आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस(AI): डेटा बनाम आज़ादी
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस(Ai) ने आज समाज को जिस तेज़ी से बदला है, उतनी तेजी शायद ही किसी और तकनीक ने दी हो।

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस(Ai) ने आज समाज को जिस तेज़ी से बदला है, उतनी तेजी शायद ही किसी और तकनीक ने दी हो। शिक्षा, स्वास्थ्य, शासन और मनोरंजन तक हर क्षेत्र में इसकी उपस्थिति गहरी हो गई है। हाल ही में सोशल मीडिया पर इंस्टाग्राम का ‘जेमिनी’ (Gemini) इमेज ट्रेंड इसकी लोकप्रियता का उदाहरण है, जहाँ लोग अपनी तस्वीरों को काल्पनिक और रचनात्मक रूपों में बदलकर साझा कर रहे हैं। यह मनोरंजन का साधन तो है, पर इसके पीछे छिपा प्रश्न गंभीर है—क्या हमारी निजी जानकारी और निजता इन प्लेटफ़ॉर्म्स के हाथों में सुरक्षित है?
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Ai) ने सामाजिक व्यवहार को पूरी तरह रूपांतरित कर दिया है। आज सूचना प्राप्त करने से लेकर ख़रीददारी करने और विचार व्यक्त करने तक हर जगह इसका असर दिखता है। इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर एल्गोरिद्म तय करते हैं कि हमें क्या देखना है और किस कंटेंट पर अधिक समय बिताना है। Gemini ट्रेंड की लोकप्रियता यह दर्शाती है कि AI हमारी रुचियों और जिज्ञासाओं को गहराई से समझकर उन्हें दिशा दे रहा है। लेकिन जब हम अपनी तस्वीरें इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर अपलोड करते हैं, तो यह केवल मनोरंजन नहीं होता, बल्कि हमारे चेहरे के बायोमेट्रिक डेटा और डिजिटल आदतों का एक स्थायी संग्रह भी बनता है।
कहा जाता है कि “डेटा ही नया तेल है”, और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Ai) का असली आधार यही डेटा है। हर बार जब कोई व्यक्ति AI आधारित टूल का प्रयोग करता है, तो उसकी व्यक्तिगत जानकारी एक बड़े डेटाबेस का हिस्सा बन जाती है। यह डेटा कंपनियों के लिए विज्ञापन और उत्पाद बेचने का साधन तो बनता ही है, लेकिन गलत हाथों में पहुँचकर पहचान की चोरी, वित्तीय धोखाधड़ी और राजनीतिक हेरफेर का कारण भी बन सकता है। कैम्ब्रिज एनालिटिका प्रकरण इसका उदाहरण रहा है, जहाँ सोशल मीडिया डेटा का दुरुपयोग चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के लिए किया गया।
यह भी सच है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Ai) ने जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में यह बीमारियों की पहचान और इलाज में मदद कर रहा है। शिक्षा में यह छात्रों को व्यक्तिगत सीखने का अनुभव दे रहा है। शासन में पारदर्शिता और गति बढ़ा रहा है। लेकिन सुविधा और खतरे के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इंस्टाग्राम पर Gemini ट्रेंड भले मासूम लगे, पर इसके पीछे बायोमेट्रिक डेटा और निजी जानकारी के दुरुपयोग की आशंका भी छिपी है। यदि यह डेटा निगरानी तंत्रों के पास चला गया, तो व्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा आघात हो सकता है।
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इस चुनौती से निपटने के लिए मज़बूत डेटा सुरक्षा कानून और डिजिटल साक्षरता दोनों ज़रूरी हैं। यूरोप का ‘जीडीपीआर’ (GDPR) कानून इसका उदाहरण है, जिसने कंपनियों को डेटा उपयोग के लिए नागरिकों की सहमति लेना अनिवार्य बना दिया। भारत ने भी डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 लागू किया है, पर उसके क्रियान्वयन में अभी लंबा रास्ता तय करना है। साथ ही नागरिकों को यह समझना होगा कि मुफ्त प्लेटफ़ॉर्म वास्तव में मुफ्त नहीं होते, बल्कि उनकी असली कीमत हमारा निजी डेटा होता है।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस केवल तकनीक नहीं, बल्कि समाज और निजी ज़िंदगी का चेहरा बदलने वाली शक्ति है। इसका उपयोग आनंद और सुविधा के लिए किया जा सकता है, लेकिन बिना नियम और निगरानी के यही तकनीक निजता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर संकट भी ला सकती है। सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यही है कि हम आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Ai) को संतुलन के साथ अपनाएँ—न तो इससे आँख मूँदकर दूर भागें और न ही अंधाधुंध इसके हवाले अपनी ज़िंदगी कर दें। “तकनीक का उद्देश्य इंसान की सेवा होना चाहिए, न कि इंसान तकनीक का दास बन जाए”
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आदिल कुरैशी
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