कविता
।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।।
।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।। आज़ाद पंक्षी सी होती हैं ये लड़कियां हर पंख से एक नई उड़ान भरती हैं ये लड़कियां ।।
।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।।
आज़ाद पंक्षी सी होती हैं ये लड़कियां
हर पंख से एक नई उड़ान भरती हैं ये लड़कियां ।।
मायका भी गुलज़ार करती हैं
और ससुराल भी
हर खंडहर को आशियां करती हैं ये लड़कियां ।।
पिता का मान,मां का सम्मान
भाई की जां और बहन की सखी सी
होती हैं ये लड़कियां ।।
सांस ससुर,पति देवर नन्द
और अधूरे ससुराल को पूरा करती हैं ये लड़कियां ।।
खुद की पहचान बनाती हैं
खुद के दम पर
औरों के सहारे के ना मोहताज होती हैं ये लड़कियां ।।
फिर,
कौन कहता हैं गालिब!
पराई सी हैं ये लड़कियां ।।
कोख में एक नन्ही जान को
नौ महीने घर देती हैं ये लड़कियां ।।
हर घर रोशन हैं इनके दम पर
घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।।
स्नेहा की कलम से………….