
।। नन्ही सी गौरैया ।।
मैंने देखा हैं,
अपने घर आंगन में गौरैया को
आते जाते ।
मैं भी रखती हूं दाना पानी
उसके वास्ते!
देखती हूं जब भी उसे गौर से
अटखेलिया करते अपने घोंसले में ।
यकीन मानो,
खो सा जाती हूं उसके अस्तित्व में
थोड़ा सा मैं ।
कभी फुदक के इधर बैठना,कभी फुदक के उधर बैठना ।
कभी आपस में दाना चुगने के लिए झगड़ना,कभी ची ची करके मुझे चाहती हैं खुद से दूर करना ।
शायद!
डरती हैं मुझसे,
मैं ना करूं जरा सा भी परेशां उनको
क्या,
आप जानते हो ।
गौरैया हैं आज विलुप्त की कगार में
क्या हैं हमारा दायित्व उनके प्रति ।
आइए मिलकर,
इनका संरक्षण करे ।
और इनकी जनसंख्या को एक से अनेक करे ।।
गौरैया दिवस की ढेर शुभकामनाएं ।।
स्नेहा कृति(रचनाकार और सह संयोजक राष्टीय जंगल बचाओ अभियान )कानपुर, यूपी
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