता नहीं है कि निजी संस्थानों का मूल उद्देश्य तो लाभ होता है। वे उन्हीं उद्योगों को हाथ में लेते हैं, जहां लाभ अधिकतम और निश्चित हो। जनता को समझना होगा नौकरियों को समाप्त किया जा रहा है।

 

जैसे अभी प्राथमिक में अचानक 66 हजार लगभग अध्यापकों को सरप्लस दिखा दिया गया। आप जैसे कुछ लोगों का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का आकार स्वतः भ्रष्टाचार में परिणत होता है तो कैसे तमाम नॉर्डिक देशों में बड़े सार्वजनिक क्षेत्र हैं लेकिन भ्रष्टाचार कम है। यह देखने में आ रहा कि जैसी सरकार वैसा काम। एक बात और केवल हमें ही क्यों आप सब अपने को क्यों नही देखते? क्या आप सबसे हम ज्यादे अकर्मण्य हैं ? क्या आप सबसे ज्यादे भ्रष्टाचारी हैं ? हमारे ऊपर कोई जाँच आती है तो सेलरी रोक दी जाती है आपके ऊपर जाँच ही नहीं आती, आती भी है तो कोई आर्थिक नुकसान नहीं उठाना पड़ता। मतलब अधिकार सुख इतना मादक होता है कि सामान्य समझ भी नही रह जाती ? यदि 50 वर्ष पार कर चुके कर्मचारी की स्क्रीनिंग करके नौकरी से हटाया जा सकता है तो 50 की उम्र पार कर चुके नेताओं के स्क्रीनिंग की व्यवस्था क्यों नहीं है ? ये कर्मचारी तो केवल एक विभाग या कार्यालय चलाते हैं यदि उसके कार्यक्षमता का इतना प्रभाव पड सकता है तो हमारे देश के नेता तो पूरा देश चला रहे हैं क्या 50 की उम्र पार कर चुके नेताओं के कार्यक्षमता का प्रभाव देश पर नहीं पडता होगा। सुना है आप अपने 56 इंच का सीने से मन की बात करते हैं यदि वास्तव में ऐसा है तो हमारे उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर आप अगले मन की बात में देश की जनता को बताने की कृपा करेगें।

Author: aman yatra

aman yatra

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