उत्तरप्रदेशकानपुर देहातफ्रेश न्यूजलखनऊ

परिषदीय शिक्षक बने मल्टी टास्क टूल, ऑनलाइन अटेंडेंस लागू कर सरकार कर रही है बहुत बड़ी भूल 

शिक्षक की नौकरी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण नौकरियों में से एक है। वे माता-पिता, अनुशासनकर्ता, न्यायाधीश, प्रशासक, शैक्षणिक विशेषज्ञ, संरक्षक और बहुत कुछ जैसे कई अलग-अलग व्यवसायों की भूमिका निभाते हैं और शायद हर समय।

राजेश कटियार, कानपुर देहात। शिक्षक की नौकरी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण नौकरियों में से एक है। वे माता-पिता, अनुशासनकर्ता, न्यायाधीश, प्रशासक, शैक्षणिक विशेषज्ञ, संरक्षक और बहुत कुछ जैसे कई अलग-अलग व्यवसायों की भूमिका निभाते हैं और शायद हर समय।

यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे शिक्षक इतने सारे काम करते हैं कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वे मल्टीटास्किंग में विशेषज्ञ बन गए हैं लेकिन यह सब जानते हुए भी कुछ अल्प ज्ञानी मूर्ख लोग शिक्षकों पर तंज कसते रहते हैं। उन्हें इस क्षेत्र की जानकारी कुछ भी नहीं रहती लेकिन वह ऊल जलूल कमेंट कर अपनी मूर्खता का परिचय देते रहते हैं। एक शिक्षक ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि हम नियुक्त तो शिक्षक पद पर हुए थे लेकिन विभाग ने हमे मल्टी टास्क वर्कर बना दिया है जिनसे शिक्षण के अतिरिक्त सभी कार्य कराये जाते हैं।

विद्यालयों में हमारी भूमिका आया की बना दी गई है केवल बच्चों को खाना खिलाना, खेल खिलाना और रखाना। हम चाहकर भी अपने विधार्थियों को पढ़ा नहीं पा रहे हैं। सरकार ने आरटीई का मजाक बना दिया है कहीं सैकड़ों विधार्थियों पर एक शिक्षक तो कहीं कुछ विधार्थियों पर अनेक शिक्षक और कहीं एक भी शिक्षक नहीं किसने की ये व्यवस्था। माननीय उच्च न्यायालय ने हमारी गरिमा बनाये रखने का भरसक प्रयास किया किंतु नीति नियंताओं ने उनके आदेशों को भी हवा मे उड़ा दिया। हमारा ही विभाग हमारे साथ सौतेला व्यवहार करता है। अधिकारियों का तो समय से प्रमोशन करता है और हम शिक्षकों का शोषण करता है। जब एक सहायक अध्यापक को इंंचार्ज प्रधानाध्यपक बनाकर काम चला सकते हो तो इंंचार्ज बीईओ और इंंचार्ज बीएसए, इंंचार्ज जिलाधिकारी या अन्य पदों पर इंंचार्ज बनाकर काम क्यों नहीं चला सकते, इसलिए कि गरीब की शिक्षा ही गैर जरूरी विषय है जिसके साथ आप अनाप शनाप प्रयोग कर सकते हैं बाकी सभी विषय बेहद जरूरी हैं उन पर प्रयोग करना तो दूर आप उन्हें छेड़ना भी नही चाहते।

जनप्रतिनिधि एक दिन सेवा देकर ओपीएस डकार लेतें हैं वो भी कई-कई और हमे आजीवन सेवा पर एनपीएस का झुनझुना थमा देते हैं। मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा थू-थू कहाँ से लाते हैं इतना दोगलापन। माना आपकी दृष्टि मे हम गलत हैं, हमारी मांगे गलत हैं तो आप हमारे लिए कुछ मत करिये किंतु आपकी दृष्टि में माननीय उच्च न्यायालय तो सही हैं न तो आप माननीय उच्च न्यायालय के उस आदेश जो आपने वर्षों से रद्दी की टोकरी मे डाल रखा है का पालन कर लीजिये जिसमे सभी नेता और सरकारी अधिकारियों के बच्चों का सरकारी स्कूल मे पढाना अनिवार्य है।

अगर आप में वाकई राष्ट्र प्रेम हैं और इतना नैतिक साहस है तो उक्त आदेश का पालन कीजिये वरना राष्ट्र कल्याण का स्वांग मत रचाइये। अभी हाल ही परिषदीय स्कूलों में ऑनलाइन अटेंडेंस लागू की गई है। शिक्षकों को चोर साबित करने की साजिश रची जा रही है।

हम ऑनलाइन अटेंडेंस से पीछे नहीं हट रहे हैं लेकिन हमारी भी कुछ मांगे हैं पहले उन्हें तो पूरा करिए। स्कूलों को पर्याप्त संसाधन तो उपलब्ध कराइए और यह व्यवस्था सर्वप्रथम उच्च अधिकारियों के कार्यालय में लागू करिए ताकि यह भी तो पता चले की अधिकारी अपने कार्य को कितनी ईमानदारी के साथ कर रहे हैं।

AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE

Related Articles

AD
Back to top button