ऑनलाइन हाजिरी का फरमान योगी सरकार के लिए बन जाएगा काल, शिक्षकों में बढ़ रहा आक्रोश
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में डिजिटाइजेशन के विरोध में शिक्षकों का आक्रोश बढ़ गया है क्योंकि महानिदेशक का आदेश कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है। शिक्षक मशीन नहीं राष्ट्र निर्माता हाेता है। शिक्षक को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।
कानपुर देहात। बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में डिजिटाइजेशन के विरोध में शिक्षकों का आक्रोश बढ़ गया है क्योंकि महानिदेशक का आदेश कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है। शिक्षक मशीन नहीं राष्ट्र निर्माता हाेता है। शिक्षक को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। एक तरफ प्राकृतिक आपदा व बरसाती पानी अपना रौद्र रूप दिखा रहा है तो दूसरी तरफ बेसिक शिक्षा की महानिदेशक कंचन वर्मा भी शिक्षकों पर दमनचक्र चला रही हैं।
प्रकृति के प्रहार से शिक्षक बामुश्किल अपनी जान बचा रहे हैं। दुर्गम रास्ते, कच्चे रास्तों पर फिसलन, टूटे पड़े पेड़, घुटनो तक डूबी सड़के व विद्यालयों को देखकर हर कोई कह रहा है कि रास्ते है क्रिटिकूल, हाजरी है डिजिटल यह कैसे संभव है। डीजी साहिबा अपने पूर्ववर्ती साथी के नक्शे कदम पर चलते हुए शिक्षकों पर डिजिटल हाजिरी का बोझ डालने पर अडिग है। भारी बारिश से तमाम परिषदीय विद्यालयों में जलभराव की स्थिति बनी हुई है। पानी से सड़कें खराब हो चुकी हैं। तमाम विद्यालय भवन काफी पुराने हैं जोलगातार बारिश से पूरी तरह से भीगकर दुर्घटना को दावत दे रहे हैं।
प्रदेश के कई जनपद बाढ प्रभावित जनपद हैं यहाँ प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में ऐसी स्थिति हो जाती है कि जिला प्रशासन द्वारा शिक्षण संस्थान बंद किए जाते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के कुछ बड़े पदों पर आसीन अधिकारी जिन्हें जमीनी हकीकत का कोई अंदाजा नहीं है। वे वातानुकूलित कक्ष में बैठकर अव्यावहारिक आदेश जारी करते रहते हैं उन्हीं में से एक आदेश डिजिटल हाजरी का है। उन्हें भी ऐसी विषम स्थितियों का संज्ञान लेना चाहिए तथा इस मौसम में विद्यालय का भौतिक निरीक्षण कर घरातल से जुड़कर अनुभव प्राप्त करते हुए ऑनलाइन हाजिरी जैसे अनावश्यक अपमानजनक उत्पीड़न वाले आदेश को तत्काल वापस लेना चाहिए। इसे प्रकृति की मार कहें या विभाग की भ्रमपूर्ण स्थिति।
एक ओर ईश्वर के क्रोध का स्तर यूँ है कि तमाम विद्यालयों तक आवागमन पूर्णरूपेण बाधित है, ईश्वर का कोप अनवरत गतिमान है, वहीं दूसरी ओर विभाग के प्रमुखों का टैबलेट से डिजिटल व्यवस्था को लागू करने का विचार दृढ़ होता जा रहा है। सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश की निवासी होने के बाद भी डीजी साहिबा को ये ज्ञान नहीं यथार्थ में उत्तर प्रदेश वैविध्यपूर्ण प्रदेश है, भौगोलिक रूप से सभी क्षेत्रों में विभिन्न भेद हैं। अनेकानेक विद्यालय ऐसे हैं जहाँ तक हमारे शिक्षक साथी अत्यंत कठोर/विषम स्थिति में विद्यालय जाते हैं। हजारों की संख्या में ऐसे विद्यालय भी हैं जहाँ इस समय पहुँच पाना प्रत्येक स्थिति में असम्भव है। शायद उन्हें वातानुकूलित कक्षो से विद्यालय के पथ दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं।
