राजनीतिक दलों के उतरने से शिक्षक हितों को लगा झटका
विधान परिषद के आठ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों पर शिक्षक संघों के वर्चस्व का मामला बीते दिनों की बात होकर रह गई है। अब इस क्षेत्र में भी राजनीतिक दल कूद पड़े हैं।

कानपुर देहात- विधान परिषद के आठ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों पर शिक्षक संघों के वर्चस्व का मामला बीते दिनों की बात होकर रह गई है। अब इस क्षेत्र में भी राजनीतिक दल कूद पड़े हैं। सत्ता दल भाजपा ने पिछली बार चार विधान परिषद क्षेत्रों में अपना भाग्य आजमाया था और तीन पर पताका फहराने में सफल भी हुई थी। इस बार भाजपा दूनी ताकत से सभी आठ विधान परिषद क्षेत्रों में उतर पड़ी है। उसकी सीधी टक्कर सपा से होनी है। वहीं शिक्षक संघ भी राजनीतिक दलों को सबक सिखाने वाले तेवर में दिखाई पड़ रहे हैं। प्रदेश में विधान परिषद के सभी आठ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में शिक्षक संघों के दबदबे की स्वर्णिम विरासत की चमक आने वाले समय में धूमिल पड़ सकती है। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने मान लिया है कि राजनीतिक दलों के इस क्षेत्र में दखल देने से बाजी पलट चुकी हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (शर्मा गुट) का वह इतिहास याद आता है जब वर्षों तक विधान परिषद के आठों निर्वाचन क्षेत्र में उसका परचम लहराया करता था। इस तरह से राजनीतिक दलों के बढ़ते दखल से शिक्षक नेताओं की भुजाएं फड़क उठी हैं। फिलहाल चुनाव फरवरी 2023 में होना है, उसके नतीजे शिक्षक संगठनों एवं राजनीतिक दलों का भविष्य तय करेंगे। एक बार वर्ष 2020 के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो भाजपा ने पहली बार चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, तीन पर जीत दर्ज की थी ऐसे में अगर भाजपा सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती है तो शिक्षक संघों के प्रत्याशियों का जीत पाना मुश्किल होगा।
राजनीतिक दलों के उतरने से शिक्षक हितों को लगा झटका-
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (शर्मा गुट) के अध्यक्ष सुरेश त्रिपाठी कहते हैं कि राजनीतिक दलों के प्रत्याशी उतारने से शिक्षक हितों को झटका लगा है। इससे शिक्षक हित के बजाय जातीय व पार्टी के एजेंडे हावी हो रहे हैं। शिक्षक समझ रहे हैं कि उनकी आवाज उनके बीच के लोग ही उठा सकते हैं। इससे नतीजे भी अप्रत्याशित होंगे।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई गुट) के प्रदेश महामंत्री लालमणि द्विवेदी कहते है कि शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में दलगत राजनीति को बढ़ावा देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। शिक्षक भी अब सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होंगे क्योंकि उनकी बात सदन में मजबूती से उठाने वाला कोई नहीं होगा।
बता दें उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कुल 100 सीटें हैं। इनमें से 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन कोटे के तहत आती हैं। एक तिहाई सदस्यों को विधायक चुनते हैं। वहीं 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं।