सम्पादकीय

कैलेण्डर का उद्भव और विकास

                      

पृथ्वी पर मानव जीवन के उद्भव के साथ उसके ज्ञान में शनै-शनै  प्रगति हुई। मानव सभ्यता के विकास में समय का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इसलिए उसने सूर्य और चन्द्र के क्रिया-कलापों के आधार पर मौसम की गति को समझा। मानव ने सर्वप्रथम सूर्य के उदय और अस्त की प्रक्रिया से रात और दिन में भेद करना सीखा। चन्द्रमा के घटने और बढ.ने से पक्ष और महीने की अवधारणा का विकास हुआ। मौसम के चक्र काल को उसने वर्ष के रूप में स्वीकार किया।

जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ, इसके आधार बदलते गए और उनकी प्रमाणिकता को  सिद्ध करके वैज्ञानिक सत्य माना जाने लगा। सूर्य के चारों ओर परिक्रमा में पृथ्वी को जो समय लगता है उसे वर्ष कहा जाने लगा। इसी प्रकार चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर लगाई जाने वाली परिक्रमा को महीना कहा गया। पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में जो समय लेती है, वह दिन कहलाता है।

रोम के जूलिएस सीजर ने 46 ई0 पूर्व कैलेण्डर के विकास के सन्दर्भ में सही कदम उठाया। उसने इस कार्य में अपने ज्योतिष षास्त्री सौसीजन की सहायता ली। इनके द्वारा खोजा गया कैलेण्डर भी सूर्य की परिक्रमा पर आधारित था, इसलिए यह सौर कैलेण्डर के नाम से जाना गया।

सीजर के ज्योतिषियों ने वर्ष को 365 दिन और हर चौथे वर्ष 366 दिन माना। इस चौथे वर्ष को लीप ईयर कहा गया। जिस वर्ष का अंक चार से विभाजित हो जाता है उसे लीप ईयर कहते हैं। वर्ष के 365 दिनों को 12 महीनों में बॉटा गया। इसमें जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और दिसम्बर 31 दिनों के महीने थे जबकि अप्रैल, जून, सितम्बर और नवम्बर 30 दिन के थे। फरवरी माह मात्र 28 दिन का माना गया।

लगभग एक हजार छैः सौ वर्ष तक जूलियस सीजर द्वारा निर्मित कैलेण्डर उपयोग में लाया गया। तत् पष्चात इसमें 10 दिन की गड़बड़ी पायी गयी। इस कैलेण्डर में एक त्रुटि रह गयी थी जिसका सुधार सन् 1522 में इटली के पोप ग्रेगरी द्वारा किया गया।

चूँकि पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में वास्तव में 365.2422 दिन लगते हैं इसलिए एक हजार साल की अवधि में 7-8 दिन का अन्तर पड. जाना स्वाभाविक था। इस अन्तर को दूर करने के लिए ग्रेगरी महोदय ने यह बताया कि जिन षताब्दियों की संख्या 400 सौ से विभाजित नहीं हो पाती, उनमें फरवरी 28 दिन की होगी अन्यथा 29 दिन की। इस कलैण्डर को ग्रेगोरियन कैलेण्डर कहते हैं, और इसका उपयोग आज विष्व में हर जगह होता है।

                                       रामसेवक वर्मा

                      विवेकानन्द नगर पुखरायॉ कानपुर देहात

२०९१११ – उत्तरप्रदेश                                                               

AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE


Discover more from अमन यात्रा

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Related Articles

Leave a Reply

AD
Back to top button

Discover more from अमन यात्रा

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading