मनोरम मौसम लेकर इन्द्रधनुष पुष्पों के संग उत्सव मनाने आयी रे पवन सुहानी आयी रे बदरी की सुर कंपन…
जिंदगी के सफर में पिता महान होता है l जमीन पर रहकर भी वह आसमान होता है l हर खुशी…
मेरी बेटी फूल सी कोमल, सुंदर सुकोमल एक छोटी सी कलिका, मेरे आंगन में अवतरित हुई l कहां-कहां की आवाज…
।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।। आज़ाद पंक्षी सी होती हैं ये लड़कियां हर पंख से एक…
इस जहां में मैं खुद को तलाशता रहा.... मैं कौन हूं... क्या है मेरा वजूद....? बस खुद से किए सवाल…
मासिक धर्म के नाम पर ये आडंबर क्यूं ?? मैं! पूछना चाहती हूं इस समाज धर्म के ठेकेदारों से आखिर!…
आज भी परंपराओं को निभाने की परंपरा जिंदा है। पैदा होने से लेकर मरने तक यहां आदमी परंपराओं को निभाता…
दोस्त तेरे बिना मैं किधर जाऊंगा टूट जाऊंगा बिखर जाऊंगा। जिंदगी दर्द बन जाएगी कोई खुशी मेरे पास रह ना…
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