कितना अनोखा शब्द है युद्ध जो शक्ति की प्रधानता की लड़ाई रचता है। अधर्म के तांडव का मैदान का गढ़ता है। इस युद्ध का निष्कर्ष होता है उजड़ा परिवार, रोता-बिलखता संसार, मानवता का कृंदन, अश्रुपूरित बेबस इंसान। वर्चस्वता की अंधांधुंध लड़ाई ही युद्ध की ओर धकेलती है। मानवता तो सदैव केवल एक ही ज्ञान देती है वह है इंसानियत का। युद्ध जनक होता है निर्मम और निर्दय भावों का। युद्ध अनिष्ठ, अंधकार और हाहाकार से घिरा होता है। परचम फहराने की लड़ाई यथार्थ धरातल पर हृदय विदारक होती है। युद्ध तो जमीनी लड़ाई है, पर इसमें इंसान और इंसानियत को त्राहिमाम दुहाई मिलती है।
इतिहास की किताबों में कितने ही युद्ध पढे गए और जिसमे न जाने कितनी तबाही गढ़ी गई। युद्ध में तबाही देखने वाली आँखें नहीं बचती। युद्ध के अवशेष संग्रहालयों में रखे जाते है। वीरगति को प्राप्त करते लोगों के नाम स्मारकों में लिखे जाते है, पर कई बेनाम तो पता नहीं इस विध्वंस में कहाँ गुमनाम हो जाते है। अंत में विजय पताका के शोर में पता नहीं कितनी सिसकीया छुपी होती है। युद्ध में एक सैनिक निर्ममता और निर्दयता से दूसरे सैनिक को ढेर करता है, यह कैसी विडम्बना है। इस युद्ध का परिणाम होता है विद्रोह, विघटन और सर्वत्र विनाश। यह कैसा युद्ध होता है जो जलन और ज्वाला से सजा होता है। इस युद्ध में बंकर की तलाश, शहर-दर-शहर खंडहर, मृत्यु और मातम से झुलसा जनजीवन दिखाई देता है। युद्ध तो कराह है जिसमें बेबसों को न मिलती पनाह है। मानवता को मिटाकर क्षत-विक्षत इंसान और इंसानियत के टुकड़े ही चारों ओर पड़े मिलते है। युद्ध के उद्घोषक रचते है तृष्णा, तपिश और टकरार का साम्राज्य।
इस संकट, संघर्ष और नरसंहार में सर्वत्र हानि ही परिलक्षित होती है। युद्ध का संताप, दमन की गोलियां, क्रुद्ध-क्रूर और कर्कश चक्रव्युह यह मानवता का क्षय करते है। युद्ध में संलग्न लोग विध्वंस रचते है। बम और हथियार का उपयोग मानवता की हत्या में करते है। हमसे अच्छे तो वो कीड़े अच्छे है जो मिलकर मधु और रेशम बनाते है और कुछ सकारात्मक प्रयास करते है। युद्ध घातक और घृणित है। शापित और शोषण करने वाला है। युद्ध वेदना का निर्मम गान है। युद्ध शक्ति के झूठे दंभ, हत्या, हरण और हेय भावों वाला होता है। युद्ध तो मानवजाति के विनाश के लिए बोझ और बवंडर है। हमारा इतिहास तो अनेकों युद्ध की ही कहानी है जिसमें युद्ध के परिणामस्वरूप कई संस्कृति नष्ट हो गई। कई देशों का पतन हो गया और जिसमें कई बेबस और मासूम विलुप्त हो गए।
युद्ध शब्द का विश्लेषण नहीं है आसान।
इसमें तो होती है इंसानियत कुर्बान॥
युद्ध तो सदैव करता है विनाश का आह्वान।
इसकी क्षति से उबरना नहीं होता है आसान॥
युद्ध तो है विद्रोह, विघटन और विनाश का सम्मिश्रण।
जिसमें कई बेबस और मासूम हार जाते है जीवन का रण॥
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)