अभिभावकों की सजगता ही सुरक्षा चक्र
पेरेंट्स का परवरिश के कई मोर्चों पर सजग रहना जरूरी है। खासकर बच्चों के शारीरिक शोषण के मामले में सतर्कता आवश्यक है। यूं तो हर अभिभावक बच्चों को लेकर हर किसी पर भरोसा नहीं ही करता पर क़रीबी अपनों और परिचितों पर विश्वास करना भी कई बार कटु अनुभव साबित होता है।
पेरेंट्स का परवरिश के कई मोर्चों पर सजग रहना जरूरी है। खासकर बच्चों के शारीरिक शोषण के मामले में सतर्कता आवश्यक है। यूं तो हर अभिभावक बच्चों को लेकर हर किसी पर भरोसा नहीं ही करता पर क़रीबी अपनों और परिचितों पर विश्वास करना भी कई बार कटु अनुभव साबित होता है। 2012 से 2021 तक हुई बालमन का दंश बनने वाली घटनाओं के आंकड़े इसी रीतते भरोसे की बानगी हैं। करीब एक दशक में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक, बच्चों के कामुक शोषण के मामलों में 94 फीसदी आरोपी पीड़ित के परिवार के परिचित, परिजन या परिवार का ही कोई सदस्य होता है। बच्चियों के यौन शोषण की घटनाओं ने 48.66 प्रतिशत आरोपी परिचित ही निकले हैं जो या तो बच्ची के दोस्त थे या उनसे जान-पहचान रही है। इसीलिए बच्चों की सुरक्षा को लेकर सजगता जरूरी है।
विश्वास हो अंधा विश्वास नहीं
आज के असुरक्षित परिवेश में जरूरी है कि बच्चों के मामले में हर किसी पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। आए दिन हो रही घटनाएं बताती हैं कि मासूमों के साथ दुर्व्यवहार करने वाला घरेलू सहायक, ट्यूशन टीचर, करीबी रिश्तेदार या पड़ोसी, परिचित-अपरिचित कोई भी हो सकता है। अवसर पाकर बच्चों के साथ दरिंदगी करने वाले कुत्सित मानसिकता के लोग अपना-पराया नहीं देखते। दुखद, पर सच है कि इस मामले में अब हर कोई संदेह के घेरे में है। जहां स्कूल परिसर से लेकर घर के आंगन तक बच्चों को शोषण का दंश मिल रहा है, वहां यह शंका लाजिमी भी है। कई बार तो शोषण करने वाले लोग बच्चों को डराते भी हैं। ऐसे लोगों के गलत इरादे समय रहते पहचानिए। किसी और पर आंख मूंद कर किया भरोसा अपने ही बच्चे के मन को अविश्वास का घाव न दे जाए।
व्यवहार पर करें गौर
बच्चे का बदलता व्यवहार उसके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को बिन कहे बताने को काफी होता है। बाल यौन शोषण से जुड़ी अधिकतर घटनाओं में पेरेंट्स आगे चलकर महसूस करते हैं कि कैसे उनका बच्चा चुप रहने लगा था। अपनों-परायों से कटकर आत्मकेंद्रित हो गया था। फ्रेंड्स से दूरी बना ली थी। बच्चा किसी विशेष व्यक्ति को अचानक नापसंद करने लगा था। उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। खान-पान में अरुचि हो गई थी या फिर पढ़ाई में पिछड़ने लगा था। एक सजग अभिभावक बन मासूम मन की पीड़ा का संकेत कहे जा सकने वाले व्यवहार के इन बदलावों पर समय रहते गौर कीजिए। बालमन की अनकही भावनात्मक टूटन को समझने के लिए उनके साथ वक्त बिताएं। बातों-बातों में गुड टच बैड टच के बारे में समझाएं। कई बार बच्चे ऐसी समझाइश के समय अपना मन खोलते हैं। सहजता से बता पाते हैं कि उनके साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है।
बच्चों की बात मन से सुनें
बहुत छोटे बच्चे कई बार अपने साथ हो रही ज्यादती के बारे में समझ ही नहीं पाते तो कई बार पेरेंट्स को बताने में ही हिचकते हैं। खासकर तब जब कोई परिचित यह पीड़ादायी बर्ताव कर रहा है। कभी बच्चे अपनी बात कहते भी हैं तो अभिभावक सुने बिना ही टाल देते हैं। यह कैसी बात है? कहां से सीखा यह सब? फालतू बात मत करो। ऐसी बातें कहकर बच्चों का मनोबल तोड़ देते हैं। इन घटनाओं का दुखद पक्ष है कि मासूम को अभिभावक भी नहीं समझ पाते। बहुत से बच्चे मां-पापा से मिले इस निराशाजनक बर्ताव के हालातों में अतिवादी निर्णय ले लेते हैं। इसीलिए बच्चे जो कहना चाहते हैं उसे सुनें। कितना भी भरोसेमंद इंसान हो उसे परखें जरूर। यह भी सोचें कि दुनिया की ऊंच-नीच तक न जानने-समझने वाला मासूम बेवजह ऐसी बात क्यों कहेगा? याद रखिए कि असहज हालातों में ही बच्चे ऐसी शिकायतें आप तक लाएंगे। इतना ही नहीं ऐसे लोग खुद भी बच्चों से यही कहते हैं कि उनकी शिकायत पर कोई भरोसा नहीं करेगा। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि सहज-सुरक्षित परिस्थितियों में भी बच्चों को यह भरोसा दिलाते रहें कि उनकी हर बात सुनी और समझी जाएगी। ताकि ऐसे दुर्व्यवहार को लेकर वे आप से बिना हिचक अपनी बात बता सकें, शिकायत कर सकें, उलझन से निकल सकें।
-डॉ. मोनिका शर्मा-