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जिस पतली आवाज को लेकर कभी फिल्मों में हुई थीं रिजेक्ट, उसी ने बनाया भारत की ‘स्वर कोकिला’

भारतीय सिनेमा की लीजेंड्री गायिका लता मंगेशकर के सफर को शब्दों में समेटना आसान नहीं है। लगभग 8 दशक के करियर में लता जी ने सुरों की जो बंदिगी की है, वो अद्भुत और अकल्पनीय है। लता मंगेशकर ने अपने सुरों से ना सिर्फ प्लेबैक सिंगिंग को नये आयाम दिये, बल्कि गायकों की तमाम पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनके निधन से भारतीय संगीत जैसे सूना हो गया।

नई दिल्ली,अमन यात्रा । भारतीय सिनेमा की लीजेंड्री गायिका लता मंगेशकर के सफर को शब्दों में समेटना आसान नहीं है। लगभग 8 दशक के करियर में लता जी ने सुरों की जो बंदिगी की है, वो अद्भुत और अकल्पनीय है। लता मंगेशकर ने अपने सुरों से ना सिर्फ प्लेबैक सिंगिंग को नये आयाम दिये, बल्कि गायकों की तमाम पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनके निधन से भारतीय संगीत जैसे सूना हो गया।

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को मध्यप्रदेश में इंदौर शहर के एक मध्यम वर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय शुरू कर दिया और इसके साथ ही वह अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेने लगीं। इसके अलावा लता ने जाने माने उस्ताद अमानत अली खां साहब से शास्त्रीय संगीत सीखना भी शुरू किया, लेकिन विभाजन के दौरान खां साहब पाकिस्तान चले गए। इसके बाद लता ने अमानत खां से संगीत की शिक्षा लेनी प्रारंभ की। पंडित तुलसीदास शर्मा और उस्ताद बड़े गुलाम अली खां जैसी जानी मानी शख्सियतों ने भी उन्हें संगीत सिखाया।

लता ने बॉलीवुड में 1940 के दशक में प्रवेश किया जो उनके लिए गलत समय साबित हुआ क्योकि उस वक्त नूरजहां, शमशाद बेगम और जोहरा बाई अंबाले वाली जैसी वजनदार आवाज वाली गायिकाओं का दबदबा था। उन्हें कई प्रोजेक्ट्स से रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि कई फिल्म प्रोड्यूसरों और संगीत निर्देशकों को उनकी आवाज बहुत ऊंची और पतली लगती थी।

इसके बाद लता को एक और कठिन इंतेहान से गुजरना पड़ा, जब वर्ष 1942 में तेरह वर्ष की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। इसके बाद उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया। हालांकि लता को फिल्मों में अभिनय करना जरा भी पसंद नहीं था। बावजूद इसके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। वर्ष 1942 में लता को पहली बार “मंगलगौर” में अभिनय करने का मौका मिला। 1942 से 1948 के बीच लता ने लगभग आठ हिन्दी और मराठी फिल्मों में काम किया।

लता ने 1942 में एक मराठी फिल्म ‘किती हासिल’ (1942) से एक पार्श्व गायिका के रूप में अपनी शुरुआत की, लेकिन बाद में यह गाना फिल्म से हटा दिया गया। इसके पांच साल बाद भारत आजाद हुआ और लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्मों में गायन की शुरुआत की, ‘आपकी सेवा में’ पहली फिल्म थी जिसे उन्होंने अपने गायन से सजाया लेकिन उनके गाने को कोई खास चर्चा नहीं मिली।

हालांकि, 1948 में, उन्हें गुलाम हैदर के साथ फिल्म मजबूर (1948) में बड़ा ब्रेक मिला, और 1949 में उनकी चार फिल्में ‘बरसात’, ‘दुलारी’, ‘महल’ और ‘अंदाज’ रिलीज हुईं और सभी हिट रही। उनके गानों को वो लोकप्रियता मिली जो किसी ने उस समय तक अनदेखी नही थी।

पचास का दशक आते-आते लता मंगेशकर, शंकर जयकिशन, एस.डी.बर्मन, सी.रामचंद्रन मोहन, हेमन्त कुमार और सलिल चौधरी जैसे नामी-गिरामी संगीतकारों की चहेती गायिका बन गईं। साहिर लुधियानवी के लिखे गीत और एस.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में लता ने कई हिट गाने गाए। जिनमें 1961 में फिल्म “हम दोनों” के लिए गाया “अल्लाह तेरो नाम.. “, “अनारकली” के गीत ये जिंदगी उसी की है.., जाग दर्द इश्क जाग शामिल हैं।

साठ के दशक में रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता ने कवि प्रदीप के लिखे गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने को अपनी दिलकश आवाजा में गाकर सदा के लिए अमर कर दिया। इस गीत में 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों को याद किया गया। इस गीत को सुनकर तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए।

लता मंगेशकर के गाए कुछ सर्वश्रेष्ठ गानें

लता मंगेशकर को स्वर कोकिला की उपाधि से यूं ही नही नवाजा गया, उन्हें भजन, गजल, कव्वाली शास्त्रीय संगीत हो या फिर आम फिल्मी गाने लता को सब में एक जैसी महारत हासिल है। लता ने अपने करियर में मीना कुमारी से लेकर कैटरीना कैफ तक हर बदलती पीढ़ी के लिए गाने गाए हैं। उनके कुछ सदाबहार गानें,

हाय-हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी, पर्बत के पीछे चंबे दा गांव (महबूबा), आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है (गाइड), तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं (मासूम), ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया (अनारकली), वंदे मातरम (आनंद मठ), आप की नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे (अनपढ़), प्यार किया तो डरना क्या (मुगल-ए-आजम), ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जब कभी भी जी चाहे (दाग), कभी कभी मेरे दिल में(कभी कभी), नीला आसमां सो गया(सिलसिला), मेरी बिंदिया तेरी निंदिया(लम्हे), ढोलना(दिल तो पागल है), तेरे लिए(वीर जारा) जैसे कई हिट गानें दिए है।

30 हजार से ज्यादा गाने गा चुकीं है लता मंगेशकर

लता मंगेशकर ने दुनियाभर की 36 भाषाओं में 30 हजार से ज्यादा गाना गाए हैं। 1991 में ही गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने माना था कि वे दुनिया भर में सबसे अधिक रिकॉर्ड की गई गायिका हैं। उन्होंने शंकर जयकिशन, मदन मोहन, जयदेव, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, एस डी बर्मन, नौशाद और आर डी बर्मन से लेकर रहमान तक हर पीढ़ी के संगीतकारों के साथ काम कर चुकी हैं।

इन पुरस्कारों से लता जी को किया गया है सम्मानित

लता मंगेशकर को भारतीय संगीत में महत्‍वपूर्ण योगदान देने के लिए भारत सरकार ने 1969 में पद्म भूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1999 में पद्म विभूषण, 2001 में भारत रत्न और 2008 में भारत की स्वतंत्रता की 60 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” से सम्मानित किया गया।

लता जी के 90वें जन्मदिन पर उन्हें सात दशकों से संगीत की दुनिया में दिए अपने योगदान के लिए भारत सरकार की तरफ से ‘डॉटर ऑफ द नेशन’ टाइटल से सम्मानित किया गया।

लता ही एकमात्र ऐसी कलाकार हैं, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। मध्यप्रदेश की राज्य सरकार ने 1984 में उनके नाम पर पुरस्कार शुरू किया, जिसका नाम ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ रखा गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार भी लता मंगेशकर के नाम से पुरस्कार देती है।

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Author: pranjal sachan

कानपुर ब्यूरो चीफ अमन यात्रा

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कानपुर ब्यूरो चीफ अमन यात्रा

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