चिलचिलाती धूप, कड़कती बिजली, सिहरती हवाओं के मध्य विद्यालय तक ससमय पहुँचने का संघर्ष अध्यापकों के अतिरिक्त कोई नहीं जानता है तथापि ये शिक्षकों की कौम सदैव परखी गयी है। जब भी किसी कर्मचारी के कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए आक्षेप किया गया है तो उसमें शिक्षकों का नाम सबसे पहले लिया गया है। एक ओर समाज इन शिक्षकों की प्रतिष्ठा पर घात-प्रतिघात करता है तो दूसरी ओर विभाग भी नित्य शोषण की पराकाष्ठा को पार कर रहा है जबकि प्रदेश के सभी विभागों में सर्वाधिक निष्पादन यदि कोई करता है तो वह निःसन्देह बेसिक शिक्षा विभाग का शिक्षक ही करता है।
सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर इस स्थिति में मात्र शिक्षकों को ही निष्ठा की कसौटी पर क्यों कसा जाए, क्या किसी राजस्व कर्मचारी हेतु यह निर्धारण किया गया कि उसे अपने सेवा क्षेत्र में किसी निश्चित समय पर पहुँच जाना है, क्या पंचायत कर्मचारी, स्वास्थ्य कर्मचारी अथवा अन्य विभाग के कर्मचारियों के लिए इस भांति की बाध्यता स्थापित की गयी, नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि सरकार अथवा विभाग उनको लेकर किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं है। यह भी कड़वा सच है कि शिक्षकों को हर तरह के सरकारी काम भी ड्यूटी से अलग दे दिए जाते है। वे उन्हें भी निष्ठा से करते आये हैं और कर भी रहे हैं। प्रदेश के सभी शिक्षकों ने सत्ताधारी पार्टी के लिए भीड़ का कार्य किया है।
जब भी दस बीस तीस हजार शिक्षकों की आवश्यकता पड़ी है तो शिक्षक ही बिना भूत भविष्य सोचे वहाँ पहुँचें। डिजिटल हाजरी के खिलाफ राज्य का बेसिक शिक्षक एकजुट हो गया है। शिक्षकों का कहना है कि जान है तो जहान है। उनका यह भी कहना है कि जब तक हमारी माँगे यथा ओपीएस, वेतन आयोग, ईएल, सीएल में वृद्धि, शिक्षक सम्मान/गरिमा की गारंटी आदि नहीं दी जायेगी तब तक हम शिक्षक ऑनलाइन उपस्थिति नहीं देंगे।
साथ ही यह भी कह रहे हैं कि डीजी साहिबा ये भी सोचे कि शिक्षक पर इतना बोझ मत डालिये कि वह भी दक्षिण कोरिया के रोबोट की तरह से टूट जाए और बिखर जाए। हम भी डीजी साहिबा से यही कहना चाहते हैं कि डिजिटाइजेशन का आदेश व्यवहारिक नहीं है। हाल ही में हुई बरसात ने तमाम रास्ते अवरुद्ध कर दिए हैं। सड़कों पर पेड़ गिरे हए हैं। बारिश के कारण कई जगह नांव चलाने की नौबत आ गई है। आपके विद्यालय भी तालाब बने हुए हैं।शिक्षक को चोर सिद्ध करने से बचे, उसे सम्मान दे।
वह युवाओं का भाग्य विधाता है। भविष्य तैयार करने वाला है। आपको भी डीजी पद की सीढ़ियां चढ़ना सिखाने वाला प्राइमरी का अध्यापक ही है। आप उसको न भूले, उसके कर्ज को उतारने के लिए उसे सम्मान दें। उसे इस तरह से प्रताड़ित न करें कि वह टूट जाए और देश के भविष्य को तैयार करने से ही पीछे हट जाए। हम राज्य के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी से भी यही कहना चाहेंगे कि वे अध्यापकों के सम्मान को बनाये रखें। आप गुरुओं का हमेशा से सम्मान करते आये हैं। अधिकारियों की एक लाबी आपको पसंद नहीं करती है।
राजनीतिक स्तर पर भी आपके खिलाफ आपके अपने ही कार्य कर रहे हैं ऐसे में जरूरी है कि आप सजग होकर राज्य के लाखों अध्यापकों का विश्वास जीतिए और डीजी साहिबा को भी सद्बुद्धि दीजिये। अन्यथा आगामी चुनाव में आपकी नैय्या ऐसे आदेश जरूर डुबा देंगे। शिक्षक पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपना शैक्षणिक कार्य करता है डिजिटाइजेशन के जरिये उसकी निष्ठा पर उंगली उठाना ठीक नहीं है।