कानपुर देहात

कानपुर देहात के प्राचीन वाणेश्वर महादेव बनीपारा में उमड़ी शिव भक्तों की भीड़

वही शिवरात्रि के महापर्व पर वाणेश्वर महाराज में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर बाबा शिव का जलाभिषेक कर उनसे अपनी मनोकामना पूर्ण करने का वर मांगते हैं।

रुरा कानपुर देहात,अमन यात्रा। जनपद कानपुर देहात के कस्बा रूरा से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिनई बनीपारा में प्राचीन शिव मंदिर स्थित है जहां पर बाबा वाणेश्वर महाराज की विशालकाय प्रतिमा विद्यमान है। सावन के महीने में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर बाबा के दर्शन करते हैं वही शिवरात्रि के महापर्व पर वाणेश्वर महाराज में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर बाबा शिव का जलाभिषेक कर उनसे अपनी मनोकामना पूर्ण करने का वर मांगते हैं। इस प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास पुराणों में विद्यमान है बताया जाता है कि दैत्य राज्य बलि के पुत्र बाणासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस  ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।रुरा कस्बा से 7 किलोमीटर दूर बनीपारा गांव में वाणेश्वर शिव मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता था कि सतयुग में राजा वाणेश्वर की बेटी यहां सबसे पहले पूजा करती थी और तब से अब तक इस शिवलिंग पर सबसे पहले सुबह यहां कौन पूजा करता है इसका रहस्य आजतक बरकरार है।

आस-पास के लोगों का कहना है कि हजारों साल से मंदिर में सुबह-सुबह शिवलिंग पूजा हुआ मिलता है। यहां के लोगों की आस्था है कि सावन के सोमवार उपवास रखने के बाद यहां जल चढ़ाने मात्र से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है ।कानपुर देहात जिले के अंतर्गत रूरा नगर से उत्तर पश्चिम दिशा में 7 किलोमीटर दूरी पर रूरा -रसूलाबाद मार्ग पर वाणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह देवालय रोड के द्वारा कहिंझरी होकर कानपुर से जुड़ा हुआ है। कहिंझरी से इस मंदिर की दुरी 8 किलोमीटर है। यहां पहुचने के लिए रूरा रेलवे स्टेशन (उत्तर मध्य रेलवे ) से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुँच सकते है। अम्बियापुर रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है।photo 5 1 1

झींझक रेलवे स्टेशन से उत्तर कर रोड द्वारा मिंडा का कुंआ से होकर वाणेश्वर महादेव मंदिर पहुँच सकते है। रसूलाबाद कस्बे से इस मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है। बिल्हौर रेलवे स्टेशन से उत्तर कर रसूलाबाद होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।  पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। इतिहास लेखक प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के अनुसार सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी। दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी। श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था। परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया। मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तिया पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं।कुछ ऐसी ही मान्यता कावड़ियों के साथ है। कहा जाता है कि कावड़ियों की पूजा इस मंदिर में गंगा जल को चढ़ाएं बिना पूरी नहीं होती है । मुगल शासकों ने इसे नष्ट करने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके।

वाणेश्वर महादेव मंदिर इस मंदिर के पंडित किशन बाबू के अनुसार मंदिर के संबंध में कथा है कि सतयुग में राजा बाणेश्वर थे वो सतयुग से द्वापरयुग तक राजा रहे है l बाणेश्वर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने बाणेश्वर को दर्शन दिए और इच्छा वरदान के लिए कहा तो बाणेश्वर ने भगवान शिव को मांगा।

 

वाणेश्वर महादेव मंदिर तब भगवान शिव ने प्रारूप के रुप में शिवलिंग दिया, लेकिन शर्त रखी कि अगर शिवलिंग को महल में जाने के क्रम में जमीन रख दिया तो दोबारा नहीं उठ पाएगा। लेकिन कुछ कारणवश बाणेश्वर को शिवलिंग जमीन पर रखना पड़ जाता है तब उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया था ।इस मंदिर की खास बात ये है कि सावन में कावंड़ियों की पूजा तब तक सफल नहीं होती है जब तक वे इस शिवलिंग में गंगा जल न चढ़ाया जाए l इस कारण इस मंदिर में कावड़ियों का जमावड़ा लगता है l नागपंचमी वाले दिन यहां पर कुश्ती का भी आयोजन होता है जिसमे कई जनपदों के पहलवान हिस्सा लेते है l

 

 

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Author: aman yatra


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