लखनऊ / कानपुर देहात। नई पेंशन योजना को लेकर परिषदीय शिक्षकों का विरोध बेअसर साबित हुआ है। 2005 में जारी आदेश के तहत 1 अप्रैल 2005 के पश्चात नियुक्त शिक्षकों को एनपीएस पंजीकरण कराना अनिवार्य है। उसके बिना वेतन आहरण न किए जाने का स्पष्ट निर्देश है। अभी तक सभी विभागों में ढिलाई चल रही थी जिसकारण से अधिकांश लोगों ने एनपीएस पंजीकरण नहीं कराया था जब शासन को इसकी जानकारी हुई तो उसने सख्ती बरतनी शुरू कर दी तो आनन-फानन में शिक्षक इसको लेकर जगह-जगह ज्ञापन देने लगे तो कुछ कोर्ट चले गए।
एनपीएस न अपनाने के मामले में याचियों की ओर से दलील दी गई है कि 28 मार्च 2005 को अधिसूचना जारी करते हुए एनपीएस उन कर्मचारियों के लिए अनिवार्य किया गया था जिन्होंने 1 अप्रैल 2005 के पश्चात नियुक्ति प्राप्त की है और इसके पूर्व के कर्मियों के लिए यह स्वैच्छिक था। कहा गया कि याचियों ने एनपीएस को नहीं अपनाया है। यह भी कहा गया कि 16 दिसम्बर 2022 को सरकार द्वारा जारी शासनादेश में क्लॉज 3(5) के तहत यह प्रावधान किया गया कि जिन कर्मचारियों ने एनपीएस को नहीं अपनाया है और प्रान में भी पंजीकरण नहीं किया है वे वेतन के हकदार नहीं होंगे।
दलील दी गई कि इस प्रकार का आदेश मनमाना है सरकार शिक्षकों के वेतन नहीं रोक सकती है। सरकार से जवाब मांगा गया सरकार ने जवाब दिया कि जो शिक्षक अपनी याचिका में कह रहे हैं वह ही आदेश किया गया है। 1 अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त शिक्षकों को प्रान पंजीकरण कराना अनिवार्य है उसके बगैर वेतन आहरण नहीं किया जाएगा। इससे स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि 1 अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को प्रान पंजीकरण करवाना ही होगा। इसके पूर्व नियुक्त शिक्षकों के लिए यह स्वैच्छिक है।
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