अमन यात्रा , कानपुर देहात। देश की बेटियों के हर मोर्चे पर परचम लहराने के बावजूद आज भी समाज में दोयम दर्जा बरकरार है। भले ही समय के साथ-साथ जमाना बदल चुका हो लेकिन आज भी कई जगहों पर बेटी और बेटे में फर्क किया जाता है। आज भी कई लोग ऐसे हैं जिन्हें लगता है कि सिर्फ बेटे ही उनका वंश आगे बढ़ा सकते हैं। ज्यादातर लोग बेटियों को सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं। वहीं बेटों के लिए उनकी पसंद अंग्रेजी स्कूल हैं। यह खुलासा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सभी 60 बोर्ड के वर्ष 2022 के नतीजों के अध्ययन में हुआ है। इसमें सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को शामिल किया गया था।अध्ययन में बेटियों की शिक्षा पर खर्च न करने की सामाजिक कुरीति के बावजूद यह सकारात्मक पहलू भी सामने आया कि तमाम दिक्कतों के बाद भी 10वीं और 12वीं कक्षा में बेटियां उपस्थिति से लेकर पढ़ाई व परिणाम में बेटों से बहुत आगे हैं। अध्ययन में पता चला है कि सरकारी स्कूलों में 10वीं कक्षा में एक फीसदी छात्राें की तुलना में बेटियों की संख्या 1.02 फीसदी है जबकि रिजल्ट में लड़कों का प्रदर्शन 76.2 फीसदी है तो बेटियों का 80 फीसदी।
सहायताप्राप्त स्कूलों में एक फीसदी लड़कों की तुलना में बेटियों की संख्या 0.89 फीसदी है। वहीं अंग्रेजी निजी स्कूलों में एक फीसदी लड़कों की तुलना में बेटियों की संख्या 0.87 फीसदी और परीक्षा में शामिल होने का आंकड़ा 0.88 फीसदी है। इसके बावजूद रिजल्ट में लड़कों का पास प्रतिशत 82.1 रहा तो बेटियों का प्रदर्शन 86.1 फीसदी है।
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12वीं कक्षा में बेटियों से अधिक भेदभाव-अध्ययन में 12वीं कक्षा में भेदभाव अधिक दिखा। सरकारी स्कूलों में एक फीसदी लड़कों की तुलना में बेटियों की संख्या 1.07 फीसदी है जबकि रिजल्ट में लड़कों का 81.8 फीसदी तो बेटियों का प्रदर्शन 87.2 फीसदी है। वहीं निजी अंग्रेजी स्कूलों में रिजल्ट में लड़कों का 83.5% तो बेटियों का प्रदर्शन 90.1% है।
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