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अमन यात्रा ,कानपुर देहात। सरकार नये सत्र से स्कूल स्तर पर नई शिक्षा नीति को पूरी तरह लागू करने जा रही है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पहली कक्षा में प्रवेश के लिए न्यूनतम उम्र छह साल तय करने का निर्देश दिया है। ये नई पहल स्कूल स्तर पर दाखिले में ही नहीं स्कूली शिक्षा में कई तरह के बदलाव लाएगी। इन नये बदलावों को लेकर अभिभावकों के मन में कई सवाल हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल आयु सीमा तय करने को लेकर है। छह साल की उम्र सीमा का सीधा अर्थ यह है कि उसके पहले क्या उनके बच्चे घर में ही घूमते रहेंगे। पहली कक्षा में दाखिला लेने के लिए बच्चे की उम्र अप्रैल माह में छह साल पूरी होनी चाहिए आदि सवाल जहन में गूंज रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अभिभावक अपने बच्चों को इतने दिनों तक बिना पढ़ाई के तो रहने नहीं देंगे। वह किसी प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवाएंगे। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आंगनवाड़ी केंद्रों में पढ़ाई ही नहीं होती है अधिकांश आंगनवाड़ी केंद्र बंद ही रहते हैं। ऐसे में प्राइवेट संस्थानों में अपने बच्चों का प्रवेश करवाना अभिभावकों के लिए मजबूरी है।
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गैर सरकारी स्कूलों के संचालक ढाई साल के बच्चे का भी प्रवेश ले लेते हैं क्योंकि वे नर्सरी से कक्षाएं संचालित करते हैं। ऐसे में कोई भी अभिभावक अपने बच्चे की उम्र 6 वर्ष होने के बाद प्राइवेट स्कूल से नाम कटवाकर सरकारी स्कूल में कक्षा 1 में नहीं करवाएगा। ऐसी स्थिति में सरकारी स्कूलों में छात्र नामांकन दिन प्रतिदिन कम होता जाएगा जिससे शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर भी विराम लग जाएगा। सरकार के इस फैसले से शिक्षक खुश नहीं हैं। शिक्षकों का तर्क है कि पहले ही स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या कम है। इस निर्णय से स्कूलों में होेने वाले एडमिशन पर फर्क पड़ेगा क्योंकि प्राइवेट स्कूल कम उम्र में ही बच्चों का दाखिला कर लेते हैं ऐसे में सरकारी स्कूलों को दाखिले के लिए बच्चे ही नहीं मिलेंगे।
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